संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पिछले कई दिनों से मुझे खाँसी थी। दिन भर तो ठीक रहता, पर रात में खाँसी आती तो नींद खुल जाती।
पत्नी ने कई बार कहा कि डॉक्टर को दिखा दो। मैं कहता कि खाँसी भी डॉक्टर को दिखाने की चीज है? अरे यह तो मौसमी बीमारी है। आती है, चली जाती है।
खाँसी आये और चली जाये तो कोई बात नहीं, पर कमबख्त जा नहीं रही थी।
किसी ने कहा कि ये वाली गोली खा लो, वो वाला सिरप पी लो। मैं मनमर्जी से दवाएँ लेता रहा। पर खाँसी नहीं गयी।
पत्नी ने अपनी नानी-दादी के नुस्खों का भी इस्तेमाल किया। मुँह में काली मिर्च लेकर सो जाओ, मुलैठी की गोली चूसो। आराम मिलता, पर खाँसी ठीक नहीं हो रही थी।
परसों रात जब खाँसी की वज़ह से नींद खुली तो अचानक पत्नी भी जागी और उसने जागते ही मुझसे कहा, “संजय, जब तुम छोटे थे, और तुम्हें खाँसी आती थी, तब तुम्हारी माँ देसी घी में प्याज को गर्म करके तुम्हारे गले पर लगाती थीं। और तुम उससे ठीक हो जाते थे।”
मेरी माँ? पर तुम उनसे कब मिली? वो तो तुम्हारे आने से बहुत पहले संसार से जा चुकी थीं।
मेरी पत्नी पल भर को रुकी। फिर उसने कहा कि हाँ, तुम्हारी माँ से तो मैं नहीं मिली। फिर मुझे यह कैसे याद आ रहा है कि प्याज को घी में जला कर लगाने से तुम ठीक हो जाते थे।
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यह सच है कि बचपन में मुझे जब कभी मौसमी खाँसी हो जाती थी, तब माँ देसी घी में प्याज को जला देती। फिर उसे मेरे गले, छाती पर लगाती। ठीक से मुझे ढक कर सुला देती। और मेरी खाँसी सुबह तक छू-मंतर हो जाती। मेरी माँ डॉक्टर नहीं थी। वो वैद्य भी नहीं थी। पर पता नहीं कहाँ से उसके पास ऐसे ढेरों नुस्खे थे, जिनसे बड़ी-बड़ी बीमारियाँ चुटकियों में गायब हो जातीं। एक बार मेरी बहन के पेट में बहुत तेज दर्द उठा था, माँ ने फौरन अजवाइन खिला कर पानी पिलाया, और दस मिनट में बहन एकदम ठीक। लूज मोशन होने पर कच्ची चाय की पत्ती को पानी के साथ पिला देने पर लूज मोशन से तुरंत आराम। कहीं चोट लगने पर हल्दी पीस कर लगा दी तो चोट गायब।
यह ठीक है। महिलाओं को ऐसी विद्या विरासत में मिलती है। मैंने पहले भी लिखा है, फिर से लिख रहा हूँ कि महिलाओं में स्वाभाविक तौर पर एक दादी-नानी-माँ छिपी रहती है। पर देसी घी में प्याज वाला नुस्खा तो एकदम अजूबा था। मेरी पत्नी ने तो पहले कभी इस विद्या का इस्तेमाल नहीं किया।
फिर वो ऐसा कैसे कह रही थी कि ये तुम्हारी माँ की विद्या है।
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मेरी माँ बहुत साल पहले इसी मार्च के महीने में इस संसार को अलविदा कह कर चली गयी थी। वो जब इस संसार से गयी थी, तब मेरी पत्नी ज्यादा से ज्यादा पाँचवीं या छठी कक्षा में पढ़ती होगी। सास-बहू का कभी मिलन हुआ ही नहीं। पर उसने नींद से जाग कर मुझे बताया कि तुम प्याज जला कर गर्म घी को गले पर लगवा लो। ठीक हो जाओगे।
मैं बहुत देर तक सोचता रहा। याद करता रहा कि सचमुच माँ ऐसा करती थी। पर तब मैं बहुत छोटा था। क्या मैंने कभी पत्नी से इस बात की चर्चा की होगी?
क्या मैंने उसे कभी बचपन के इस नुस्खे को बताया होगा? या फिर मेरी तकलीफ देख कर माँ उसके पास सपने में आयी होगी और उसे बता गयी होगी कि तुम ऐसा करो।
मेरी पत्नी ने परसों घी में प्याज को जला कर मेरे गले और छाती पर लगाया। मैं कल बहुत आराम में रहा। कल मुझे खाँसी नहीं आयी। पर दुबारा ये खाँसी न आए, इसलिए उसने कल फिर वही घी मेरे गले और छाती पर लगा कर मुझे ठीक से ढक कर सुला दिया। यकीन कीजिए, रात में एक बार भी मेरी नींद नहीं खुली। एक बार भी मैं नहीं खाँसा। सुबह जागा तो याद भी नहीं रहा कि दो दिन पहले तक मैं नींद से खाँसता-खाँसता उठता था।
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खैर, मैं आज इस विषय पर नहीं लिख रहा कि हर महिला में एक माँ छिपी होती है। आज तो मैं यह आपसे पूछना चाहता हूँ कि क्या सचमुच मेरी माँ इस संसार से चले जाने के बाद भी मेरे आस-पास है? क्या जब मैं सो गया था, तो वो चुपके से मेरी पत्नी के सपनों में आयी होगी? आज कुछ सवाल अनुत्तरित हैं।
पर एक सवाल का जवाब मेरे पास है कि अगर आप अपनी माँ को हमेशा याद करते हैं, उसे अपने भीतर समाहित करके रखते हैं, तो वो हर मुसीबत और बीमारी से आपको बचाती रहेगी।
(देश मंथन, 11 मार्च 2016)