गोविंदाजी, अनिल कपूरजी का पड़ोस

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आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

प्रख्यात फिल्म अभिनेता गोविंदाजी एक इश्तिहार में दिल्ली-एनसीआर में एक घर के बारे में बता रहे थे कि उस हाउसिंग परियोजना में घर लेना कितना फायदेमंद हैं। गोविंदाजी मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादा काम नहीं कर रहे हैं, दिल्ली सैटल होने की सोच रहे हैं, ऐसा लगता है। गोविंदाजी का पड़ोस कैसा होगा, सोचने का विषय है। गोविंदाजी के पास टाइम बहुत है इन दिनों में, सोचता हूँ कि गोविंदाजी के पड़ोस में मकान ले लूँ, तो उनसे संवाद कैसे होगा-

गोविंदाजी कैसे हैं। क्या हाल हैं। 

मस्त हैं, मस्त हैं, मस्त हैं।

गोविंदाजी, बहुत दिन हुए किसी फिल्म में नहीं दिखे। 

दिखेंगे, दिखेंगे, दिखेंगे।

गोविंदाजी क्या कर रहे हैं आजकल। 

गोविंदाजी बदले में वो लक्ष्मी-यंत्र जैसा कुछ टिकाते हैं, जिसका इश्तिहार वह टीवी में करते हैं, जिसे खरीदने से रोजगार-समृद्धि आती है।

गोविंदाजी, आपको तो फिल्में मिल नहीं रही हैं, आपका रोजगार तो बढ़ ना रहा है, इस लाकेट-लक्ष्मी-यंत्र से, हमारा कैसे बढ़ जायेगा।

शट अप गेट- आउट। 

गोविंदाजी मुझे बाहर निकाल देंगे।

इधर बड़े आदमी हम जैसे आम आदमियों से जो एक-तरफा बात करते हैं, उनमें ये ही बताते हैं कि वो मकान खरीद लो, ये वाली ब्यूटी क्रीम लगा लो। वो वाली सूटिंग-शर्टिंग का सूट पहन लो। अरे भई, तुम इत्ते बड़े आदमी कुछ दुख-सुख का ज्ञान भी दिया करो हमको। नौकरी से निकाल दिये जायें, तो सिचुएशन कैसे हैंडल करें, इस पर कुछ बताओ। पर ना, हर बड़ा आदमी एक ही काम कर रहा है, माल बेच रहा है।

प्रख्यात अभिनेता अनिल कपूरजी भी एनसीआर की एक हाउसिंग परियोजना में घर लेने की सलाह देते हैं। अच्छी सलाह है, पर कपूर साहब इस हाउसिंग परियोजना में आप पड़ोसी हो गये, तो भी क्या हो जायेगा। दिल्ली, एनसीआर में जो कपूर नार्मल टाइप के कपूर हैं, अनिल नहीं हैं, वो तक बाद बात करने के लिए टाइम ना निकाल पा रहे, आपका पड़ोस लेकर क्या करेंगे। अनिल कपूर साहब के पड़ोस में आ गये, तो बात कुछ इस तरह से हो सकती है-

अनिल कपूर साहब कैसे हैं। 

झक्कास।

अनिल कपूरजी क्या चल रहा है। 

अभी एक कार बेचने वाले इश्तिहार की शूटिंग करके आ रहा हूँ। एक सीरियल की शूटिंग में जाना है। …………

अनिल कपूर साहब बच्ची का बर्थ डे है, सब पड़ोसियों को आमंत्रित किया है आप भी आइये, शाम को घर पर। 

मैं किसी इवेंट में जाने के पच्चीस लाख लेता हूँ।

मैं यह सुनकर बेहोश हो जाऊँगा।

बड़े आदमी का पड़ोस खतरनाक होता है। किसी के सुख-दुख में जाने को वह इवेंट में आना-जाना मानता है और उस हिसाब से फीस वसूलता है। मैं कल को मर गया, और कोई पड़ोसी स्टार मेरी शव यात्रा में चला गया, तो शाम को इस इवेंट का बिल थमा देगा मेरी पत्नी को- निकालो 25 लाख। पत्नी गुस्सा होगी कि हाय मर कर भी चैन ना लेने दिया इस आदमी ने।

नो, नो, नो, बड़े आदमी का पड़ोस बहुत खतरनाक है। मुझे लगता है कि जल्दी ही तमाम हाउसिंग परियोजनाओं के कारोबारियों के कुछ अलग तरह के इश्तिहार निकालने होंगे। जैसे एक इश्तिहार यह होगा-

आयें, इस हाउसिंग परियोजना में घर बुक करायें, आपको पड़ोस में होंगे छेदीलाल, प्रख्यात प्याज-टमाटर आढ़तिया, थोक कारोबारी। आपको कभी महँगा प्याज ना खरीदना होगा। छेदीलालजी अपनी सोसायटी के पड़ोसियों को बहुतै सस्ते भाव पर, रेट टू रेट, लोन पर भी प्याज- टमाटर खरीदवायेंगे। छेदीलालजी के एकदम पड़ोस में सिर्फ पाँच फ्लैट बचे हैं। इन पर नार्मल फ्लैटों से दस प्रतिशत ज्यादा चार्ज लगेगा। पर आइये, फायदे देखिये, छेदीलाल के पड़ोस के।

हाउसिंग परियोजना बेचने का एक इश्तिहार यह हो सकता है- आइये, आइये घर बुक करायें, आपके पड़ोस में होंगे डाक्टर सदाचारी, ये आपके जुकाम के इलाज से पहले एमआरआई, टीएमटी, ईसीजी जैसे टेस्ट ना करवायेंगे, सीधे इलाज शुरू कर देंगे। आइये।

एक इश्तिहार यह हो-आइये घऱ बुक कराइये, आपके पड़ोस में होंगे चेयरमैन प्रसाद, जो एक टाप स्कूल के चेयरमैन हैं। आपके बच्चे का एडमीशन सिर्फ दो लाख के कंसेशनल डोनेशन पर करवा देंगे। नवविवाहित जोड़ों को दस परसेंट का डिस्काउंट, आइये बुक कराइये। 

अच्छे पड़ोसी ये होंगे, नहीं क्या।

(देश मंथन, 06 अगस्त 2015) 

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