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वाराणसी में दशाश्वमेध घाट के ठीक बगल में स्थित है मान मंदिर महल। ये महल वास्तव में एक वेधशाला है। दिल्ली के जंतर मंतर की तरह। इस महल के साथ ही है मान मंदिर घाट। वहीं मान मंदिर महल की खिड़कियों से गंगा की लहरों का नजारा भी किया जा सकता है।
मान मंदिर महल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षित इकाई है। इसमें प्रवेश के लिए 5 रुपये का टिकट तय है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक महल में प्रवेश किया जा सकता है।
मान मंदिर के नाम से विख्यात इस महल का निर्माण राजस्थान के आमेर के राजा मान सिंह द्वारा 1600 ईश्वी के आसपास कराया गया। इसके बाद जयपुर शहर के संस्थापक राजा सवाई जय सिंह द्वितीय (1699-1743) ने इस महल के छत पर वेधशाला का निर्माण कराया। सवाई जय सिंह की खगोल शास्त्र में खास रूचि थी। इसलिए वाराणसी के अलावा दिल्ली, जयपुर, मथुरा और उज्जैन में सवाई जय सिंह ने ऐसी ही वेधशालाओं का निर्माण कराया।
वाराणसी की वेधशाला में ये यंत्र हैं –
1. सम्राट यंत्र – इस यंत्र द्वारा ग्रह नक्षत्रों की क्रांति विशुवांस, समय आदि का ज्ञान होता है।
2. लघु सम्राट यंत्र – इस यंत्र का निर्माण भी ग्रह नक्षत्रों की क्रांति विशुवांस, समय आदि का ज्ञान के लिए किया गया था।
3. दक्षिणोत्तर भित्ति यंत्र- यस यंत्र से मध्यान्ह के उन्नतांश मापे जाते हैं।
4. चक्र यंत्र – इस यंत्र से नक्षत्रादिकों की क्रांति स्पष्ट विसुवत काल आदि जाने जाते हैं।
5. दिगंश यंत्र – इस यंत्र से नक्षत्रादिकों दिगंश मालूम किए जाते हैं।
6. नाड़ी वलय दक्षिण और उत्तर गोल – इस यंत्र द्वारा सूर्य तथा अन्य ग्रह उत्तर या दक्षिण किस गोलार्ध में हैं इसका ज्ञान होता है। इसके अलावा इस यंत्र द्वारा समय का भी ज्ञान होता है।
मान मंदिर महल का आसपास बहुत साफ सुथरे हाल में नहीं है। यहाँ पहुँचने के लिए आपको दशाश्वमेध के सब्जी बाजार की गलियों से होकर जाना होता है। हालाँकि मान मंदिर घाट को गंगा के तट से भी देखें को तो काफी भव्य लगता है।
(देश मंथन, 24 जून 2014)