खत्म हुआ शकुंतला एक्सप्रेस का सफर

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विद्युत प्रकाश मौर्य :

जुलाई 2014 में देश के मानचित्र से एक नैरो गेज ट्रेन विदा हो गई। महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में यवतमाल से मुर्तुजापुर ( अकोला जिला) के बीच 112 किलोमीटर का नैरो गेज रेल नेटवर्क हुआ करता था।

24 जुलाई 2014 से ये सफर थम गया। इस मार्ग पर नैरो गेज की लोकप्रिय शकुंतला एक्सप्रेस चलती थी। इस ट्रेन का नाम रुमानी था। धीमी गति की ये रेल विदर्भ के लोगों में लोकप्रिय भी थी। ब्रिटिश काल में 1916 के आसपास कपास की ढुलाई के लिए ये लाइन बिछाई गई थी। यहां से कपास ब्रिटेन के मैनेचेस्टर भेजा जाता था।

बाद में इस लाइन पर यात्री ट्रेनों का संचालन शुरू किया गया। इस लाइन पर ट्रेनों का संचालन ब्रिटेन की कंपनी क्लिक निक्सन करती थी। देश आजाद होने के बाद भी एक अनुबंध के तहत यही कंपनी इस रेल मार्ग का संचालन करती रही। पर अब उसका भारतीय रेलवे से अनुबंध खत्म हो गया है। ये लाइन भी लंबे समय से घाटे में चल रही थी। कंपनी 2002 से लगातार इस रेलवे लाइन को घाटे में दिखा रही थी। वहीं इलाके के कई संगठन इस निजी कंपनी से इस रेलवे लाइन को आजाद कराने के लिए आंदोलन भी कर रहे थे।

लोगों की मांग है कि इस मार्ग को ब्राडगेज में बदला जाए। कुछ लोगों का ये भी तर्क है कि इस मार्ग के ब्राडगेज में बदले जाने से दिल्ली से चेन्नई के बीच की दूरी 200 किलोमीटर कम हो सकती है।

यवतमाल मुर्तुजापुर लाइन पर हर साल बारिश के दिनों में परिचालन बंद कर दिया जाता था। पर 2014 के मानसून के बाद ये ट्रेन इतिहास हो गई। पिछले 60 सालों से इस लाइन पर मरम्मत का काम नहीं किया गया था। जेडीएम सीरीज के डीजल लोको की अधिकतम गति 30 किलोमीटर प्रति घंटे रखी जाती है, पर खराब ट्रैक के कारण इस मार्ग पर 20 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से ही ट्रेनें चलाई जाती थीं। भारतीय रेलवे के 150 कर्मचारी इस घाटे के मार्ग को संचालित करने में लगे थे। यवतमाल और मुर्तुजापुर के बीच 17 रेलवे स्टेशन हुआ करते थे। देश आजाद होने के साथ भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण हो गया। पर कई निजी कंपनियां कुछ नैरो गेज नेटवर्क पर संचालन करती रहीं। इनमें से ज्यादातर का संचालन अब बंद हो चुका है। पर यवतमाल और मुर्तुजापुर नैरो गेज संभवतः आखिरी निजी क्षेत्र की नेटवर्क थी जो 2014 तक संचालन में रही।

(देश मंथन, 20 फरवरी 2015)

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