नीरज गुप्ता, राष्ट्रीय ब्यूरो चीफ, आईबीएन 7 :
‘आदमी कुत्ते होते हैं और औरतें बिल्लियाँ’… अनुष्का शर्मा की NH10 खत्म होते-होते जनसत्ता में बरसों पहले पढ़ी प्रियदर्शन साहब का यह लेख मेरे जेहन में टहलने लगा। लेख का लब्बोलबाब यूँ कि कुत्ता आप पर भौंकता-गुर्राता है।
आपको डराता-दौड़ाता है, लेकिन जैसे ही आप पलटते हैं वो रुक जाता है। आप हमलावर होते हैं और कुत्ता डरकर पूंछ पिछली टांगों में दबा लेता है। आदमी भी कमोबेश यही होता है, लेकिन बिल्लियाँ… सहमी-घबराती निकलती हैं। आप उनकी तरफ दौड़ें तो खौफजदा होकर भागती हैं। अपने बचाव की हर मुमकिन कोशिश करती हैं, लेकिन बंद गली के आखिरी कोने में फंसने के बाद, जब कोई रास्ता नहीं बचता तो वे पलटती हैं और… उस वक्त शेरनी से भी खतरनाक होती हैं। औरतें भी ऐसी ही होती हैं। एनएच10 के क्लाइमेक्स में अनुष्का का चेहरा लगातार यही इजहार करता है- ‘मेरे पास इसके अलावा कोई रास्ता नहीं बचा’।
एनएच10 एक निस्तब्ध कर देने वाली थ्रिलर है जो ज्यादातर वक्त आपकी साँस रोके रखती है। वैसे भी, विद्या बालन की ‘कहानी’ जैसी दो-चार फिल्मों को छोड़ दें तो हिंदी सिनेमा के दर्शकों ने ‘डाकू हसीनाओं’ और ‘चंबल की नागिनों’ को ही ‘अत्याचारियों’ से बदला लेते देखा है। ऐसे में एक ‘इंग्लिश टाइप की मैडम’ का गाँव के गुंडों को दौड़ा-दौड़ा के मारना कई दृश्यों में रौंगटे खड़े कर देता है। इस कदर कि आप खुद को सीट के बिल्कुल अगले हिस्से पर बैठा पाते हैं।
निर्देशक नवदीप सिंह की यह फिल्म थ्रिल के साथ चकाचौंध महानगरों के मुहानों पर बसी कबीलाई जहनियत पर तीखे तमाचे भी मारती है। डायलॉग्स की एक बानगी देखिये- ‘जहाँ बिजली-पानी नहीं पहुँचता वहाँ कांस्टीट्यूशन क्या पहुँचेगा सर’। या फिर… ‘यही तो फर्क है आप अपनी कास्ट भी नहीं जानती और गाँव में 12 साल के बच्चे से पूछिये, अपना गोत्र भी बता देगा’।
एक सीन में सावित्री-सत्यवान के सांग (हरियाणा का लोकनृत्य) के जरिये मौजूदा हालात को पौराणिक संदर्भ में शानदार तरीके से छुआ गया है।
खुद देखिये और मजा लीजिये, इसलिये फिल्म की कहानी के बारे में ज्यादा नहीं। बस इतना ही कि एनएच10 पूरी तरह अनुष्का के कंधों पर है और उन्होंने बढ़िया अदाकारी की है। कम-से-कम इतनी कि अगले मैच में विराट से शतक का तोहफा तो बनता ही है:-)
देश मंथन (14 मार्च 2015)