रिश्तों की विरासत

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

अब आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा के मन में सुबह-सुबह लड्डू क्यों फूट रहे हैं। तो मैं आज आपको ज्यादा नहीं उलझाऊँगा। 

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यही मार्च का महीना था। सर्दी जा रही थी। मेरी माँ बहुत बीमार थी। इतनी कि डॉक्टरों ने कह दिया था कि अब माँ इस संसार को छोड़ कर चली जाएगी। 

आठ-दस साल के किसी बच्चे की माँ इस संसार से चली जाए, यह एक हादसा हो सकता है, लेकिन उस बच्चे को भी यह पता हो कि उसकी माँ उसे छोड़ कर चली जाएगी, तो उसके क्या मायने होंगे यह समझने के लिए उम्र के उस बाल मन से खुद को गुजारने की दरकार पड़ेगी। 

माँ कहती थी कि वो चली जाएगी। मैं पूछता था कि आप चली जाएँगी तो फिर लौट तो आएँगी न? 

माँ मेरी ओर देख कर मुस्कुराती, कहती हाँ लौट आऊँगी। वो मुस्कुराती और मुझे उसकी बात पर यकीन हो उठता। मैं यकीन करता और उसी पल माँ अपना मुँह दूसरी ओर करके अपनी ही साड़ी के पल्लू से अपने आँसू पोछती। 

अजीब विंडबना थी। अभी-अभी मुस्कुराती हुई माँ, अपने आँसू क्यों पोछ रही है? 

बच्चे न तो भविष्य में जीते हैं, न अतीत में। बच्चे सिर्फ वर्तमान में जीते हैं। पर मैं संसार का इकलौता बच्चा था, जो तब भी भविष्य में जी रहा था। मुझे इंतजार था, माँ के चले जाने का और फिर चले आने का। 

पिताजी से मैं कभी-कभी कहता था कि माँ चली जाएँगी, फिर लौट आएँगी। ऐसा माँ ने खुद कहा है। 

पिताजी मेरी ओर देखते। उनकी आँखें बहुत भीगी होतीं, पर उन्होंने मुझसे कभी ये नहीं कहा कि तुम्हारा विश्वास झूठा है। इस संसार से जो चला जाता है, वो कभी लौट कर नहीं आता। 

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मैं बड़ा होता गया। मेरा विश्वास भी बड़ा होता गया। 

एक दिन माँ की तरह पिताजी भी इस संसार से चले गये। सबके माँ-बाप एक दिन इस संसार से चले जाते हैं, अपने बच्चों को अकेला छोड़ कर। 

इस संसार में हर माता-पिता अपने बच्चों को तैयार करते हैं, आर्थिक रूप से जीने के लिए। सामाजिक रूप से जीने के लिए। पर कोई माँ-बाप अपने बच्चों को भावनात्मक रूप से जीने के लिए तैयार नहीं करते। वो उनके लिए घर, दुकान, जमीन,जायदाद छोड़ जाते हैं, पर रिश्ते नहीं छोड़ते। मैंने किसी माँ-बाप को अपने बच्चों को इस बात के लिए तैयार करते नहीं देखा है कि उन्होंने अपने आखिरी दिनों में उनके नाम रिश्तों की कोई वसीयत छोड़ी हो। 

मैंने किसी भी माँ-बाप के मुँह से यह नहीं सुना है कि उन्होंने अपने बच्चों को कभी अपने पास बैठा कर यह कहा हो कि मेरे चले जाने के बाद तुम अकेले नहीं रहोगे। मैंने ये सुना है कि तुम्हारे नाम मैंने इस मकान को कर दिया है। बैंक में इतना पैसा तुम्हारे लिए है, तुम्हें पैसों की कभी तकलीफ नहीं होगी। 

पर मेरी माँ मार्च की इसी मौसम में मुझे पास बिठा कर समझाया करती थी कि मैं जब चली जाऊँगी, तो तुम अकेले नहीं रहोगे। तुम्हारे पास रिश्तों का कारवाँ होगा। 

माँ की कही बातें तब मेरी समझ में बहुत नहीं आती थीं। पर मुझे माँ के कहे पर यकीन था। 

मैं अपने यकीन को पुख्ता करने के लिए इतना जरूर पूछता था कि माँ सब लोग तो मेरे पास रहेंगे ही, पर तुम तो जहाँ जा रही हो, वहाँ से फिर लौट आओगी न!

माँ विश्वास दिलाती कि हाँ, वो लौट आएगी। 

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मैंने बहुत पहले आपको बताया था कि फेसबुक पर एक दिन मुझे किसी ने बेटा कह कर पुकारा। 

मैंने बहुत गौर से उस आवाज को पहचानने की कोशिश की। हाँ, मेरी माँ लौट आयी थी। दो साल पहले मैं हरदोई की Urmila Shrivastava से मिला था। 

मैं उनसे संजय सिन्हा फेसबुक परिवार के दो मिलन समारोहों में मिल चुका था। और मैंने मन में तय कर लिया था कि जिस दिन उन्होंने मुझे आवाज दी कि बेटा तुम मुझसे मिलने हरदोई आओ, मैं चल पड़ूँगा। बिना कुछ सोचे, बिना कोई सवाल किए। 

एक शाम मेरे पास माँ का फोन आया और मैं दिल्ली से गाड़ी उठा कर हरदोई चला आया। अपनी हरदोई यात्रा के विषय में मैंने Shambhunath Shukla को बताया और मैंने उनसे पूछा कि क्या आप मेरे साथ हरदोई चलेंगे?

शंभू जी ने कहा, चलो। और इस तरह हम हरदोई चले आए। 

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माँ ने यहाँ सिर पर हाथ रख कर मुझे आशीर्वाद दिया। जैसे ही उन्होंने मेरे सिर पर अपना हाथ रखा, मेरे मन में एक लड्डू फूटा। 

शाम को यहाँ के डिप्टी कलेक्टर अशोक शुक्ला ने मुझे घर खाने के लिए बुलाया। मैं उनके घर पहुँचा। वहाँ 25 लोग मेरा इंतजार कर रहे थे। मेरे वहाँ पहुचंते ही, अशोक शुक्ला जी ने मेरा परिचय अपनी माँ से कराया। 

मैंने माँ के चरण स्पर्श किए। माँ ने मेरे ललाट पर टीका लगाया और सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया। 

माँ ने जैसे ही मेरे सिर पर हाथ रखा, मेरे मन में दूसरा लड्डू फूटा। 

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माँ ने कहा था कि वौ लौट आएगी। वो लौट आयीं। कई-कई रूपों में लौट आयीं। 

मेरे साथ आप भी रिश्तों के इस सफर का आनंद लूटने चले आइए। मेरी माँ की तरह आप भी अपने बच्चों के लिए रिश्तों की विरासत छोड़िए। 

नहीं तो एक दिन आदमी के पास सबकुछ होगा, पर वो तन्हा होगा। और कहने की जरूरत नहीं कि अकेलेपन से बड़ी सजा इस संसार में कोई और नहीं। 

(देश मंथन, 14 मार्च 2016)

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