संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आसमान मेरे लिए हमेशा कहानियों का सबसे बड़ा संसार रहा है।
मैं जब-जब आसमान में उड़ता हूँ, मेरी आँखों के आगे कहानियाँ तैरने लगती हैं। अब कायदे से मुझे अपने अमेरिका प्रवास की कहानी ही आज लिखनी थी, लेकिन कल सुबह मैं दिल्ली से पटना के लिए उड़ गया। अब अगले दो दिनों तक मुझे पटना में ही रहना है। इसके बाद दिल्ली वापस आऊँगा और उड़ जाऊँगा सिंगापुर की ओर।
आप बिल्कुल मत सोचिएगा कि मैं अमेरिका की यादों से मुक्ति पा रहा हूँ। दरअसल मैं अमेरिका की सारी यादों को एक-एक करके आपसे साझा करता रहूँगा। पर अभी तो यही सोचिए कि जब मेरा विमान हजारों फीट ऊपर उड़ने लगा, तो मेरी निगाह अचानक मेरे सामने वाली सीट के पीछे चिपके एक विज्ञापन पर पड़ गई। उस पर लिखा था, “बेशक बिल्लियों के पास नौ जिन्दगियाँ होती होंगी, पर आपके पास तो एक ही जीवन है।”
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मैं तब बहुत छोटा बच्चा था। दशहरा का मौका था, मैं शहर से गाँव गया था। उन बच्चों के साथ मैं भी तालाब में नहाने जाता, छुपन-छुपाई खेलता और पेड़ पर चढ़ कर अमरूद तोड़ता।
एक शाम मैं अपने दोस्तों के साथ बैठा था कि अचानक मेरी निगाह एक बिल्ली पर पड़ी।
मैंने पास पड़े एक पत्थर के टुकड़े को बिल्ली की ओर उछाल दिया। पता नहीं कैसे पर वो पत्थर सीधे बिल्ली को जाकर लगा और बिल्ली वहीं जमीन पर गिर पड़ी। अब क्या था, तहलका मच गया। संजय ने बिल्ली मार दी, बिल्ली मार दी।
मैं बहुत हैरान था। अरे बिल्ली मर गयी तो मर गयी। इसमें इतना शोर करने की क्या बात है?
“नहीं, बिल्ली का मर जाना बहुत अपशकुन होता है।”
“और तुम लोगों ने उस दिन उस चूहे को मारा था, उसका क्या?”
“चूहा मारने पर पाप नहीं लगता।”
“तुम लोगों ने उस दिन जिस कबूतर को पकड़ा था, वो भी तो मर ही गया था।”
“अरे बाबा कहा न, कबूतर मारने पर भी कुछ नहीं होता। पर बिल्ली को मारना बहुत बुरा होता है।”
“यार, मैंने जानबूझ कर थोड़ी न मारा है। वो तो ऐसे ही मैंने पत्थर फेंका और बिल्ली को वो जा लगा।”
“अब कुछ नहीं हो सकता। बहुत बड़ा पाप तुमने कर दिया है।”
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पूरे गाँव में तहलका मच गया। बात मेरी दादी तक पहुँची। घर में हाय-तौबा हो गई। संजू ने बिल्ली को मार दिया। कोई कह रहा था कि बिल्ली के मर जाने पर सोने की बिल्ली दान करनी पड़ती है।
बहुत मुश्किल घड़ी थी। दादी ने मुझे बुलाया और पूरी घटना की जानकारी ली। उन्होंने पूछा तो मैंने सच-सच बता दिया कि मैंने बिल्ली को जानबूझ कर नहीं मारा। वो तो एक पत्थर का टुकड़ा सामने पड़ा था, मैंने उसकी ओर उछाल दिया। वो उसे जा लगा और वो मर गयी।
दादी ने अब मेरे पाप के प्रायश्चित का तोड़ निकाला।
पाँच किलो चावल, पाँच किलो आटा और ग्यारह रुपये का दान देकर इस पाप से मुक्त हुआ जा सकता है।
आनन-फानन में पंडित जी को बुलाया गया। सारी चीजें मेरे हाथों से उन्हें दान कराई गयीं।
पंडित जी मेरी ओर ऐसे घूर रहे थे, मानो मैं संसार का सबसे बड़ा अधर्मी हूँ।
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सारा कुछ लेकर पंडित जी जा ही रहे थे कि एक बच्चा दौड़ता हुआ आया और उसने चिल्ला कर कहा, संजू वो बिल्ली मरी नहीं थी। वो तो जिन्दा थी। मैंने उसे उठ कर भागते हुए देखा है।
बिल्ली मरी नहीं, बिल्ली मरी नहीं। ये खबर घर में खुशी की खबर बन गयी। पंडित जी को लगा कि ये चावल, आटा कहीं छिन न जाए, तो उन्होंने कहा कि अरे बिल्ली की नौ जिन्दगियाँ होती हैं। वो नौ बार मर कर जी उठती है। पर इसका मतलब ये नहीं हुआ कि वो मरी ही नहीं। वो मर कर दुबारा नये जनम में जी उठी है।
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मैंने पहली बार सुना था कि बिल्लियों को नौ जन्म का वरदान प्राप्त होता है। फिर तो मैंने अंग्रेजी साहित्य में कई बार इस मुहावरे को पढ़ा। पर मुझे कभी इसका वास्तविक अर्थ समझ में नहीं आया। मुझे यही लगता रहा कि बिल्लियाँ सचमुच नौ बार मर कर जी उठती होंगी। हालाँकि मैंने कई बार इस मुहावरे का मतलब जानने की कोशिश की। पर कुछ समझ में नहीं आया। कई बार मैंने पढ़ा कि बिल्लियाँ दरअसल बहुत जीवट होती हैं। वो बहुत मुश्किल घड़ियों में भी खुद की रक्षा कर लेती हैं, इसीलिए उन्हें नौ जिन्दगियों के वरदान से लैस माना गया है। पर वाकई में ऐसा क्यों कहा जाता है, मुझे आजतक इसका मतलब पता नहीं चला।
पर कल तीस हजार फीट की ऊँचाई पर जब मेरी निगाह इस विज्ञापन पर पड़ी तो मुझे याद आ गया कि सचमुच बिल्लियाँ मर कर जी उठती हैं। पर आदमी इतना सौभाग्यशाली नहीं होता।
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है तो ये विज्ञापन। पर बात बहुत बड़ी है।
आदमी के पास सचमुच एक ही ज़िंदगी होती है। ऐसा सुना है कि 84 लाख जन्मों के बाद आदमी की ज़िंदगी मिलती है। अगर ऐसा है तो सचमुच आदमी का जीवन मिलना बहुत बड़ी बात है। अगर सचमुच ये इतनी बड़ी बात है, तो आदमी को अपना ख्याल रखना चाहिए। उसे अपने कर्मों का ख्याल भी रखना चाहिए। उसे अपने धर्म का खयाल रखना चाहिए। उसे अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहिए।
अपनी जुबाँ से निकलने वाले एक-एक शब्द का ध्यान रखना चाहिए।
इन सारी चीजों का ध्यान रखने से ही जीवन अनमोल बनता है। बिल्लियों को नौ जिन्दगियों का वरदान हासिल है, हमें और आपको नहीं। बात मुहावरे की नहीं, शायद हकीकत भी है। मैंने बहुत बार देखा है कि आदमी अपनी जिन्दगी के मोल को नहीं समझता। बहुत मामूली गलतियाँ भी बड़ी बन जाती हैं। कल मुझे अहसास हुआ कि सचमुच हमें अपना बहुत ध्यान रखना चाहिए।
जिन्दगी हर कदम एक नयी जंग है। आप हर जंग को जीत सकते हैं, अगर सचमुच आप अपना ध्यान रखेंगे। ध्यान तन, मन और कर्म तीनों का, क्योंकि जिन्दगी न मिलेगी दोबारा।
(देश मंथन, 20 जनवरी 2016)