विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
कोसांबा जंक्शन से मुझे बड़ौदा जाना था। मैंने आगे की यात्रा ट्रेन के बजाये बस से करने की सोची। क्योंकि इस मार्ग पर मैं ट्रेन से तो कई बार आवाजाही कर चुका था। कोसांबा में लोगों ने बताया कि भरुच की तरफ जाने वाली गाड़ियाँ हाईवे से मिलेंगी।
कोसांबा से ऑटो रिक्शा में बैठकर 5 किलोमीटर दूर बाइपास तक पहुँचा। पर बाईपास पर कोई बस स्टॉप नहीं था।
नेशनल हाईवे नंबर 8 अहमदाबाद से मुंबई के बीच फोर लेन का बन चुका है। पर इस फोर लेन हाईवे पर कोई भी बस वाला हाथ देने पर भी रोक नहीं रहा था। फिर लोगों ने सलाह दी की ट्रक से भी आगे जाया जा सकता है। मेरे साथ दो और सहयात्री आ गये। हमें देख एक छोटा ट्रक (टेंपो) रुका। हम उस खाली टेंपो में सवार हो गए। टेंपो में खड़े होकर एनएच आठ पर अंकलेश्वर की ओर सफर। हाईवे का विहंगम नजारा दिखायी दे रहा है। खड़े होकर सफर करते हुए हाईवे के दोनों तरफ विशाल ढाबे दिखायी दे रहे हैं, जिसमें आवासीय होने की भी जानकारी है। सीएनजी गैस के पंप, पेट्रोल पंप की कतार है। दिन हो या रात हाईवे गुलजार रहता है वाहनों से।
कोसांबा से आगे बढ़ते ही नहर पार करने के बाद गुजरात गैस सीएनजी पंप के दूसरी तरफ महुवेज गाँव में मुझे विशाल चाकलेट फैक्ट्री नजर आती है, इसमें सेल्स आउटलेट भी बना है। यह शमीन (schmitten) चाकलेट की फैक्ट्री है। स्विटजरलैंड का जाना-माना चाकलेट ब्रांड जो अब गुजरात में भी बनने लगा है। भारत में प्रियंका चोपड़ा इसकी ब्रांड एंबेस्डर हैं। सूरत की राजहंस न्यूट्रामिंस (देसाई- जैन समूह) इन चाकलेट्स का निर्माण करता है। हालाँकि मैं चाकलेट लेने के लिए उतर नहीं सका। अंकलेश्वर बाजार में टेंपो वाले ने हमें उतार दिया। किराया लिया 10 रुपये यानी बस से कम।
नर्मदा नदी पर ऐतिहासिक गोल्डेन ब्रिज
अंकलेश्वर गुजरात का बड़ा औद्योगिक और प्रदूषित शहर है। यहाँ से हमें भरूच के लिए मारूति ओमनी मिली। जो शेयरिंग में 15 रुपये प्रति सवारी की दर से आगे बढ़ी। भरूच शहर से बाहर निकलने पर नर्मदा नदी दिखायी देने लगती है। थोड़ी देर बाद ही हम ऐतिहासिक गोल्डेन ब्रिज पर थे। ये पुल 1881 का बना हुआ है। पुल बनाने की शुरुआत 1887 में हुयी। इस पुल के बनने से पहले गुजरात का मुंबई से संपर्क सिर्फ नाव से ही संभव था। शानदार लोहे का पुल जिसे सुनहले रंग से रंग दिया गया है अब गोल्डेन ब्रिज कहलाता है।
गोल्डन ब्रिज देश के ऐतिहासिक पुलों में शुमार है। तब इस पुल के निर्माण में 45.65 लाख की लागात आयी थी। पुल ने कई बाढ़, भूकंप और संकट झेले हैं पर आज भी सही सलामत है। गोल्डेन ब्रिज अंकलेश्वर से भरुच के बीच लोगों के दैनिक परिवहन का प्रमुख साधन है। पुल पर आजकल भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक है। गोल्डेन ब्रिज के ठीक बगल में रेलवे का पुल है। एनएच आठ पर काफी दूर जाकर नर्मदा पर नया पुल बन गया है। गोल्डेन ब्रिज पार करते ही भरूच शहर और रेलवे स्टेशन आ गया। यहाँ नर्मदा नदी के तट पर एक गुरुद्वारा भी है।
भरुच शहर और आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों के विकास में कांग्रेस नेता अहमद पटेल के बहुत बड़ा योगदान है। अहमद भरुच से तीन बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। यहाँ से पहला चुनाव उन्होंने 1977 में जनता लहर के दौरान कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर जीता था। भरुच में चीनी मिलें, उद्योग और रेलवे के विकास के लिए यहाँ के लोग पटेल को याद करते हैं।
भरुच बाईपास का बस स्टैंड
भरूच से बड़ौदा का सफर भी मैंने सडक मार्ग से करने की सोची। शहर से फिर बाईपास आटो में बैठकर आया। बाईपास में बस स्टैंड भी है और मारूति वैन वाले भी बड़ौदा की तरफ जाते हैं। वैन वाले 60 रुपये लिये और सवारी पूरी होने पर चल पड़ा एनएच 8 पर बड़ौदा की ओर। रास्ते में करजन, आलमगीर जैसे पड़ाव आते हैं। बड़ौदा शहर के बाहर से एनएच 8 गुजर जाता है। मैं टैक्सी से अजवा बाईपास पर उतर जाता हूँ। अजवा से बड़ौदा जंक्शन के लिए ऑटो रिक्शा लेता हूँ।
(देश मंथन, 17 मार्च 2015)