संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक साधु थे। कहीं जा रहे थे। रास्ते में कुछ बदमाश लड़कों ने उन्हें घेर लिया। पूछा कि महाराज, कहाँ जा रहे हैं? साधु ने कहा कि नदी में नहाने जा रहा हूँ। लड़कों ने उनसे कहा कि महाराज, आपने जिन्दगी में कभी पाप किया है या नहीं? साधु महाराज कहने लगे कि नहीं, कभी नहीं। मैं तो साधु हूँ, पाप से मेरा क्या नाता?
“नहीं? यूँ ही कभी मदिरापान? किसी स्त्री के साथ संबंध?”
साधु महाराज ने बहुत संयत हो कर कहा, “कैसी बातें कर रहे हो, नौजवानों? शराब और स्त्री सुख से मेरा क्या वास्ता? मैं तो भक्ति में लीन रहने वाला हूँ। ये सारी चीजें संसार में कीड़े की तरह जी रहे मनुष्य करते हैं, मैं तो इन सबसे बहुत ऊपर उठ चुका हूँ।”
अब लड़के साधु महाराज से मजे लेने लगे। कहने लगे कि महाराज, आज तो आप नदी तक नहीं जा पाएंगे।
साधु ने पूछा, “क्यों?”
“क्योंकि आज आपको एक अपराध तो करना ही पड़ेगा।”
“कैसा अपराध?”
“आज आपको मदिरापान करना होगा।”
“असंभव।”
“तो महराज, आज आप यहीं रुके रहेंगे। पूजा-पाठ भी नहीं कर पाएंगे। हम आपको यहाँ से जाने ही नहीं देंगे।”
“ये तो अन्याय है।”
“है तो, प्रभु। लेकिन हम चाहते हैं कि आप एक अपराध करें। अगर आप शराब नहीं पी सकते, तो आप स्त्री से संबंध बनाएं। हमारे पास एक महिला भी है।”
साधु महाराज उलझन में पड़ गए। हे भगवान! कहाँ आ फँसा?
साधु जाने की जिद करते रहे, लड़के अपनी बात पर अड़े रहे।
साधु को जब लगने लगा कि अब जान नहीं बचने वाली तो उन्होंने मन में बहुत सोचा। उन्होंने सोचा कि मदिरापान ही ठीक रहेगा। स्त्री से संबंध तो नहीं ही बनाया जा सकता। उससे तो ब्रह्मचर्य का व्रत टूट जाएगा। शराब पीने से तो जो होगा, शरीर को होगा। पर ऐसे किसी से संबंध बनाने में तो आत्मा का ही नाश हो जाएगा।
साधु महाराज ने अपनी जान न बचते देख उन बदमाशों से कहा कि ठीक है, मैं मदिरापान कर लेता हूँ। पर उसके बाद तुम लोग मुझे जाने देना।
लड़कों ने साधु महाराज को मदिरा पिलाई। खूब मदिरा पिलाई। महाराज मदिरा पीकर धीरे-धीरे अपना होश खोने लगे। और जब एकदम नशे में डूब गये तो उन्होंने कहा कि कहाँ है स्त्री? उसे बुलाओ।
इस तरह साधु महाराज ने दोनों अपराध कर लिए।
क्यों? क्योंकि वो नशे में थे। दरअसल नशा अपने आप में उतना बड़ा अपराध नहीं, जितना कि वो दूसरे अपराध का कारक बनता है।
अब आप सोचेंगे कि संजय सिन्हा आज फिर नशे पर क्यों लिख रहे हूँ। कल मैंने नशे पर लिखा ही था, फिर आज क्यों?
दरअसल मुझे पगलिया की बहुत याद आ रही है। आप में कुछ लोग पगलिया को पहचानते होंगे, कुछ नहीं। फिल्म उड़ता पंजाब में आलिया भट्ट को गाँव वाले पगलिया बुलाते हैं। पगलिया बिहार से पंजाब पहुँची है और वहाँ उसके हाथ एक दिन हेरोइन का पैकेट लग जाता है और धीरे-धीरे वो नशे के कारोबारियों के संपर्क में आ जाती है। और एक दिन वो कहती है कि जिसने जिन्दगी में एक बीड़ी नहीं पी, उसे आज हेरोइन की लत लग गयी है। यही है उसका दर्द।
मुझे फिल्म पर बात नहीं करनी। पर पगलिया को जब अहसास होता है कि वो जो कर रही है, वो रास्ता सिर्फ और सिर्फ बर्बादी की ओर जाता है, तो वो उसे अपने स्तर पर छोड़ने की कोशिश करती है। इसके लिए उसने जो जतन किए, वही एक रास्ता है नशे से मुक्ति का। पेट दर्द होने पर वो अपने पेट पर कपड़ा बांधती है। मुँह में कपड़ा ठूंसती है। पीड़ा में गिर पड़ती है। पर वो एक बार जब तय कर लेती है कि नशा नहीं, तो नशा नहीं।
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मैंने शाहरुख खान के टीवी सीरियल फौजी के दिनों में सिगरेट पीनी शुरू की थी। हम दोनों ने साथ-साथ खूब छल्ले बनाए। मुझे सिगरेट पीता देख मेरा छोटा भाई भी मेरे साथ सिगरेट पीने लगा। हम दोनों दोस्त की तरह थे। एक दूसरे से कभी कुछ छिपाते नहीं थे। शाहरुख खान तो मुंबई चले गये, पर मैं और मेरा भाई हम खूब सिगरेट पीते रहे।
सोचिए, कितने दिनों तक मैं सिगरेट पीता रहा। पर तीन साल पहले पुणे के एक श्मशान घाट पर जब मेरे छोटे भाई की चिता जल रही थी, तो मैंने अपनी जेब से सिगरेट निकाल कर वहीं फेंक दी।
मुझे फिर कभी सिगरेट की याद नहीं आई। मेरा मन ही नहीं किया सिगरेट पीने का।
मतलब नशा कोई भी हो, उससे आजाद हुआ जा सकता है। और यह संभव है सिर्फ और सिर्फ आत्मबल से। वही आत्मबल जिसे फिल्म में पगलिया ने दिखाया। वही आत्मबल जिसे श्मशान घाट पर संजय सिन्हा ने दिखाया।
अगर आप खुद से प्यार करते हैं, अगर आप अपने परिवार से प्यार करते हैं, तो आपको किसी तरह का नशा नहीं करना चाहिए। हेरोइन और ऐसे बड़े-बड़े नशों का हश्र तो पूरा परिवार भुगतता है। पर किसी को मेरे कहे पर संदेह हो तो एक बार अपने शहर के किसी कैंसर अस्पताल में चले जाइए। वहाँ गुटखा और सिगरेट की लत वालों का हश्र आप अपनी आँखों से देख सकते हैं। उसके बाद फैसला आपको करना है, क्योंकि जिन्दगी आपकी है।
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कल मेरी पोस्ट पर कुछ लोगों ने अपने गुटखे और सिगरेट छोड़ने की कहानी कमेंट में लिखी है, आप उन्हें भी पढ़िए और अगर आप नशे की गिरफ्त में हैं तो मेरा यकीन कीजिए, नशा करके आदमी सिर्फ अपना तन ही नहीं गंवाता, वो मन भी गंवाता है। वो अपना चरित्र भी गंवाता है।
(देश मंथन 20 जून 2016)