विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
सुबह-सुबह मैं नरकटियागंज के पुरानी बाजार के थाना चौक पहुँचता हूँ। यहाँ से कई ग्रामीण क्षेत्रों में जाने के लिए आँटो रिक्शा चलते हैं। गवनहा तक जाने वाले आँटो रिक्शा भितिहरवा जाते हैं। किराया है 20 रुपये।
नरकटियागंज से भिखनाठोरी जाने वाली मीटरगेज लाइन पर भितिहरवा आश्रम हाल्ट स्टेशन आता है। पर रेल सेवा 24 अप्रैल 2015 को बन्द कर दी गयी है। इसलिए अब आँटो ही विकल्प है। पूरी सवारी हो जाने पर आँटो चल पड़ा। गाँव की सड़कें अच्छी हालत में हैं। कुछ हरे भरे गाँव के बाद आता है अमोलवा। माधोपुर बैरिया के बाद एक नहर आता है, जिसके बाद आ गया भितिहरवा गाँव। मैं आँटो से उतर जाता हूँ। सड़क के किनारे एक इमारत बनी है। महात्मा गाँधी शोध संस्थान भितिहरवा।
2009 में इसके निर्माण में 11 लाख रुपये खर्च किये गये, लेकिन बापू पर यहाँ कितना शोध हुआ नहीं मालूम। संस्थान में ताला लटक रहा है। यहाँ से 500 मीटर की दूरी पर है बापू का आश्रम। साल 2014 -15 में आश्रम का जीर्णोद्धार कार्य 61 लाख 65 हजार 774 रुपये की राशि से कराया गया है। बापू की मूल कुटिया के आसपास कई भवनों और प्रदर्शन हॉल का निर्माण हुआ है। आश्रम में बापू के जीवन पर चित्र प्रदर्शनी के अलावा कुछ खास नहीं है। आश्रम की ओर से किसी नियमित गतिविधि का संचालन नहीं किया जाता है। बिल्कुल ग्रामीण इलाके में होने के कारण आश्रम में हर रोज सैलानी भी कम ही आते हैं। बिहार सरकार की ओर से आश्रम में चार कर्मचारी पदस्थापित हैं। पर वे सभी हर रोज समय से नहीं पहुँचते। आश्रम में कई पुराने शिलापट्ट टूटे फुटे हालात में दिखायी दे रहे हैं। भितिहरवा आश्रम की ओर से किसी गतिविधि का संचालन नहीं होता है। अगर आश्रम में के पास या आश्रम के परिसर में कोई कौशल विकास केन्द्र खोल दिया जाए तो यहाँ रौनक बढ़ सकती है वहीं बापू के ग्राम स्वराज से सपनों को भी आगे बढ़ाया जा सकता है। आश्रम के पास 1986 में स्थापित कस्तूरबा कन्या उच्च विद्यालय है। पर भितिहरवा में कोई बड़ा शैक्षणिक संस्थान नहीं खोला गया जिससे ये गाँव चंपारण के मानचित्र में विकास की कुलांचे भर सके।
ये कैसे अच्छे दिन आये…
भितिहरवा आश्रम में मेरी मुलाकात 80 की बुजुर्ग महिला सावित्रि वर्मा से होती है। वे स्वतन्त्रता सेनानी स्व. सत्यदेव प्रसाद वर्मा की पत्नी हैं। वही सत्यदेव वर्मा जी जिन्होंने 1974 से 1985 तक आश्रम का संचालन किया। सावित्रि वर्मा रोज आश्रम में आकर अपनी सेवाएँ निःशुल्क देती हैं। उनके पति की यादें इस आश्रम से जो जुड़ी हैं। पर सावित्रि वर्मा को सरकार से काफी शिकायत है। नवंबर 2014 से उनका पेंशन रुका हुआ है। उन्हें स्वतन्त्रता सेनानी की पत्नी होने का पेंशन मिलना चाहिए। वे नौकरी से रिटायर हुईं उसका पेंशन भी रुक गया। उनकी शिकायत है सरकार कहती है कोई एक ही पेंशन मिलेगा। पर पिछले छह माह से एक भी पेंशन नहीं मिल रहा है। सरकारी लालफीताशाही का आलम है कि उनके आवेदन पर अफसर उनकी नहीं सुन रहे। वे दुखी होकर कहती हैं अब क्या स्वतन्त्रता सेनानी कटोरा लेकर भीख माँगे। वह पूछती हैं ये कैसे अच्छे दिन आये। अब सरकार स्वतन्त्रता सेनानियों को भी सम्मान नहीं देती।
मैं आश्रम की मिट्टी को नमन कर आगे बढ़ता हूँ। दो परिवार के लोग अपने वाहन से आश्रम देखने पहुँचे हैं। आश्रम के बाहर चौक पर चाय नास्ते की तीन दुकाने हैं। यहाँ चाय, दही चूड़ा आदि मिल जाता है। मुझे थोड़े इन्तजार के बाद नरकटियागंज जाने के लिए आँटो रिक्शा मिल जाता है। नरकटियागंज रेलवे स्टेशन के पूरब तरफ रेलवे गुमटी के पास बेतिया के लिए बस मिल जाती है। चनपटिया होते हुए बस बेतिया शहर पहुँच जाती है।
(देश मंथन, 07 जुलाई 2015)