सीतामढ़ी टू दरभंगा वाया रेल एंड रोड

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

सीतामढ़ी से दरभंगा कभी मीटर गेज रेलवे लाइन थी। अब ब्राडगेज पर रेलगाड़ियाँ दौड़ती हैं, पर रेल सेवा मे ज्यादा बदलाव नहीं आया। सीतामढ़ी से दरभंगा के  बीच दिन भर में दो पैसेंजर ट्रेनें चलती हैं। इनमें बेतहासा भीड़ होती है। सुबह सात बजे से पहले-पहले मैं सीतामढ़ी स्टेशन पर पहुँच जाता हूँ। एक टिकट खरीद लेता हूँ पंडौल तक के लिए। सात बजकर 10 मिनट पर आने वाली 55508 पैसेंजर 20 मिनट देर से आती है।

सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन के बाहर सीताअवतरण की झाँकी लगी है। स्टेशन का प्रतीक्षालय बड़े आकार का बना है। इसमें कई मधुबनी पेंटिंग लगायी गयी हैं। सेकेंड क्लास के वेटिंग हाल में भी मोबाइल चार्जिंग प्वाइंट भली प्रकार काम कर रहे हैं। सुबह सात बजकर 10 मिनट के बजाय 30 मिनट देर से दरभंगा जाने वाली पैसेंजर आती है। ट्रेन के हर डिब्बे में भीड़ है। पर एक डिब्बे में मुझे जगह मिल जाती है। ट्रेन आगे चल पड़ती है। हर स्टेशन पर लोगों की भीड़ बढ़ती जाती है। जनकपुर रोड तक सीतामढ़ी जिले में ट्रेन दौड़ती है।

दरभंगा जिले का चंदौना स्टेशन आता है। यहाँ पर डिग्री कॉलेज है। ट्रेन के डिब्बे में भीड़ बढ़ गयी है। बडी संख्या में महिलाएँ चढ़ रही हैं। लोग बता रहे हैं कि दरभंगा जाने के लिए पैंसेजर ही एकमात्र सहारा है। सड़क मार्ग बहुत खराब है और बसों में किराया भी ज्यादा है। सुबह की ट्रेन अगर छुट गयी तो फिर दोपहर ढाई तीन बजे दूसरी ट्रेन आयेगी। हर डिब्बे के हर दरवाजे पर बड़ी संख्या में लोग लटक कर सफर करने लगे थे। कई महिलाएँ भी लटक गयी थीं। चंदौना के बाद जोगियारा और देवराबंधौली में भीड़ और बढ़ गयी। लोगों ने ड्राइवर और गार्ड की धमकाया कि जब तक सारे लोग चढ़ नहीं जाएँ गाड़ी आगे नहीं बढ़ेगी। लोग बता रहे हैं कि कई बार रेलवे से सीतामढ़ी दरभंगा मार्ग पर और पैसेंजर ट्रेनें चलाने की माँग की जा चुकी है पर अभी तक सुनवाई नहीं हो रही है।

रेल के डिब्बे में भीड़ के कारण मेरा दम घुटने लगा था। मुरैठा रेलवे स्टेशन पर मैंने अचानक ट्रेन से उतरकर बस से जाने के फैसला लिया। बड़ी मुश्किल से जगह बनाते हुए मैं ट्रेन से उतर गया। पर यह क्या आसमान से गिरे तो खजूर पर अटके। मुरैठा में मैंने एक दर्जी की दुकान से पूछा तो उसने बताया कि यहाँ से दरभंगा कोई बस नहीं जाती। आप किसी तरह कमतौल पहुँचे तो वहाँ से बस मिल सकती है। पहले रेलवे रोड से एक किलोमीटर आगे कमतौल रोड पर जाएँ शायद वहाँ कोई निजी वाहन वाला लिफ्ट दे दे। कमतौल यहाँ से 7 किलोमीटर है पर सड़क खराब होने के कारण कोई आटो, जीप बस जैसा सार्वजनिक वाहन नहीं चलता।

अब मैंने एक बाइक वाले से लिफ्ट माँगी, उन्होंने कहा कमतौल नहीं जा रहा हूँ मैंने कहा, जहाँ तक जा रहे हैं वहीं तक छोड़ दें। मुझे लगा कि अब शायद कमतौल तक पैदल जाना पड़े। उन सज्जन ने एक किलोमीटर आगे छोड़ा। वहाँ से उन्होंने कमतौल जा रहे एक और सज्जन के बाइक पर लिफ्ट दिला दी। उन दोनों को धन्यवाद मैं कमतौल पहुँच गया। वहाँ से दरभंगा की बस मिल गयी। कमतौल के पास अहिल्याबाई का स्थान और महाकवि विद्यापति का गाँव बिस्फी है।

सीतामढ़ी से दरभंगा के बीच के स्टेशन–  सीतामढ़ी, भीसा हाल्ट, परसौनी, बाजपट्टी, आवापुर, बछारपुर हाल्ट, जनकपुर रोड, चंदौना हाल्ट, जोगियारा, देवराबंधौली हाल्ट, मुरैठा, कमतौल टेकटार, मुहम्मदपुर, शीशो, दरभंगा जंक्शन।

बस दरभंगा शहर में पहुँच गयी थी। पर शहर के अन्दर दोपहर में भी इतना जाम था कि बस को रेलवे स्टेशन जाने के लिए 10 किलोमीटर अतिरिक्त फेरा लेना पड़ा। दरभंगा के कादिराबाद निजी बस स्टैंड के आसपास काफी गंदगी का आलम है। मैं दरभंगा जंक्शन स्टेशन पर पहुँच जाता हूं। यहाँ दिल्ली की तरफ जाने वाले मजदूरों की विशाल भीड़ दिखायी देती है। ये रोज का आलम है। मिथिलांचल में भारी गरीबी के कारण बड़ी संख्या में लोग जनसाधारण और बिहार संपर्क क्रांति, पवन एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों से दिल्ली मुंबई जाते हैं। स्टेशन के बाहर टिकट एजेंट के काउंटर पर भी लंबी लाइन लगी है। मैं जनता जनार्दन को नमस्कार कर आगे बढ़ता हूँ।

दरभंगा पहुँचने के बाद 10.40 पर मुझे उगना हाल्ट के लिए हावड़ा जयनगर पैसेंजर लेनी थी। मेरे पास पंडौल तक का टिकट जेब में था। देखा कि मेरी वह ट्रेन डेढ़ घंटे लेट है और दरभंगा जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर एक से खुलने को तैयार है। इस ट्रेन में भीड़ भी नहीं है। मैं फटाफट ट्रेन में जगह ले लेता हूँ। लगा कि उगना महादेव दर्शन के लिए बुला रहे हैं। ट्रेन में एक रेलवे कर्मचारी और एक इंजीनियर मिलते हैं। उनसे बातें करते हुए कब सकरी जंक्शन गुजरता है और उगना हाल्ट आ जाता है पता ही नहीं चलता।

(देश मंथन, 11 जुलाई 2015)

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