विद्युत प्रकाश मौर्य :
सतपुड़ा की वादियों में बैतूल मध्य प्रदेश का एक जिला है। पर इस जिले की खास बात है कि ये देश के बिल्कुल केंद्र में बसा है।
हमारी बस बेतूल के बस स्टैंड में पहुँचती है। थोड़ी पूछताछ के बाद बाजार में मुझे झूलेलाल लॉज में अच्छा कमरा मिल जाता है।
आसपास में अच्छा बाजार है। बैतूल शहर तीन हिस्सों में बंटा है। बैतूल बाजार, बैतूल गंज (रेलवे स्टेशन के पास का इलाका) और बैतूल कोठी बाजार। कोठी बाजार बस स्टैंड के पास का इलाका है। बाजार में पंचायत चुनाव की गहमा गहमी दिखाई दे रही है। चुनाव प्रचार सामग्री की दुकानें सची हुई हैं। मिनी आफसेट मशीनें रूकने का नाम नहीं ले रही हैं। पोस्टर, बैनर, झंडे, नकली मत पत्र आदि सब कुछ बिक रहा है इन दुकानों में।
बैतूल इटारसी नागपुर के मध्य स्थित है। बैतूल से 45 किलोमीटर आगे मुलताई में ताप्ती नदी का उद्गम स्थल है। पर मैं बैतूल आया क्यों हूँ। मेरी इच्छा बैतूल में बने बालाजीपुरम मंदिर को देखने की है। इसे देश का पांचवाँ धाम कहा जा रहा है। बालाजीपुरम बैतूल रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर नागपुर हाईवे पर है। बस स्टैंड से 10 किलोमीटर है। हर थोड़ी देर पर बालाजीपुरम के लिए बस स्टैंड से टाटा मैजिक जैसी गाड़ियाँ मिलती हैं। स्नानादि से निवृत होकर मैं चल पड़ा बालाजीपुरम के लिए।
नागपुर और इटारसी के बीच फोर लेन हाईवे का निर्माण कार्य जारी है। बालाजी मंदिर पुराने नागपुर रोड पर है। मंदिर के पीछे से फोर लेन हाईवे गुजर रहा है। लोग बता रहे हैं कि जब से फोर लेन हाईवे बन गया है। मंदिर में कम लोग पहुँच रहे हैं।
चमचम करता बैतूल रेलवे स्टेशन
बैतूल का रेलवे स्टेशन काफी साफ सुथरा है। रेलवे स्टेशन के बाहर खूबसूरत उद्यान बना है, जिसमें तरह तरह के फूल हैं। दूसरे दर्जे का प्रतीक्षालय भी एक दम चमचमाता हुआ साफ सुथरा है। शौचालय की सफाई भी अति उत्तम है। ऐसे साफ सुथरे रेलवे स्टेशन कम ही दिखाई देते हैं। प्लेटफार्म पर भी ज्यादा भीड़भाड़ नहीं है। स्टेशन परिसर में बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी है, जिसमें बैतूल जिले के आदिपासी डंडा नृत्य, आदिवासी गायकी नृत्य, तेजपत्ता के जंगल, सागवान के जंगल और दूसरे तरह के जंगलों के बारे में जानकारी दी गई है। रेलवे स्टेशन पर कचौरी की प्रसिद्ध दुकान है। शेगांव कचौरी सेंटर। ये 10 रुपये मे एक कचौरी बेचते हैं हरी वाली चटनी के साथ। कचौरी की स्वाद लाजवाब है। पर इनकी शिकायत है बैतूल रेलवे स्टेशन पर रेलगाड़ियां सिर्फ दो मिनट के लिए रूकती है। ऐसे में कचौरियों की बिक्री ज्यादा नहीं होती।
पांच रुपये में दो बालूशाही
पांच रुपये में दो बालूशाही, पांच रुपये में दो समोसे, पांच रुपये में दो पकौडे। इतना सस्ता। हाँ इतना सस्ता सब कुछ बिकता हुआ नजर आया बैतूल बस स्टैंड के पास दुकानों में। समोसा थोड़ा छोटा जरूर था पर खाने में स्वाद ठीक था।
एक बार फिर तांगे का सफर
बिहार में राजगीर के बाद बैतूल में एक बार फिर तांगे पर सफर का मौका मिला। कोठी बाजार से रेलवे स्टेशन के लिए आटो वाले 10 रुपये लेते हैं तो तांगे वाले 5 रुपये में पहुंचाते हैं। एक तांगे वाला 20 रुपये में मुझे रिजर्व पहुंचाने को तुरंत तैयार हो गया। उसने बताया कि बैतूल में अभी 40-45 तांगे चलते हैं। रास्ते में एक भोपाल के अधिकारी मिले। वे भी हमारे साथ तांगे में बैठकर खुश हुए। पर जब उन्होंने सुना कि किराया महज 5 रुपये है तो उन्होंने कहा नहीं मैं भी कम से कम दस रुपये ही दूंगा। तांगे वाले की खुशी का ठिकाना नहीं था।
(देश मंथन, 23 फरवरी 2015)