विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:
चेरापूंजी के रास्ते में हमारा पहला पड़ाव था मॉकडोक ब्रिज। इससे पहले शिलांग शहर से बाहर निकलते ही चेरापूंजी का सुहाना रास्ता आनंदित करने लगा था। चटकीली धूप में गरमी बिल्कुल नहीं लग रही थी।
अचानक हमलोग टैक्सी रूकवा कर सड़के किनारे नन्हें-नन्हें फूलों के संग कुछ तस्वीरें लेने लगते हैं। फिर हमलोग आगे बढ़ते हैं। टैक्सी एक पुल को पार करके रूक जाती है। यह दुवान सिंह सिएम ब्रिज है। इस पुल को देखकर कुछ याद आता है। हिंदी फिल्म कुर्बान की इस पुल पर शूटिंग हुई है। हम मॉकदोक में हैं। यह चेरापूंजी के रास्ते का पहला खूबसूरत व्यू प्वाइंट है। मॉकदोक मेघालय के सोहारा टूरिस्ट सर्किट के तहत आता है। हर चेरापूंजी की ओर जाने वाली टैक्सी का पहला पड़ाव। पुल और आसपास की सड़क से घाटी का अप्रतिम सौंदर्य नजर आता है। सड़क के किनारे दर्शकों के लिए एक व्यू प्वाइंट बना है। टूरिज्म विभाग ने नजारे देखने के लिए उतरती हुई सीढ़ियाँ और एक व्यू प्वाइंट का निर्माण करा रखा है। वहाँ तक जाकर लोग गहरी घाटी के खूबसूरत नजारे करते हैं। अगर बादल न रहें तो आपको यहाँ से घाटी का बेहतरीन नजारा देखने को मिलता है।
क्रास द वैली –यहाँ पर घाटी को रस्सियों के सहारे इस पार से उस पार जाने के रोमांच यानी क्रास द वैली का आनंद ले सकते हैं। इसका टिकट 300 रुपये का है। आपको अच्छी तरह बांध कर घाटी में लटकती हुई रस्सी के सहारे धक्का दे देते हैं। थोड़ी देर में आप घाटी के इस पार से उस पार होते हैं। कई लोगों को तो ये नजारा देखते हुए ही डर लगता है। पर काफी लोग रोज इसका आनंद उठाते हैं। कई लोगों को रास्ते में चीख निकल जाती है।
खासी योद्धा की वर्दी में फोटो
मॉकदोक में बड़ा आकर्षण है खासी योद्धा की वर्दी में फोटो खिंचवाना। यहाँ पुरुष और महिला दोनों की पोशाक किराया पर उपलब्ध है। किराया है 50 रुपये। वे आपको फटाफट खासी जनजाति के पोशाक में तैयार कर देते हैं। बच्चों के लिए हर साइज के भी पोशाक उपलब्ध हैं। हम तो ऐसी फोटो के लिए तैयार नहीं हुए पर अनादि तैयार हो गए। पूरी तरह खासी योद्धा बनजाने के बाद वे तलवारें भांजने लगे। वर्दी और गहने किराये पर देने की दुकान कुछ खासी लड़कियाँ मिल कर चलाती हैं।
बांग्ला संगीत की धुन पर वह यादगार नृत्य
मॉकदोक में एक बंगाली परिवार आया जिसके परिवार के हर उम्र के लोग खासी पोशाक में तैयार हो गये फोटो खिंचवाने के लिये। इतना ही नहीं परिवार के लोग इतने मजे में थे कि संगीत की धुन पर पूरा परिवार नाचने लगा। फोटोग्राफी की दुकान डांस फ्लोर बन गयी। म्युजिक का इंतजाम तो पहले से था ही। उन्होंने अपनी पसंद का गाना लगवाया। मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो दुकान चलाने वाली खासी बाला और मेरी माधवी दोनों संगीत की धुन पर जमकर नाच रहे हैं। फिर अनादि भी कहाँ पीछे रहने वाले थे। अलग-अलग जगह से आए अजनबी लोगों का समूह एक संगीत की धुन पर थिरक रहा था। बेगाने अपने बन चुके थे। पर ये अपनापन थोड़ी देर का ही था।
अब हम आगे चले तो एक दाहिनी तरफ एक झरना दिखाई दिया। हम रुक कर फोटो खिंचवाने लगे। नीचे देखा तो झरने में दो युवक नहा रहे थे। पर वांकी ने बताये आगे आपको कई झरने मिलने वाले हैं। तो आगे का सफर फिर शुरू हो गया।
(देश मंथन, 17 मार्च 2017)