विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
महाराष्ट्र के नांदेड़ शहर में स्थित हुजुर साहिब का ऐतिहासिक गुरुद्वारा गोदावरी नदी से कुछ ही दूरी पर स्थित है। खालसा पंथ के पाँच तख्तों में से एक सचखंड साहिब। इसे तख्त सचखंड श्री हुजुर अबिचल नगर साहिब के नाम से भी जाना जाता है।
अबिचल यानी जो अमर है ऐसा नगर है नांदेड़। नांदेड़ महाराष्ट्र का एक अनाम सा शहर था जो गुरु जी के साथ जुड़ने के बाद सचमुच अमर हो गया। सिख पंथ के दशम और आखिरी गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने अन्तिम कुछ महीने इस स्थान पर गुजारे थे। इसी स्थान पर सरहंद के नवाब वजीर खान के भेजे हुए दो पठान भाइयों ने गुरुजी पर कातिलाना हमला किया था।
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 में बिहार राज्य में पटना साहिब में हुआ था। इसलिए सिख इतिहास में दो शहरों पटना साहिब और नांदेड़ का काफी महत्व है। 7 अक्तूबर 1708 को गुरु गोबिंद सिंह जी ने नांदेड़ में देह छोड़ दिया था और अपने प्यारे घोड़े दिलबाग के साथ परलोक गमन किया था।
इसलिए इस स्थान का सिख इतिहास में खास महत्व है। यही वह जगह है जहाँ गुरु जी ने सितंबर 1707 में बैरागी साधु माधो सिंह को सिख पंथ में दीक्षा दी थी और उन्हें बंदा बहादुर नाम दिया था। सिख इतिहास में बंदा बहादुर का नाम बडे सम्मान से लिया जाता है वे अगले सात साल तक पंजाब में मुगलों के खिलाफ बहादुरी से लड़ते रहे।
महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया निर्माण
सचखंड साहिब गुरुद्वारा का निर्माण महाराजा रंजीत सिंह जी ने करवाया। इसका निर्माण 1832 में आरंभ हुआ और 1839 में पूरा हुआ। जब महाराजा रंजीत सिंह जी को पता चला कि नांदेड में सरबंसदानी गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन का आखिर वक्त गुजारा था। तब उन्होंने चंदा सिंह को यहाँ विशाल गुरुद्वारा बनवाने का आदेश दिया। इस प्रकार सिख पंथ के इस महान गुरुद्वारे के निर्माण कार्य आरंभ हुआ। कहा जाता है कि गुरुजी जी चाहते थे कि मेरा कोई अंतिम स्थान न बने। जो अंतिम स्थान बनवाएगा उसका वंश नहीं चलेगा। पर महाराजा रणजीतसिंह ने कहा, चाहे मेरा वंश चले या नहीं मेरा फर्ज है कि मैं गुरु के स्थान की जितनी सेवा बन सकें करूं। नांदेड़ में विशाल गुरुद्वारे का निर्माण हुआ पर 1739 में महाराजा रणजीत सिंह के निधन के बाद काम रुक गया। इसलिए गुरुद्वारे के ऊपर की मंजिले नहीं बन सकीं। बाद में महाराजा नाभा और महाराजा फरीदकोट ने भी इस गुरुद्वारे के निर्माण में योगदान किया।
सचखंड साहिब में एेतिहासिक बावड़ी
कहा जाता है कि इस गुरुद्वारे के निर्माण के दौरान कार सेवा में यहाँ पानी की काफी किल्लत महसूस की गयी। तब 1838 में जत्थेदार बाबा गहू सिंह जी ने यहाँ एक विशाल कुएँ का निर्माण कराया। इसके बाद से ये परंपरा है कि हर रोज एक गागर पानी इस बावड़ी से और एक गागर जल गोदावरी नदी से लाकर सिंहासन साहिब को स्नान कराया जाता है।
अब सिख संगत ने इस गुरुघर को और भी भव्य रूप प्रदान किया है। अब सचखंड साहिब का विशाल परिसर है, जिसमें प्रवेश के लिए चार द्वार बने हैं। दुनिया भर में फैले सिख पंथ के लोगों की बड़ा तीर्थ होने के कारण यहाँ सालों भर रौनक रहती है।
नांदेड़ के बारे में दशमेश पातशाह का वचन है कि मैं यहाँ हर सिख का 60 साल तक इंतजार करता हूँ। कहा जाता है नवाब वजीर खान द्वारा भेजे गये कातिलों के खूनी हमले के बाद जब दशमेश पिता परलोक गमन की तैयारी करने लगे तब संगत ने उनसे पूछा कि आप हमें किसके भरोसे छोड़ कर जा रहे हो। तब गुरुजी ने कहा हम आपको ऐसा सहारा दे चलें हैं जो हरदम आपकी अगुवाई करेगा।
यही वह पवित्र स्थान है जहाँ गुरु जी ने देह धारी गुरु प्रथा को समाप्त करते हुए गुरुगद्दी भी गुरु ग्रंथ साहिब जी के सुपुर्द कर दी थी। यानी गुरु मान्यो ग्रंथ। संगत से मुखातिब होकर गुरुजी ने फरमाया-
अगिया भई अकाल की, तबै चलायो पंथ, सब सिखन को हुकुम है गुरु मान्यो ग्रंथ।
गुरु ग्रंथ जी मान्यो प्रगटगुरां जी देह, जो प्रभ को मिलबो चहै, खोज शबद मे लेह।
नादेड़ शहर में श्री हुजुर साहिब के अलावा लंगर साहिब, गुरुद्वारा गोबिंद बाग, नगीना घाट जैसे दर्शनीय गुरुद्वारे भी हैं।
हुजुर साहिब में मनाए जाने वाले विशेष त्योहार
गुरु परब के अलावा भी कई मौकों पर हुजुर साहिब में विशेष रौनक होती है। दशहरा और होली के मौके पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ पंजाब और अन्य शहरों से पहुँचते हैं। विशेष दीवान सजाए जाते हैं और नगर कीर्तन निकलता है। इसमें खालसाई निशान, गुरु जी के घोड़ों की शान देखी जा सकती है। वैशाखी, कार्तिक पूर्णिमा और पौष सुदी सप्तमी के मौके पर यहाँ से विशेष जुलुस निकाले जाते हैं।
दिवाली के एक दिन पहले तख्त स्नान होता है। इस मौके पर सिहांसन साहिब की साफ सफाई करके संगत के दर्शन के लिए बाहर सजाया जाता है। तख्त साहिब और सिंहाशन साहिब की सेवा गोदावरी नदी से जल लाकर की जाती है। गुरु परब के दो त्योहार यहाँ बड़े धूमधाम से मनाये जाते हैं। पहला कार्तिक सुदी दूज, गुरुतागद्दी दिवस और कार्तिक सुदी पंचमी (गुरु गोबिंद सिंह जी परलोक गमन दिवस) की यहाँ पर धूम होती है। इन समारोह में देश के जाने माने कीर्तनीए अपने भजनों से संगतों को निहाल करते हैं।
दशमेश पिता की निशानियाँ
श्री हुजुर साहिब गुरुद्वारे में हर शाम को गुरु गोबिंद सिंह से जुड़ी कुछ निशानियाँ संगतों को दिखायी जाती हैं। इसमें छोटी कृपाण जिसे गुरु गोबिंद सिंह जी पगड़ी में धारण करते थे शामिल है। इसके अलावा सोने की कारीगरी की हुई दो तलवारें, कीमती हीरा जड़ित महाराजा रणजीत सिंह जी का तेगा आदि शामिल हैं।
संयोग से हम जिस दिन श्री हुजुर साहिब के दर्शन के लिए पहुँचे हैं, रामनवमी का दिन है। देश और विदेश से आये श्रद्धालुओं से गुरुघर पटा पड़ा है। शाम को गुरुद्वारे में दशम गुरु द्वारा इस्तेमाल किए गए शस्त्रों का प्रदर्शन किया जा रहा है। इस गुरुद्वारा में दशमेश पिता की कई निशानियाँ संभाल कर रखी गयी हैं। संगत उन्हें देख कर निहाल हो रही है। शाम के सात से ज्यादा बजे हैं। हम गुरुद्वारे में मत्था टेक कर निहाल हो चुके हैं। अब हमें लंगर की ओर जाने को कहा जाता है। लंगर में आज दाल रोटी के साथ सब्जी और खीर भी मिली।
(देश मंथन 29 मई 2016)