हर साल सूखे की मार झेलता मराठवाड़ा

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

हर साल अप्रैल महीना शुरू होने के साथ ही महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र चर्चा में आ जाता है। चर्चा सूखे के कारण होती है। हमें सूखे की आहट अहमदनगर से मिलने लगती है। साल 2013 में जब शिरडी गया था तब वहाँ के स्थानीय लोग कह रहे थे पानी की भारी कमी है। इसलिए बाबा के दरबार में श्रद्धालु कम आ रहे हैं। साल 2015 का मार्च के महीने का आखिरी दिन हैं।

हमारी ट्रेन सचखंड एक्सप्रेस मनमाड जंक्शन से औरंगाबाद की ओर बढ़ चली है। स्लीपर क्लास की गरमी को बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा है। ट्रेन में गरमी के बीच सहयात्री बताते हैं कि पिछले दस साल इलाके में बारिश नहीं हुई। पूरे मराठवाड़ा से मानो इंद्र देवता रूठ गये हों। बारिश नहीं है तो खेती भी बहुत कम हो पाती है। सूखा प्रभावित इलाकों में जमीन की कीमतें गिरकर सवा लाख से दो लाख रुपये एकड़ तक रह गयी हैं। इलाके के खेतिहर परिवार के नौजवान मुंबई में जा कर मजदूरी करने को विवश हैं। सरकार डैम बनवाने की बात करती है पर उसमें कुछ खास सफलता नहीं मिली।
औरंगाबाद के बाद जलाना, प्रातूर, सेलू, मनवथ रोड, परभनी और फिर पूर्णा जंक्शन आता है। पूर्णा जंक्शन परभणी जिले का रेलवे स्टेशन और तालुक है। रेलवे स्टेशन पर पानी के नल सूखे नजर आते हैं। हम भारी गरमी में पानी की बोतलें खरीद कर हलक बुझाते हैं। पर यहाँ के लोग तो बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं।
खिड़की के बाहर ज्यादातर सूखे बंजर खेत नजर आते हैं। ये सारे इलाके महाराष्ट्र के सबसे सूखा ग्रस्त जिला लातूर के आसपास के हैं। बताते हैं कि लातूर में तो हालात और भी विकट हो जाते हैं। न सिर्फ लातूर बल्कि पूरा मराठवाड़ा हर साल सूखे की मार झेलता है। राजनेता चुनावी दौरों में आ कर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। कई बार तो कृत्रिम बारिश का सब्जबाग भी दिखाया जाता है। पर मराठवाड़ा के लोग मुश्किल जिंदगी जीने को विवश हैं। प्रकृति भी कैसा रंग दिखाती है, यह भी देखिए महाराष्ट्र का पुणे से लेकर नासिक के बीच का इलाका देश के सबसे हरे भरे और खुशहाल इलाकों में शामिल है। पर कुछ घंटे बाद अहमदनगर से आगे आते ही हालात बदलने लगते हैं।
ट्रेन की खिड़की से कहीं कहीं लोग खेतों में तालाब बना कर पानी बचाने की कोशिश करते दिखाई देते हैं। कहीं-कहीं पानी को रोकने के लिए इन तालाबों के किनारे प्लास्टिक की स्क्रीन लगाई दिखायी देती है।
सूखे का असर हमें औरंगाबाद में बीबी के मकबरा में भी दिखायी देता है। पानी की कमी के कारण मकबरे का उद्यान में लगे पेड़ो की सिंचाई नहीं हो पा रही है। लिहाजा पेड़-पौधे सूख रहे हैं। कभी हरितिमा के संग मुस्कुराने वाला मकबरा का परिसर थोड़ा मायूस नजर आ रहा है। 
महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित जिले
– 15 जिले विशेष सूखा प्रभावित ( लातूर, बीड, उस्मानाबाद, नांदेड, परभनी, जलाना, औरंगाबाद, अहमदनगर, हिंगोली, नासिक, जलगांव ।
-14708 गाँवों को राज्य सरकार ने सूखा प्रभावित घोषित किया।
-34% राज्य का हिस्सा है सूखा प्रभावित
-36 जिले हैं कुल महाराष्ट्र में
(देश मंथन  01 जून 2016)

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