धैर्य, लगन और ईमानदार मेहनत से मिलता है पुरस्कार

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

आज मुझे एक गुदगुदाने वाले रिश्ते के बारे में लिखना था, लेकिन सुबह जैसे ही नींद खुली याद आया कि आज कंगना रनाउत से मिलना है।

उसी कंगना से जिसे कल सर्वश्रेष्ठ फिल्मी हीरोइन का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है।

कंगना इन दिनों हरियाणा में शूटिंग में व्यस्त हैं। परसों अपने जन्मदिन पर उन्होंने पार्टी दी थी और आने वाली फिल्म ‘तनु वेड्स मनु-पार्ट टू’ के पोस्टर को भी लांच किया था। कंगना से मैं कई बार मिल चुका हूँ, लेकिन पिछले साल जब उनकी फिल्म ‘क्वीन’ आने वाली थी तब मैं काफी देर उनके साथ बैठ कर फिल्म पर चर्चा करता रहा था। कंगना मेरी पसंदीदा हीरोइनों में से एक हैं। क्वीन के मौके पर जब वो हमारे दफ्तर आयी थीं, तब मैं कल्पना भी नहीं कर पा रहा था कि क्वीन सचमुच ऐसी फिल्म होगी, जो मेरी सबसे पसंदीदा दस फिल्मों में से एक बन जायेगी। मुझे लगता है कि फिल्म को बनाने वाले विकास बहल ने भी ऐसी कल्पना नहीं की होगी कि कुछ अकल्पनीय संसार उन्होंने रच दिया है। कंगना काफी देर मेरे साथ बैठी रहीं फिर उन्होंने कहा कि वो दिल्ली की चाट खाना चाहती हैं, मैंने खास तौर पर उनके लिए चाट मंगाई और कंगना ने बड़े प्यार से चाट को चट किया। 

इससे पहले जब भी कंगना से मैं मिला हूँ, कंगना थोड़ी डरी सहमी सी नजर आती रही हैं। बड़ी-बड़ी हीरोइनों की तरह उनके लटके-झटके नहीं हैं। वो जो करती हैं, कहती हैं पूरी संवेदना और शिद्दत से करती और कहती हैं। उन्हें देख कर अहसास होता है कि ये तो अपने पड़ोस वाली लड़की है। खूब गोरी, एकदम पतली, पतले-पतले होंठ और खोयी-खोयी सी आँखें। बोलते हुए जुबान थोड़ी इठलाती है और उनका ये अंदाज उन्हें कुदरती तौर पर मासूम बना देता है। 

जब मैं क्वीन फिल्म देख रहा था तो मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं फिल्म नहीं देख रहा, कंगना की बायोग्राफी देख रहा हूँ। कंगना ने जिंदगी को कुछ उसी अंदाज में जिया है, जिस अंदाज में वो फिल्म में आपको दिखी थीं। ये उन्हीं का अंदाज हो सकता है कि प्रेम में धोखा खाने के बाद अकेली हनीमून मना आएँ। ये उन्हीं का अंदाज हो सकता है कि वो चुंबन के सीन में भी शरमा जाएँ और ये भी उन्हीं का अंदाज हो सकता है कि जिसने उन्हें प्रेम में धोखा दिया, उसके आगे हाथ जोड़ कर प्यार की चिरौरी करें, और न मानने पर उसे ठुकरा कर उसे उसकी औकात दिखला दें। कंगना मन से सहारे की दरकार रखती हैं और सहारा न मिलने पर अकेले अपने दम पर जी कर किसी को चौंका सकती हैं। वो अपने गमों को जज्ब करना जानती हैं और बड़े से बड़े सदमे से उबरना भी जानती हैं। 

कई साल पहले उनकी बहन के चेहरे पर किसी ने तेजाब फेंक दिया था, तब वो और उनका पूरा परिवार किन मुश्किलों से गुजरा था और कंगना कैसे उसे उस सदमे से बाहर निकल पाई थीं ये जो लोग जानते हैं, वो ये भी जानते हैं कि कंगना ‘क्वीन’ तो वो बहुत पहले बन चुकी थीं, फिल्म भले पिछले साल आयी थी। कंगना इन दिनों हरियाणा में कहीं शूटिंग में व्यस्त हैं, लेकिन एक दिन पहले तमाम रिपोर्टरों से मिलते हुए उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि वो इस साल की सर्वश्रेष्ठ हीरोइन चुनी जायेंगी। वैसे जिन लोगों ने ‘क्वीन’ देखी है, वो जानते हैं कि सचमुच पिछले साल इससे बेहतर कोई फिल्म नहीं आयी थी। 

ये तो आम दर्शकों की बात है, लेकिन मुझ जैसे लोग जो कंगना से कई बार मिल चुके हैं, वो तो ये भी जानते हैं कि पूरे बॉलीवुड में कंगना जैसी क्वीन कोई है भी नहीं। कंगना उन लोगों में से है, जिसे बहुत पहले बॉलीवुड ने नकार दिया था। जो दर्शकों की निगाह में कभी सुपर ग्रेड की हीरोइन नहीं बन सकती थी, जिसके हमारे दफ्तर आने के बाद फोटो खिंचवाने के लिए मचलने वालों की लिस्ट बहुत छोटी थी, जो मेरी टेबल पर बैठ कर एक छोटी बच्ची की तरह पापड़ी और सोंठ को चाट-चाट कर खाने के बाद अपने ही अंदाज में थैंक्यू संजय जी कह कर खिलखिला कर हंस पड़ती हैं। 

फिल्म की बात छोड़ दें, तो जो जिंदगी की जंग को लड़ते हुए इस मुकाम तक पहुँच पाती हैं, जो कुछ पाने के लिए सिर्फ सपने नहीं देखतीं, जो सौ बार धोखा खाने के बाद भी टूट नहीं जातीं, जो मेहनत को ही कामयाबी का विकल्प मानती हैं, वही असली क्वीन बन पाती हैं, वही कंगना रनाउत कहलाती हैं। ऐसा बिल्कुल मत सोचियेगा कि सारे सिनेमा वाले मेरे दोस्त हैं, इसलिए मैं आज कंगना की स्तुति कर रहा हूँ, या फिर कंगना को सर्वश्रेष्ठ कलाकार का पुरस्कार मिल गया इसलिए मैंने कम्यूटर के ‘की बो’र्ड पर इतने बटन सुबह-सुबह दबा दिये। 

मैंने इतना सब सिर्फ इसलिए लिखा है, ताकि ये समझ सकें कि जिंदगी के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार को हम सब पा सकते हैं, बस जरूरत होती है धैर्य की, लगन की और ईमानदार मेहनत की। इतना जिसके पास होता है, उसे बिना गॉड फादर के भी ‘शहंशाह’, ‘बादशाह’ और ‘क्वीन’ का खिताब हासिल हो ही जाता है।

(देश मंथन, 26 मार्च 2015)

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