महाबलीपुरम – यहाँ पत्थर बोलते हैं…

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

महाबलीपुरम शहर में आप जहाँ भी घूमें हर गली और नुक्कड़ पर मूर्तियों की दुकानें नजर आती है। नन्ही मूर्तियों से लेकर विशालकाय मूर्तियों तक। ये मूर्तियाँ यहीं के मूर्तिकार बनाते हैं। कई दुकानों पर तो मूर्तिकार आपको काम करते हुए दिखायी दे जाते हैं। अहले सुबह सूरज उगने के साथ काम शुरू होता है, देर रात तक छेनी हथौड़ी पर काम चलता रहता है।

महाबलीपुरम के मूर्तिकारों द्वारा बनायी गयी गौतम बुद्ध की एक दर्जन से ज्यादा भाव भंगिमाओं में मूर्तियाँ देखने को मिलती हैं। बुद्ध के सिर्फ चेहरे वाली कई किस्म की मूर्तियाँ दिखायी देती हैं। तो बैठे हुए बुद्ध की भी मूर्तियाँ यहाँ के कलाकार सृजित करते हैं। कई जगह पर कलाकारों ने लेटे हुए बुद्ध की विशाल प्रतिमा बनायी हैं। बुद्ध मूर्तियों की देश भर में माँग तो रहती है। साथ ही उनकी मूर्तियाँ की माँग विदेश में भी है। यहाँ कलाकार 5 हजार से लेकर 30 लाख रुपये तक की बुद्ध मूर्तियाँ बनाते हैं। 

सिर्फ बुद्ध ही क्यों महाबलीपुरम के कलाकारों ने माखनचोर कृष्णा और गणेश की अनगिनत भाव भंगिमाओं में मूर्तियाँ बनायी हैं। लंबोदर गणेश उनका प्रिय विषय है। इसके बाद शिव विष्णु और लक्ष्मी की भी प्रतिमाएँ आपको तैयार अवस्था में यहाँ मिल जाएंगी। इससे आगे स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानियों में गाँधी सबसे लोकप्रिय चेहरा है। गाँधी के बाद नेहरू, शास्त्री और बाबा साहेब अंबेडकर की भी मूर्तियाँ यहाँ दिखायी देती हैं। आप वैसे चाहें तो महाबलीपुरम के कलाकारों से किसी भी मूर्ति आर्डर देकर तैयार करा सकते हैं।

हमने कुछ छोटी मूर्तियों के दाम पूछे पाँच हजार से लेकर 30 हजार तक की मूर्तियाँ थीं। जब उनसे ले जाने के तरीके के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आप अपना पता दे दीजिए मूर्तियाँ ट्रांसपोर्ट से सुरक्षित आपके घर तक पहुँच जाएंगी। हाँ! ट्रांसपोर्ट का खर्च आपको स्वयं वहन करना पड़ेगा। कलाकारों के पास मूर्तियों को दुनिया भर में कहीं भी भिजवाने का इंतजाम है।

महाबलीपुरम के ये कलाकार किसी कला या शिल्प महाविद्यालय से पढ़ाई करके नहीं आये हैं। बल्कि ये इनका खानदारी पेशा है। संभवतः पल्लव काल से ही कलाकार यहाँ मूर्तियाँ बनाते आ रहे हैं। 1957 में यहाँ गवर्नमेंट कालेज ऑफ आर्किटेक्टर एंड स्कल्पचर की स्थापना की गयी। यहाँ चार साल का स्नातक पाठ्यक्रम (बीएफए) चलाया जाता है। 2001 में यहाँ परंपरागत कला में बीटेक पाठ्यक्रम भी आरंभ किया गया। इस कालेज से नये जमाने के कलाकार निकल रहे हैं। पर कला तो महाबलीपुरम के लोगों के रग-रग में सदियों से बसा हुआ है।

(देश मंथन, 25 दिसंबर 2015)

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