भारत का मैनेचेस्टर लुधियाना

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विद्युत प्रकाश :

(पहियों पर जिंदगी 16) 

14 अक्तूबर 1993 – लुधियाना। मंडी गोबिंदगढ़ से ट्रेन रात को 10 बजे चल पड़ी। थोड़ी देर में पंजाब का सबसे बड़ा शहर लुधियाना आ गया।

होजरी और ऊनी वस्त्रों का बड़े पैमाने पर यहां कारोबार होता है इसलिए इसे भारत का मैनेचेस्टर भी कहते हैं। रात को तमाम सामाजिक संगठनों ने हमारा स्वागत किया। इसके बाद हमलोग सो गए। 14 अक्तूबर की सुबह लुधियाना जंक्शन के प्लेटफार्म पर होती है। सुबह के नास्ते के बाद हमारी रैली अंबेदकर नगर स्थित झुग्गी झोपड़ी कालोनी में पहुँची। झुग्गी झोपड़ी के बच्चों के मध्य बहुत सुंदर कार्यक्रम हुआ। यहीं दोपहर के भोजन का भी इंतजाम था। शाम का कार्यक्रम डुगरी रोड पर कृष्ण मंदिर में हुआ।

लिसी भरूचा मैडम जो सद्भावना यात्रा का जन संपर्क देखती हैं उन्हें अपने टाइपराइटर पर काम करने के लिए एक टेबल की जरूरत है। हमारा दफ्तर ट्रेन के कावेरी कोच में चलता है। मैं लिसी मैडम लुधियाना के बाजार में गये और एक फोल्डिंग टेबल खरीदा। साथ ही दूसरे जरूरी स्टेशनरी सामान भी। विजय भारतीय जी गुजरात के अहमदाबाद में रहते हैं। वे पूर्णकालिक तौर पर समाजसेवा से जुडे हैं। शाम को विजय भारतीय जी के साथ लंबी वार्ता हुई। लुधियाना में एक दुकान पर गर्मागर्म दूध के साथ लंबी बहस। वे मेरी पढ़ाई के बाद आगे की योजना पूछ रहे हैं।

उनका ख्याल है कि मुझे कोई एक क्षेत्र चुन लेना चाहिए और पूरी तरह समाजसेवा करनी चाहिए। मैं रोजी रोटी और कैरियर को लेकर उधेड़बुन में हूं। मैं बीए के बाद एमए करना चाहता हूं। आगे क्या बनना है नहीं सोचा अभी पर मैं समाज सेवक तो नहीं बनना चाहता। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एमए में एडमिशन लेकर मैं रेल यात्रा पर आ गया हूँ। अगले दिन विजय भारतीय जी वापस गुजरात लौट गए। पर मैं उन्हें अपने जवाब से संतुष्ट नहीं कर पाया।

लुधियाना में दिन में एक सज्जन से मुलाकात हुई उनका नाम यशपाल मित्तल है। वे प्रस्थान आश्रम पठानकोट के संचालक हैं। उन्होंने यात्रा के संबंध में जानकारी ली और बताया कि पठानकोट में हमारी उनकी तफ्सील से मुलाकात होगी।

(देश मंथन, 21 अगस्त 2014)

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