नल्लामल्ला पर्वत पर विराजते हैं मल्लिकार्जुन स्वामी (02)

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

देवों के देव महादेव। उनके मंदिर बने हैं देश के हर हिस्से में। अगर 12 ज्योतिर्लिंगों की बात करें तो इनमें से दक्षिण भारत में हैं। पहला रामेश्वरम और दूसरा श्रीशैलम में। शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में दूसरे स्थान पर आते है श्रीशैलम के मल्लिकार्जन स्वामी। इसे दक्षिण में दिव्य क्षेत्रम माना जाता है। यहाँ पहुँच कर अद्भुत शांति और आनंद की अनुभूति होती है।

श्रीशैलम ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के पश्चिमी भाग में कुर्नूल जिले के नल्लामल्ला पहाड़ी पर जंगलों के मध्य पहाड़ी पर स्थित है। बगल में कृष्णा नदी बहती है। यहाँ शिव की आराधना मल्लिकार्जुन नाम से की जाती है। मंदिर का गर्भगृह बहुत बड़ा नहीं है, इसलिए एक समय में अधिक लोग नही जा सकते। इस कारण यहाँ दर्शन के लिए लंबी प्रतीक्षा करनी होती है। स्कंद पुराण में श्रीशैल कांड नाम का अध्याय है जिसमें इस मंदिर का वर्णन आता है। इससे इस मंदिर की प्राचीनता का पता चलता है। तमिल संतों ने भी प्राचीन काल से ही मल्लिकार्जुन स्वामी की स्तुति गायी है। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने जब इस मंदिर की यात्रा की, तब उन्होंने शिवनंद लहरी की रचना की थी। श्री शैलम का सन्दर्भ प्राचीन हिन्दू पुराणों और ग्रंथ महाभारत में भी आता है।

मंदिर का निर्माण

श्रीशैलम मंदिर का इतिहास सातवाहन काल से मिलता है। पहली शताब्दी के पुल्लुमावी के नासिक अभिलेख जो पहली शताब्दी का है इसमें श्रीशैलम पहाड़ी के बारे में पहली बार चर्चा मिलती है। पल्लव, चालुक्य, काकातीय और रेड्डी राजाओं द्वारा श्रीशैलम की पूजा अर्चना का संदर्भ मिलता है। काकातीय राजा प्रतापरुद्र ने श्रीशैलम क्षेत्र के विकास के लिए अनेक कार्य किये। रेड्डी राजाओं के काल में श्रीशैलम मंदिर के उत्थान के लिए सबसे ज्यादा कार्य की जानकारी मिलती है। 14वीं सदी में प्रलयवम रेड्डी ने पातालगंगा से श्रीशैलम के लिए सीढ़ीदार मार्ग बनवाया। आजकल इस मार्ग पर पक्की सड़क है। विजयनगर के हरिहर राय ने मंदिर का मुख्यमंडपम का निर्माण कराया साथ ही उन्होंने दक्षिण गोपुरम का निर्माण कराया। 15वीं सदी में कृष्णदेव राय ने राजगोपुरम का निर्माण कराया। इस मंदिर का उत्तरी गोपुरम 1667 में छत्रपति शिवाजी ने बनवाया था।

दर्शन

मंदिर में तीन तरह के दर्शन हैं। निःशुल्क दर्शन के अलावा 50 रुपये, 100 रुपये और 500 रुपये के अलग तरह के दर्शन के कूपन आप ले सकते हैं। शुल्क के साथ वाले दर्शन आपका पंक्ति में लगने वाला समय थोड़ा कम कर देते हैं, लेकिन मंदिर के गर्भ गृह में सारे श्रद्धालु एक ही तरह का दर्शन करते हैं।

अन्नदानम

मंदिर में तिरूपति की तरह ही अन्नदानम का संचालन किया जाता है। जब श्रद्धालु दर्शन करके मंदिर  से बाहर निकलते हैं, उन्हे भोजन का कूपन निशुल्क दिया जाता है। मंदिर का विशाल अन्नदानम का हाल है। यहाँ प्रवेश से पहले पंक्तिबद्ध हो कर इंतजार करना पड़ता है। पर अंदर जाने पर प्रसन्नता होती है कि हाल में टेबल कुरसियों पर केले के पत्ते में सजी हुई थाली आपका इंतजार कर रही होती हैं। चावल, लेमन राइस, दाल, सांभर, रसम और रायता यहाँ श्रद्धालुओं को प्रसाद के तौर पर परोसा जाता है। अगर आप चाहें तो अन्नदानम के लिए दान कर सकते हैं। इसके लिए न्यूनतम दान राशि 5 हजार रुपये है।

खुलने का समय

सुबह 4.30 बजे मंदिर खुलता है। पांच बजे से आम जनता के दर्शन शुरू होते हैं। आखिरी दर्शन रात 10 बजे तक किया जा सकता है। यहाँ शिव के निःशुल्क दर्शन सुबह 6 बजे से दोपहर साढ़े तीन बजे तक दुबारा शाम 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक किया जा सकता है। श्रीशैलम में श्रद्धालुओं के लिए रहने का भी इंतजाम है। यहाँ वातानुकूलित कमरे भी उपलब्ध हैं। 

श्रीशैलम में मल्लिकार्जुन स्वामी के दर्शन के बाद लोग कहते हैं कि यह जरूरी है कि श्रीशैलम छोड़ने से पहले आप साक्षी गणपति के दर्शन जरूर करें। इसके बिना मल्लिकार्जुन स्वामी का आशीर्वाद नहीं मिलता। साक्षी गणपति का मंदिर श्रीशैलम मुख्य मंदिर से दो किलोमीटर पहले शहर के प्रवेश द्वार पर ही है। 

लिहाजा  हम भी साक्षी गणपति का आशीर्वाद लेने के लिए रुके। यहाँ पर लोग नारियल चढ़ाते हैं। मंदिर में एक तरह के लाल कपड़े पहने लोगों का समूह दिखायी दिया। ये लोग नवरात्र में नौ दिन या फिर इसके आगे 40 लाल रंग के कपड़े पहन कर माँ दुर्गा और दूसरे देवताओं के मंदिर दर्शन करने के लिए निकलते हैं। ठीक उसी तरह जैसे सबरीमाला के भक्त 40 दिन नंगे पाँव काले वस्त्रों में रहते हैं।

(देश मंथन, 12 जनवरी 2016)

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