जब 20 मिनट में “मिस टनकपुर” देखने के बाद उठ गये अनुराग कश्यप!

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विनोद कापड़ी, फिल्म निर्देशक :

फिल्म मेकिंग की आपने कई कहानियाँ सुनी। कभी आपने एक फिल्म के रिलीज होने की कहानी नहीं सुनी होगी।

अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि फिल्म बनाने से ज्यादा मुश्किल काम है फिल्म को रिलीज कराना। और एक नये production house और डायरेक्टर के लिए तो असंभव !! और production house के पास सिर्फ फिल्म बनाने लायक बजट हो , तब तो और भी असंभव!!! बिल्कुल ही असंभव!! 

फिल्म बनाने से पहले मुझे इस सच के बारे में खास जानकारी नहीं थी और ये तो बिल्कुल ही पता नहीं था कि भारत में हर साल जितनी फिल्में रिलीज होती हैं,  तकरीबन उतनी ही फिल्में पूरी होने के बाद भी कभी रिलीज नहीं हो पाती हैं!!! पहली बार ये सच सुनकर अन्दर तक काँप गया था मैं !! बनी बनाई तैयार फिल्में रिलीज नहीं हो पाती- ये सुनकर कई रात तक मैं सो नहीं पाया। मुझे बताया गया कि तिग्मांशु धूलिया जैसे फिल्मकार को “पान सिंह तोमर” जैसी महान फिल्म के लिए तीन साल तक इन्तजार करना पड़ा। फिल्म बनने के बाद वो तीन साल तक भटकते रहे। मुझे बताया गया कि केतन मेहता जैसे फिल्मकार चार साल से “रंगरसिया” लेकर बैठे हैं और रिलीज का इंतजार कर रहे हैं। ये सच बहुत ही डरावना था। मैंने जानने की कोशिश की कि ऐसा क्यों होता है तो दो-तीन मोटी बातें पता चली। पहली ये कि डिब्बे में बन्द 90% फिल्में तो बनी ही बहुत खराब होती हैं तो वो कभी सिनेमा हॉल तक नहीं पहुँच पाती। कुछ मामलों में झगड़े विवाद हो जाते हैं। कुछ फिल्मों में पैसे की कमी की वजह से बात आगे नहीं बढ़ पाती और कुछ फिल्में बेहतर होते हुए भी इसलिए फँस जाती हैं कि रिलीज करने वाली कंपनी या स्टूडियो, फिल्म के Content को या तो समझते नहीं हैं या समझना ही नहीं चाहते। और एक बार वही content चल गया तो सब credit लेने के लिए आगे आ जाते हैं। 

मिस टनकपुर के साथ भी यही हुआ। आप यकीन नहीं करेंगे कि फिल्म के trailer के कमाल के रिसपांस के बाद मुझे कम से कम तीन चार ऐसी फिल्म कंपनी और स्टूडियो के ये कहते हुए फोन आये कि “यार विनोद!! ये मिस टनकपुर आप हमारे पास लेकर आये थे। हमने तो कहा था कि ये फिल्म Work करेगी, कुछ करते हैं। फिर आप दोबारा क्यों नहीं हमारे पास आये?? “

मैं इनके नाम नहीं लिखूँगा कि पर सच ये है कि इन कंपनियों और studios ने फिल्म तक देखने से इंकार कर दिया था, बाकी बातें तो बहुत ही दूर की हैं। इस पूरी प्रकिया में मुझे मुंबई से एक ही शिकायत है कि इस शहर में अच्छी कहानियों और फिल्मों की बहुत कमी है पर उसके बावजूद जिनका काम ही कहानियाँ सुनना है और फिल्म देखना है, वो ना कहानी सुनने को तैयार हैं और ना फिल्म देखने को। ये मेरी बड़ी शिकायत है। और मैं इसका भुक्तभोगी हूँ !! 

किस-किस के पास नहीं गया मैं फिल्म लेकर। पहले किसी ने कहा कि पाँच मिनट का ट्रेलर बना कर दिखाओ। किसी ने कहा कि दो मिनट का ट्रेलर दिखाओ। पर किसी ने नहीं कहा कि फिल्म दिखाओ!! कितने लोगों ने दो-दो तीन-तीन महीने तक लटका कर रखा। मुझे पता था कि फिल्म का मामला है, कोई भी यारी-दोस्ती काम नहीं आने वाली। जो भी कोई फिल्म के रिलीज में 4-5 करोड़ लगायेगा, वो कोई भी फैसला यारी-दोस्ती में तो बिल्कुल नहीं करेगा। 

जब काफी वक्त निकल गया तो मैं डरने लगा कि कहीं ये इंतजार अंतहीन ना हो जाये। पर एक विश्वास तो लगातार था कि देर है पर अंधेर नहीं। वजह थी सिर्फ फिल्म। फिल्म के edit , dubbing, sound के वक्त ही जो जो नये लोग जुड़ते जा रहे थे, उनकी feedback से ये यकीन तो हो गया था कि फिल्म कम से कम ठीक-ठाक बन गई है और ये देर-सवेर अपने लिये रास्ता ढूँढ ही लेगी। बस ये है कि अपना धैर्य बना कर रखना है। 

और फिर सीन में आया मेरा एक बहुत खास दोस्त रविकान्त मित्तल। रवि ने बताया कि “अनुराग कश्यप उसका बचपन का दोस्त है। वो अनुराग से बात कर सकता है पर अनुराग की ये दिक्कत है कि वो बहुत मुँहफट है, जो भी उसे लगेगा- मुँह पर बोल देगा।” 

यही तो मैं चाहता था। जानना चाहता था कि कोई तो समझदार आदमी बताये कि फिल्म कैसी बनी है? और फिल्म में दम लगता है तो कुछ करे रिलीज के लिए। ये बात है जून 2014 की। 

रवि ने अनुराग से बात की। लेकिन अनुराग से मुलाकात हो पाई दो महीने बाद अगस्त 2014 में। 1st August 2014 । अनुराग ने रात के दस बजे अपने घर पर बुलाया। डरते-डरते मैं पहुँचा। अनुराग के हाथ में गिलास था scotch का.. मुझे भी ऑफर किया पर मैं इतना घबराया हुआ था कि अपनी घबराहट दूर करने के लिए भी हाँ नही बोल सका। घर में अन्दर घुसते ही अनुराग ने ये भी बोल दिया कि “भाई एक बात साफ बोल दूँ। एक खास दोस्त की birthday party में मेरा इंतजार हो रहा है। मैं रवि के कहने पर तुम्हारी फिल्म देख रहा हूँ, पसंद नहीं आई तो 15-20 मिनट में ही उठ जाऊँगा।” 

आप समझ सकते हैं कि उस वक़्त क्या हालत हुई होगी मेरी। फिल्म शुरू हुई। और मैं लगातार घड़ी देख रहा था। पाँच मिनट गुजर गये, दस मिनट गुजर गये। मेरी हालत बिलकुल उस रिश्तेदार की तरह थी, जिसका कोई बहुत खास ICU में पड़ा हो और Doctor ने कह दिया हो कि 24 घंटे आपका मरीज जी गया तो फिर खतरे से बाहर है। मेरे लिए ये खतरे का वक्त 20 मिनट का था। और जैसे ही 20 मिनट गुजरे, अचानक अनुराग उठे, film को remote से pause किया और कमरे से बाहर चले गये। मुझे लगा कि गई भैंस पानी में। ना इस फिल्म का कुछ भविष्य है, ना मेरा। 

दो मिनट बाद ही अनुराग वापस आ गये। इस बार उनके हाथ में scotch और पानी की बोतल भी थी। मेरी जान मे जान आई। एहसास हो गया कि वो अपनी drink लेने गये थे और शायद दोबारा नहीं उठना चाहते थे, इसलिए बोतल और पानी एक ही बार में ले आये। इस बार तो मैं भी चाहता था कि वो ऑफर करें और मै लपक लूँ। पर जब तक मैं कुछ और सोचता, फिल्म फिर शुरू हो गई थी। मुझे लगा कि कम से कम पहली परीक्षा में तो पास हो गया। अनुराग “मिस टनकपुर” देख रहे थे और मैं कभी उनको, उनके चेहरे के हाव-भाव को और कभी उनके कमरे को – जिसमें कम से कम 5000 फिल्मों की DVD तो रखी ही होंगी।

रात के 12 बजकर 6 मिनट। और मिस टनकपुर हाजिर हो की पहली screening पूरी हुई। फिल्म देखने के बाद अनुराग तेजी से उठे और कमरे से बाहर चले गये। मैं अपना सामान और फिल्म की DVD समेटने लगा। मुझे लगा कि ये कैसा आदमी है? फिल्म देखने के बाद कुछ तो बोलना चाहिए था। सीधे उठा और चला गया। तीन-चार मिनट बाद अनुराग आये और बोले कि “यार बहुत देर से रोकी हुई थी, bathroom गया था। और बोलो .. अब क्या programme है तुम्हारा? ” मैं वाकई कुछ समझा नहीं। मुझे लगा कि ये फिल्म के बारे में कुछ बताएँगे पर ये तो कुछ और पूछ रहे हैं। 

मैंने कहा भी कि आप क्या कह रहे हो ? तो वो बोले- यहाँ से कहाँ जाओगे? 

मैंने कहा कि घर !!! 

तो अनुराग ने सीधे पूछा: दारू पीयोगे? चलो एक पार्टी में चलते हैं। बार-बार फोन आ रहे हैं। मुझे सच में कुछ समझ नहीं आ रहा था कि सारी बात हो रही है पर फिल्म के बारे में कोई बात नहीं हो रही। 

मैंने धीरे से कहा कि पर मुझे कोई जानता नहीं है और ना मैं invited हूँ। 

अनुराग धीरे से मुस्कुराये और बोले कि “भाईसाहब मुंबई में आपका स्वागत है, अब आपको news में वापस नहीं जाना पड़ेगा। चलो मेरे साथ। “मुझे तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ। 

घर से बाहर आने के बाद अनुराग ने अपनी ही कार में बैठने को कहा। एक-दो कॉल निपटाने के बाद अनुराग ने बोलना शुरू किया- “फिल्म अच्छी बनायी है यार तुमने? मैं तो ये सोचकर ही बैठा था कि party में इंतजार हो रहा है, 15-20 मिनट बाद उठ जाऊँगा पर पिक्चर ने उठने नहीं दिया।” पहली बार मेरी साँसें कुछ सामान्य हुईं। मैंने पूछा कि क्या लगता है आपको? फिल्म कैसा करेगी? 

तो अनुराग ने कहा कि “यार देख box office का तो मुझे अपनी फिल्मों का ही पता नहीं रहता। पर ये फिल्म तुम्हें मुंबई में खड़ा कर देगी कि कोई है विनोद, जिसने टनकपुर बनायी है।” इतना ही नहीं अनुराग ने मुझे ये भी ऑफर दिया कि टनकपुर का फाइनल एडिट में वो खुद बैठेंगे। 

मुझे तो मानो मन माँगी मुराद मिल गयी हो। रास्ते भर अनुराग टनकपुर की ही बात करते रहे। फिर करीब 12.30 बजे हम एक पार्टी में पहुँचे। अनुराग ने गेट पर ही खड़े एक शख्स से मिलवाया कि इनका नाम सुनील बोहरा है, आज इन्हीं की birthday party है और तुम्हारी पिक्चर अब ये ही रिलीज करेंगे। 

सुनील बोहरा भी हैरान। मेरी तरफ देखने लगे तो अनुराग ने मेरा परिचय करवाया और बताया कि “इन्होंने फिल्म बनायी है- मिस टनकपुर हाजिर हो, क्या पिक्चर बनायी है। कल देखना तुम।” 

सुनील बोले कि अनुराग ने देख ली तो अब मुझे देखने की क्या जरूरत। हम कल बात करते हैं। 

जो चीज तीन घंटे पहले तक असंभव लग रही थी, वो अब एकदम plate पर सज कर तैयार थी।

बाद में मैंने अकेले में सुनील बोहरा को Google करके देखा तो पता चला कि उनकी कंपनी Bohra Bros 100 से ज्यादा फिल्में बना या रिलीज कर चुकी हैं, जिसमें gangs of Wasseypur, Tanu weds manu -1 , Shahid , Mastram जैसी चर्चित फिल्में भी हैं। 

उस रात और अगले दिन तक तकरीबन सारी बातें तय हो गयी… लेकिन फिर कुछ ही दिनों में ऐसे development हुए कि मिस टनकपुर के साथ Fox star studios खड़ा हो गया.. Fox की तरफ से हाँ आने से पहले Viacom motion pictures में भी सबकुछ positive होने लगा… ये कहानी बहुत ही अविश्वसनीय है, जो फिर कभी… 

और हाँ … 

26 June याद रखिएगा …. !!!!

(देश मंथन 16 जून 2015)

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