विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
पहाड़ का सीना चीर कर सड़क बनाने वाले दशरथ माँझी के जीवन पर अत्यंत खूबसूरत फिल्म बनी है माँझी द माउंटेन मैन। माँझी ने अपने जीवन काल में एक बार रेलवे ट्रैक से होते हुए पैदल ही गेहलौर से दिल्ली की 1400 किलोमीटर की दूरी तय की थी।
उनकी दिल्ली तक की यात्रा का उद्देश्य था वजीरगंज से अपने गाँव तक सड़क का निर्माण करवाना। फिल्म में उनकी इस यात्रा को दिखाया गया है। वे सासाराम जंक्शन पर और सासाराम के प्रसिद्ध शेरशाह के मकबरे के बैकड्राप में यात्रा करते हुए दिखायी देते हैं। इस तरह केतन मेहता की इस फिल्म में सासाराम का ऐतिहासिक शेरशाह का मकबरा दिखायी देता है। दशरथ माँझी को अपनी दिल्ली तक की इस पैदल यात्रा में दो महीने का समय लगा। तकरीबन 60 दिन में 1400 किलोमीटर यात्रा यानी एक दिन में औसतन 25 किलोमीटर की यात्रा। कहा जाता है कि माझी गया से दिल्ली पैदल इसलिए गये क्योंकि उनके पास रेल टिकट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। यात्रा के मार्ग का पता नहीं था इसलिए रेलवे लाइन के साथ साथ चलते हुए दिल्ली पहुँचे।
कबीरपंथी माँझी
इस दौरान उन्होंने रास्ते में पड़ने वाले सभी स्टेशन मास्टरों के हस्ताक्षर भी लिये थे। संत कबीर के अनुयायी माँझी अक्सर ट्रैक्टर के खराब हो चुके टायरों का जूता पहनते थे। उनके जैकेट रिसाइकल्ड जूट बोरों से बनाए हुए होते थे। उनके गले में कबीर पंथी माला देखी जा सकती थी।
अब शानदार फिल्म
बॉलीवुड के अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दकी ने दशरथ माँझी की भूमिका अपने शानदार अभिनय से जीवंत कर दिया है। निश्चय ही वे इस साल के बेस्ट एक्टर के दावेदार हैं और ये फिल्म साल की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए। उनकी पत्नी फगुनिया की भूमिका में पूणे कि अत्यंत सुन्दर अभिनेत्री राधिका आप्टे खूब फबी हैं। फिल्म की ज्यादातर शूटिंग गया के पास दशरथ माँझी के गाँव में ही हुई है। कुछ दृश्य सासाराम, वाराणसी, आगरा, दिल्ली और वाई (महाराष्ट्र) में फिल्माए गये हैं। माँझी- माउंटेन मैन साल 2015 की सबसे अच्छी फिल्मों में हैं। हर वर्ग के लोग जरूर देखें प्रेरणा मिलेगी।
अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है – दशरथ माँझी
वैसे तो कहावत है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता। पर अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है, ये दशरथ माँझी ने कर दिखाया था। दशरथ ने अपने गाँव में पहाड़ को चीर कर उसमें रास्ता बनाने के लिए अपनी बकरी को बेचकर छेनी और हथौड़ा खरीदा और 22 साल की कड़ी मेहनत के बाद एक असंभव सा दिखने वाला कारनामा कर दिखाया। गया जिले में गेहलौर उन 2000 से ज्यादा मुसहर समुदाय के लोगों का घर है जो कभी अपनी आजीविका के लिए चूहे खाते थे। पर अब वहाँ का नजारा बदल चुका है। आज उनकी बदौलत गाँव में स्कूल, बिजली और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आदि पहुँच चुके हैं।
पत्नी की मौत से मिली प्रेरणा
वर्ष 1960 में दशरथ माँझी की पत्नी फगुनी देवी गर्भावस्था में पशुओं के लिए पहाड़ से घास काट रही थी कि उसका पैर फिसल गया। दशरथ उसे लेकर शहर के अस्पताल गया, पर दूरी के कारण वह समय पर नहीं पहुँच सके, जिससे पत्नी की मृत्यु हो गई। बात दशरथ के मन को लग गयी। निश्चय किया कि जिस पहाड़ के कारण मेरी पत्नी की मृत्यु हुई है, मैं उसे काटकर रास्ता बनाऊँगा, जिससे भविष्य में किसी अन्य बीमार को अस्पताल पहुँचने से पहले ही मृत्यु का वरण न करना पड़े।
पहाड़ मुझे उतना ऊँचा कभी नहीं लगा जितना लोग बताते हैं। मनुष्य से ज्यादा ऊँचा कोई नहीं होता। हमें कभी ईश्वर के भरोसे नहीं बैठना चाहिए, क्या पता भगवान ही हमारे भरोसे बैठा हो। — दशरथ मांझी
दशरथ मांझी – 1934 – 17 अगस्त 2007
माउंटेन कटर ने काटा पहाड़ – 360 फीट ऊंचा, 30 फीट चौड़ा और 25 फीट गहरा
कितना वक्त लगा – 22 साल
1960 में काम आरंभ हुआ, 1982 में रास्ता बना डाला
2011 में बिहार सरकार ने वहाँ सड़क बनवा डाली।
55 किलोमीटर की दूरी घटकर हुई 15 किलोमीटर (अतरी से वजीरगंज की)
(देश मंथन 03 सितंबर 2015)