बैल खींचते थे रेलगाड़ी

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विद्युत प्रकाश मौर्य :

नैरोगेज की बात करें तो इसका मतलब 2 फीट 6 ईंच ( 762 एमएम) पटरियों के बीच की चौड़ाई वाली रेलवे लाइन। हालाँकि कुछ नैरोगेज लाइनों की चौड़ाई दो फीट भी है। भारत में पहली नैरोगेज लाइन गुजरात में 1862 में दभोई से मियागाम के बीच बिछाई गई। ये 762 एमएम की नैरोगेज लाइन गायकवाड बड़ौदा स्टेट रेलवे ने बिछाई।

इस रेलवे लाइन की योजना बनाई थी बड़ौदा के महाराजा सर खांडेराव गायकवाड ने। यह रेलवे बड़ौदा के गायकवाड रियासत के अंतर्गत आती है। इस लाइन को बिछाने का ठेका नीलसन एंड कंपनी ने लिया था। वडोदरा जिले के दभोई से मियागाम के बीच बिछाई गई इस रेलवे लाइन की कुल लंबाई 20 मील ( 30 किलोमीटर) थी। हालाँकि यहाँ रेलगाड़ी की बोगियों को खींचने के लिए बैलों को इस्तेमाल किया जाता था। अगले एक दशक तक बैल ही इस्तेमाल किए जाते रहे। बाद बैलों की अलोकप्रियता को देखते हुए 1873 रेल की पटरियों में बदलाव कर यहाँ भारी पटरियाँ बिछाई गईं तब इन्हें लोको (इंजन) से खींचने के लिए स्टीम इंजन लाए गए। पहले बिछाई गई पटरियाँ हल्की थीं, लिहाजा वे स्टीम इंजन चलाए जाने के अनुकूल नहीं थीं। स्टीम इंजन से चलने वाली रेलवे के लिहाज से भी 1873 में ये देश की पहली नैरोगेज रेलवे लाइन थी।

कभी गुजरात में था नैरोगेज रेलवे का बड़ा नेटवर्क

बड़ौदा के महाराजा गायकवाड ने अपनी कंपनी जीबीएसआर (गायकवाड बड़ौदा स्टेट रेलवे) के तहत नैरोगेज रेलों का एक बड़ा जाल बिछाया। उनका उद्देश्य राज्य के सभी प्रमुख शहरों को बड़ी लाइन के नेटवर्क (बांबे बड़ौदा सेंट्रल रेलवे) से नैरोगेज के संपर्क मार्गों से जोड़ने का था। इस मार्ग दभोई नैरोगेज का बड़ा केंद्र बन गया। बाद में इस नैरोगेज मार्ग का विस्तार चांदोद, जांबुसार, छोटा उदयपुर, टिंबा जैसे शहरों तक किया गया। जीबीएसआर के नेटवर्क के तहत पेटलाड से दूसरे नैरोगेज लाइन का भी निर्माण कराया गया। वहीं नवसारी में दूसरे नैरोगेज लाइन का निर्माण कराया गया। यहाँ कोसांबा से उमरपाडा और बिलीमोरा से वघई के बीच नैरोगेज लाइनें बिछाई गईं।

वहीं बोदेली छोटा उदयपुर रेलवे कंपनी गायकवाड और छोटा उदयपुर महाराजा की संयुक्त स्वामीत्व वाली कंपनी थी। एक फरवरी 1917 को बोदेली और छोटा उदयपुर के बीच रेलवे लाइन का संचालन शुरू हुआ। 36.48 किलोमीटर लंबी लाइन के निर्माण में तब 10 लाख रुपये का खर्च आया था। अब इस क्षेत्र के कई रेल मार्ग ब्राडगेज में बदले जा चुके हैं फिर भी गुजरात में 260 किलोमीटर से ज्यादा लंबा नैरोगेज रेलमार्ग संचालन में है।

(देश मंथन, 24 फरवरी 2015)

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