संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कहा न कहानियाँ चल कर नहीं, दौड़ कर अब मेरे पास आने लगी हैं और अगर कहानियों में माँ-बेटे के रिश्ते की बात हो, तो फिर कहना ही क्या।
भारत माँ है। गाय माँ है। गंगा माँ है। क्या इत्तेफाक हैं, हमारे देश में माँ शब्द सबसे प्यारा और इज्जत भरा है, मगर सबसे अधिक शोषण भी इसी शब्द का है। मैं तो एक हजार माँओं की कहानी आपको सुना सकता हूँ, जहाँ माँ सिर्फ मरने का इंतजार कर रही है, अपने-अपने कपूतों की करतूत से आहत हो कर।
पर मैं भी क्या करूँ? मुझसे नकारात्मक कहानियाँ सुनाई नहीं जातीं। उन माँओं का दर्द मैं देखता हूँ, तो मन ही मन सिहर उठता हूँ और सोचता हूँ कि इनकी कहानी भी आपको सुनाऊँ, पर मेरी उंगलियाँ रुक जाती हैं। फिर मैं इंतजार करता हूँ ऐसी कहानी का, जिसमें रिश्तों की खुशबू हो, प्यार की चमक हो, और स्नेह की बरसात हो।
मैं इंतजार करता हूँ ऐसी कहानियों का क्योंकि मेरी माँ मुझसे कहा करती थी कि सुबह की शुरुआत अच्छी होनी चाहिए। माँ कहती थी कि नींद खुलते ही तुम अपनी हथेलियों को सबसे पहले देखना।
“अपनी हथेलियों को क्यों, माँ?”
“क्योंकि तुम्हारी हथेलियाँ तुम्हारे कर्म की कहानियाँ सुनाती हैं। तुमने कल क्या किया, उसकी सारी दास्ताँ तुम खुद सुन सकते हो, देख सकते हो। तुम जिन्दगी की सच्चाई को जी सकते हो। अगर तुम गुड ब्वॉय हो, तो तुम्हारी हथेलियाँ तुम्हारी ओर देख कर मुस्कुराएंगी और सुबह की शुरुआत मुस्कुराहट से होनी चाहिए।”
तब का दिन है और आज का दिन, मैं सुबह जाग कर पहले अपनी हथेलियों को फैला कर देखता हूँ। एक पल में अपने कल के किए का लेखा-जोखा मेरी आँखों के आगे तैरने लगता है।
एक बार मैंने एक ऑटो वाले से झगड़ा किया था, तब मुझे पता नहीं चला था, पर अगली सुबह जब मैंने अपनी हथेलियों की ओर देखा था, तो मुझे खुद पर बहुत शर्म आयी थी।
“ये क्या, संजय सिन्हा, तुम राह चलते ऑटो वाले से झगड़ा करने के लिए इस धरती पर आये हो?”
मेरा यकीन कीजिए, उस शर्म के अहसास से मैं कई दिनों तक गुजरता रहा।
खैर, सुबह अपनी हथेलियों को देख कर आँखें खोलने के फलसफे ने मेरी जिन्दगी की दिशा को बदलने में और खुद को समझने में काफी अहम भूमिका निभाई।
इसीलिए मैं चाहता हूँ कि मेरे पास सुबह-सुबह एक सुंदर कहानी हो आपको सुनाने के लिए और मेरी इस चाहत का नतीजा है कि आजकल रिश्तों की कहानियाँ दौड़ कर मेरे पास पहुँच जाती हैं।
आइए आज आपको रिश्तों की खुशबू में डूबी एक बेहद शानदार कहानी सुनाता हूँ।
कहानी कर्नाटक के सेटीसारा नामक गाँव की है। कहानी एक माँ की है। कहानी एक बेटे की है।
सेटीसारा गाँव की एक महिला अपने रोज के काम करने के बाद गाँव के दूसरे छोर पर बने एक कुएँ से पानी लाने जाती थी। बेटा छोटा था, रोज माँ को देखता था कि माँ सुबह सारे काम करके पानी लेने जाती है। बहुत दूर से वो सिर पर पानी के घड़े लिए आती थी।
बेटा पूछता था कि माँ तुम रोज पानी लेने इतनी दूर क्यों जाती हो? माँ मुस्कुराती और कहती कि मैं तुम्हारे लिए साफ और मीठा पानी लाती हूँ, ताकि मेरा राजा बेटा खूब पानी पिए। खूब स्वस्थ रहे।
राजा बेटा आंगन में जमीन पर बैठ कर स्कूल की पढ़ाई करता रहता, माँ को पानी लाने के लिए कई-कई चक्कर लगाते देखता रहता।
बेटे का नाम था पवन कुमार। पवन कुमार मन ही मन सोचता कि बड़ा हो कर वो खूब पढ़ाई करेगा। माँ की बहुत सेवा करेगा। माँ के सारे दर्द दूर कर देगा। पर वो कब बड़ा होगा? गरीबी कब पीछा छोड़ेगी? कब माँ की सेवा कर पाएगा?
पवन हाई स्कूल में पहुँच गया। माँ का पानी लाने वाला रोज का क्रम जारी रहा।
पवन मन ही मन सोचता कि अगर गाँव के उस छोर पर कुआँ है, तो कुआँ तो उसके घर के पास भी हो सकता है। ये सवाल उसके मन में कौंधता रहता। और एक दिन पवन पहुँच गया हाइड्रोलॉजी एक्सपर्ट के पास। वहाँ पहुंच कर उसने कुएँ के बारे में पूरी जानकारी ली।
अब सवाल था कि कुआँ खोदा कैसे जाए? मजदूर कहाँ से आएंगे? यही सब सोचता-सोचता वो आंगन में ही सो गया। उसने सपने में देखा कि माँ पानी लाने दूर गयी है, वो पानी लेकर आ रही है और फिर वो रास्ते में गिर पड़ी है। माँ को बहुत चोट लगी है।
पवन घबरा कर नींद से जागा। उसने कुदाल उठाया और घर के पास मिट्टी खोदने लगा। वो मिट्टी खोदता गया, खोदता गया।
उसकी बारहवीं की परीक्षा सिर पर थी। वो पढ़ाई करता, फिर मिट्टी खोदता, फिर पढ़ाई करता, फिर मिट्टी खोदता। कुल मिला कर 45 दिन लगे।
उसने पूरे मनोयोग से इस बीच अपनी परीक्षा दी और परीक्षा खत्म होते-होते उसने 53 फीट गहरा कुआँ खोद दिया।
इतना करने के बाद उसने उस व्यक्ति को बुलाया जिसने उसे कुआँ खोदने के विषय में जानकारी दी थी। उस व्यक्ति ने आकर कुआँ देखा तो हैरान रह गया। बस दो फीट नीचे पानी था।
अब क्या था। पवन कुमार ने दो फीट और खोदा। धरती माँ का दिल उस बेटे की कोशिशों के आगे पिघल गया और जमीन से पानी की धारा फूट पड़ी।
पानी के धार को देख कर पूरे गाँव में खुशी की लहर दौड़ पड़ी।
अब पवन कुमार के घर के पास एक बहुत बढ़िया कुआँ है। न सिर्फ पवन की माँ, बल्कि आस-पास की ढेरों माँएँ रोज पवन को दुआएँ देती हैं। पवन रोज सुबह उठ कर अपनी उन हथेलियों को देखता है, जिनमें बड़ी-बड़ी गाँठ पड़ गयी हैं। वो उन गाठों को चूमता है। वो खुश होता है कि माँ को अब पानी भरने के लिए दूर बहुत दूर नहीं जाना पड़ता।
(देश मंथन, 28 अप्रैल 2016)