मुंबई पुणे एक्सप्रेस वे पर रफ्तार का आनंद

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई और महाराष्ट्र के सांस्कृतिक शहर पुणे को जोड़ता है मुंबई पुणे एक्सप्रेस वे। ये देश का पहला एक्सप्रेस वे है।

इसके चालू होने के बाद मुंबई और पुणे का सफर सुहाना हो गया साथ ही समय की भी काफी बचत होने लगी। अपनी गाड़ी हो तो आप डेढ़ घंटे में मुंबई से पुणे पहुँच सकते हैं। हमें पुणे से मुंबई की ओर इस एक्सप्रेस पर सफर का मौका मिला 2015 के अप्रैल में। शानदार सड़क और आसपास में दिलकश नजारे। कब पुणे से मुंबई पहुँच गये पता भी नहीं चलता। आधिकारिक तौर पर यह  ‘यशवंत राव चौहान मुंबई पुणे एक्सप्रेस वे’ के रूप में जाना जाता है। अगर बारिश का मौसम हो तब मुंबई पुणे एक्सप्रेस वे पर ड्राइविंग बहुत बहुत खूबसूरत अनुभव है। दोनों तरफ पर पहाड़ों के साथ सुन्दर नजारों के एक नए पुणे को देखा जा सकता है।

देश का पहला तीव्रगामी मार्ग 

महाराष्ट्र सरकार द्वारा सबसे महत्वाकांक्षी परिवहन परियोजना ‘मुंबई – पुणे एक्सप्रेस वे’ 5 अप्रैल 2000 को यातायात के लिए खोला गया था। पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार से पर्यावरणीय मन्जूरी अक्तूबर 1997 में प्राप्त की गयी थी। नितिन गडकरी ने महाराष्ट्र सरकार में लोक निर्माण मंत्री रहते हुए ‘मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे’ और 55 फ्लाईओवर बनाकर मुंबई  को एशिया के प्रमुख शहरों के मुकाबले में खड़ा किया। इसका श्रेय उन्हें मिलता है।

सफर का समय हुआ आधा 

पुराने समय में मुंबई से पुणे सफर करने के मुकाबले एक्सप्रेस वे से 2 घन्टे में आप मंजिल तक पहुँच जाते हैं। जबकि राष्ट्रीय राजमार्ग 4 से जाने पर 4-5 घन्टे का समय लग जाता है। इस तरह दो महत्त्वपूर्ण शहरों के बीच यात्रा के समय में काफी बचत हो जाती है। एक्सप्रेस वे के दोनों ओर कई जगह बाड़ लगायी है ताकि जंगल के जानवर वाहनों की गति में कोई बाधा पैदा न करें। इस एक्सप्रेस वे पर दो पहिया वाहन, तिपहिया और ट्रैक्टर की अनुमति नहीं है। जगह-जगह पेट्रोल पंप, ढाबे, शौचालय, आपातकालीन फोन, प्राथमिक चिकित्सा, सीसीटीवी आदि के इंतजाम हैं। मुंबई और पुणे के बीच रास्ते में तीन टोल पड़ते हैं। मुंबई के पास पनवेल में ये एक्सप्रेस वे खत्म हो जाता है और आप मुंबई में प्रवेश कर जाते हैं।

कोंकण रेल कारपोरेशन ने बनवाईं सुंरगें 

मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे में कई सुरंगें भी आती हैं। ये सुंरगें ऊँचे पहाड़ों के अन्दर से निकलती हैं। इन सुंरगों के निर्माण में कोंकण रेल कॉरपोरेशन की भूमिका है। रास्त में कुल पाँच सुरंगें हैं, जिनकी कुल दूरी साढ़े पाँच किलोमीटर की है। इनके निर्माण में 200 करोड़ रुपये खर्च आया था। इन सुरंगों में रोशनी का इंतजाम किया गया है साथ ही हवा का भी इंतजाम है। कोंकण रेल के लिए सुंरगें बनाने में जिस तकनीक का इस्तेमाल हुआ उसका लाभ मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे को मिला।

(देश मंथन, 04 जून 2015)

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