मुरादें पूरी करती हैं माँ विंध्यवासिनी

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

शक्ति की देवी माँ विंध्यवासिनी का मन्दिर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के विंध्याचल में स्थित है। यह स्थान मुगलसराय से इलाहाबाद रेल मार्ग पर पड़ता है। इसे जागृत शक्ति पीठ माना जाता है। यह देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। आद्य शक्ति भगवती विंध्यवासिनी का विंध्य पर्वत माला में हमेशा से निवास स्थान रहा है। महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युद्धिष्ठिर ने माँ विंध्यवासिनी की स्तुति की है।

उन्होंने कहा है कि पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचल पर्वत पर आप सदैव विद्यमान रहती हैं। पद्म पुराण में देवी को माँ विंध्यवासिनी कहा गया है। सृष्टि से आरंभ से ही माँ विंध्यवासिनी की पूजा का आख्यान मिलता है। कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम भी सीता के साथ विंध्याचल आये थे। मार्केंडेय पुराण के दुर्गा सप्तशती के 11वें अध्याय में भी माँ विंध्यवासिनी की कथा आती है। उन्होंने शुंभ और निशुंभ नामक दैत्यों का नाश किया।

हमेशा से ही विंध्य क्षेत्र में घने जंगल थे इसलिए देवी का नाम वन दुर्गा भी पड़ गया। वन को अरण्य भी कहा जाता है। इसलिए ज्येष्ठ मास के शुक्ल  पक्ष की षष्ठी तिथि को माँ की विशेष पूजा की जाती है। इसे अरण्य षष्ठी भी कहा जाता है।

माँ का मन्दिर गंगा की जल धारा और विंध्य पर्वत श्रंखलाओं के बीच स्थित है। परिसर में बड़ा ही मनोरम वातावरण बन पड़ता है। कई भक्त माँ गंगा के जल में स्नान के बाद विंध्यवासिनी के दर्शन करते हैं। माँ विंध्यवासिनी के दरबार में लोग मन्नते माँगने दूर-दूर से आते हैं। यहाँ लालू प्रसाद यादव, अमिताभ बच्चन जैसी हस्तियाँ हाजिरी लगाने पहुँच चुकी हैं।

नवरात्र के समय माँ के दर्शन का विशेष प्रावधान है। इसलिए दोनों नवरात्र के नौ दिनों में माँ विंध्यवासिनी के मन्दिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। नवरात्र के दिनों में माँ के श्रंगार के लिए मन्दिर के कपाट चार दिन बन्द किये जाते हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में ज्योतिष और तांत्रिक तंत्र-मंत्र की साधना के लिए भी इन दिनों माँ विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर के आसपास डेरा डालते हैं। यहाँ अष्टमी के दिन दक्षिण मार्गी और वाममार्गी तांत्रिकों का जमावड़ा लगता है।

पताका दर्शन 

कहा जाता है कि नवरात्र में माँ मन्दिर छोड़कर आसमान में जा कर पताका में वास करती हैं। इसलिए इन दिनो श्रद्धालु पताका के दर्शन करके भी धन्य हो जाते हैं। माँ मन्दिर सुबह 4 बजे से रात्रि 12 बजे तक खुला रहता है। रात्रि दर्शन में माँ का सुन्दर श्रंगार देखने को मिलता है।

काली खोह 

विंध्याचल में थोड़े दायरे में तीन देवियों के मन्दिर हैं। विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर से दो किलोमीटर की दूरी पर काली खोह गुफा में महाकाली और अष्टभुजा पहाड़ी पर माँ अष्टभुजा देवी का मन्दिर है। कालीखोह गुफा में जाने का रास्ता अत्यंत संकरा है।

कैसे पहुँचे 

विंध्याचल शहर गंगा तट पर स्थित है। यहाँ विंध्याचल नाम से रेलवे स्टेशन भी है, जहाँ कुछ रेलगाड़ियों का ठहराव है। आप वाराणसी या इलाहाबाद से चलने वाली नियमित बस सेवाओं से भी विंध्याचल पहुँच सकते हैं। वाराणसी से विंध्याचल की दूरी सड़क मार्ग से 65 किलोमीटर है। मिर्जापुर से विंध्याचल की दूरी तकरीबन 8 किलोमीटर है, जबकि इलाहाबाद से विंध्याचल की दूरी 82 किलोमीटर है। आप मिर्जापुर में रुककर माँ के दर्शन करने जा सकते हैं। 

(देश मंथन, 12 अगस्त 2015)

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