विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
बेतिया जिले के लौरिया में अशोक स्तंभ के अलावा एक और ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल है नंदनगढ़ का बौद्ध स्तूप। लौरिया चौक से बौद्ध स्तूप बायीं तरफ है। लौरिया बाजार को पार करके गाँव के अन्दर एक विशाल टीला आता है जहाँ पर ये स्तूप स्थित है।
1880 में इतिहास सर एलेक्जेंडर कनिंघम ने नंदनगढ़ को ढूँढा। गैरिक ने इसी साल यहाँ खुदाई करायी। ये बौद्ध स्तूप दूर से देखने में एक विशाल टीले सा नजर आता है। कुछ लोगों का मत है कि ये कोई किला रहा होगा। पर कई इतिहासकारों का कहना है कि किला इतना कम दायरे में नहीं हो सकता। 1880 के खुदाई के दौरान यहाँ तीन मिट्टी के द्वीप मिले जिस पर अशोक कालीन अभिलेख मिले हैं।
इतिहासकार स्मिथ के मुताबिक ये बौद्ध अस्थि स्तूप हो सकता है। हालाँकि इतिहासकार ब्लाच इसे प्राचीन दुर्ग यानी किला ही मानते हैं। 1935-36 में इतिहासकार एनजी मजूमदार ने इस स्थल पर सिलसिलेवार ढंग से खुदाई करायी जो 1942 तक जारी रही। यहाँ दो स्तूपों में खुदाई के दौरान राख और आदमी की जली हुई हड्डियाँ पायी गयी थीं। यहाँ सोने के पत्तर पर बनी हुयी देवी की मूर्ति भी मिली थी। ऐसी ही मूर्ति बस्ती जिले के पिपरवा के बौद्ध स्तूप में मिली थी।
खुदाई के दौरान यहाँ ईंट से बने हुये 24.38 मीटर ऊँचे स्तूप के अवशेष प्राप्त हुए। नंदनगढ़ की संरचना बहुकोणीय है। यह पाँच वेदिकाओं के ऊपर अवस्थित है। इसमें तीन वेदियों पर परिक्रमा करने योग्य रास्ता बना हुआ है। दीवार के सामने ईंटो पर शानदार काम किया गया है। बौद्ध स्तूप पर कुल 13 किनारे नजर आते हैं। किले की पूरी संरचना वृताकार है। संरक्षण के लिहाज से इसकी बाउंड्री की गई है। आप पूरे स्तूप का वृताकार परिक्रमा करके नजारा कर सकते हैं।
प्रवेश के लिए कोई टिकट घर नहीं है। यहाँ सुबह से लेकर शाम तक जाया जा सकता है। सुबह-सुबह मुझे फौज में भर्ती होने वाले नौजवान किले के चारों तरफ दौड़ लगाते हुए नजर आये। मजूमदार इसे बौद्ध स्तूप ही मानते हैं। सिक्के एवँ मुद्रांकों से ये पता चलता है ये बौद्ध स्तूप पहली शताब्दी के आसपास बना होगा।
नंदनगढ़ के दो तरफ आम के विशाल बाग नजर आते हैं तो एक तरफ चीन मिल और खेत देखे जा सकते हैं। इतिहास में रूचि रखने वाले लोगों को नंदनगढ़ जरूर पहुँचना चाहिये। बौद्ध स्तूप को चारों तरफ से घूम कर देखा जा सकता है। इसके ऊपर चढ़ने की मनाही है।
कैसे पहुँचे
लौरिया के मुख्य बाजार से यहाँ तक पैदल या फिर अपने निजी वाहन से पहुँचा जा सकता है। ये स्तूप चीनी मिल के ठीक पीछे स्थित है। लौरिया बाजार से रास्ता पूछते हुए मैं नंदनगढ़ की ओर चला। पूरा बाजार पार करने के बाद पगड़ंडियों वाला रास्ता आता है। दोनों तरफ खेत और आम के पेड़ दिखायी देते हैं।
नंदनगढ़ के स्तूप की तराई में छोटा सा गाँव भी है। लौरिया में ठहरने के लिए होटल उपलब्ध नहीं है। पर चाय नाश्ता मिल जाता है। आप यहाँ नाश्ते में पूरियाँ या दही चूड़ा खा सकते हैं।
(देश मंथन 27 जून 2015)