पैगाम

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

पिछली बार दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले से मैं कुरआन मजीद ले आया था। मेरा बहुत दिनों से मन था कि मैं कुरआन पढ़ूँ। स्कूल के दिनों में मैं चक्रवर्ती का अंक गणित और कॉलेज के दिनों में एन सुब्रह्मण्यम की लिखी फिजिक्स की किताब उपन्यास की तरह पढ़ जाता था। इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र तो हफ्ते भर से ज्यादा की खुराक कभी नहीं रहे। ऐसे में क़ुरआन मजीद मेरे पास कैसे पड़ी रह गयी और मैंने क्यों इसे तभी नहीं पढ़ लिया ये मेरे सोचने का विषय है। 

आज तो मैं इतना ही कह सकता हूँ कि मैंने गीता पढ़ी है। मैंने रामायण और रामचरित मानस को भी आत्मसात किया है। अमेरिकी होटलों में बाइबिल आपको अपने कमरे में रखी मिल जायेगी, तो मैंने उसका भी पाठ किया है। गुरु गोविंद सिंह जी तो मेरे जन्म स्थान से थे, ऐसे में न जाने मैंने कितनी बार गुरुद्वारों में जाकर गुरुवाणी का मनन किया है। दिल्ली के जामा मस्जिद में भी कई दफा गया हूँ। कुरआन के बारे में काफी कुछ पढ़ा है, काफी कुछ सुना है, लेकिन विधिवत क़ुरआन उठा कर कल सुबह पढ़ना शुरू किया। 

इसे आप सिर्फ इत्तेफाक ही समझिएगा कि कल सुबह पोस्ट लिखने के बाद दफ्तर निकलने से पहले क़ुरआन पढ़ रहा था। 

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कुरआन अरबी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ है अक्षरों और शब्दों को सार्थक क्रम के साथ जोड़ कर जबान से अदा करना, जिसे पढ़ना कहते हैं।

कुरआन का परिचय ही यह कहते हुए कराया जाता है कि यह सम्पूर्ण जगत के स्वामी की ओर से सम्पूर्ण मानव-जाति को प्रदान किया गया एक महान उपहार है। यह ईशवाणी है, इसकी तत्वदर्शिता अद्भुत है। यह पिछले ईशग्रंथों की शिक्षाओं को सुरक्षा प्रदान करने, इंसानों को संमार्ग दिखाने और ईश-प्रदत्त शाश्वत ज्ञान भंडार को सुरक्षित करने के लिए अवतरित हुआ है। मानव-आत्मा को प्रगतिशील बनाना, मानव-चेतना को जागृत रखना और मानव हृदय को प्रज्वलित करना इसका विशष्ट उद्देश्य है। 

इतना पढ़ा और सोच में पड़ गया कि कई लोग कैसे किसी धर्म को बिना पढ़े, बिना समझे किस तरह उसके विषय में कई तरह की नकारात्मक राय लोगों के बीच फैलाते हैं। जिस धर्म ग्रंथ में साफ-साफ लिखा है कि यह किसी खास जाति या क्षेत्र के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए अवतरित हुआ है, इसका संबंध मानव जाति से है, उससे जुड़ी पता नहीं क्या-क्या भ्रांतियाँ लोगों ने फैला रखी हैं।

तो जनाब, मैं कुरआन पढ़ते-पढ़ते गहरी सोच में डूब गया। 

मैंने कल की पोस्ट में लिखा था कि पत्नी के साथ पंखा, एसी और गाड़ी को लेकर बहस हुई और दो दिन मुँह फुलाने का खेल चल पड़ा। आखिर मुझे आप परिजनों की शरण में आना पड़ा। पर हाय रे मेरी किस्मत! आप सबसे पिछले बीस महीनों से रिश्ता जोड़ा मैंने, लेकिन आप सब मेरी पत्नी के सिपहसलाह निकले। सबने कह दिया कि संजय तुम सॉरी बोलो। क्योंकि मैंने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो। 

मैं सोच ही रहा था कि कैसे शीत युद्ध की शीत मिटायी जाए। तब तक पत्नी मेरे कमरे में घुसी। मेरे हाथ में पवित्र कुरआन देख कर वो चौंकी। उसे याद था कि वो मुँह फुलाये हैं, इसलिए तब तक बात नहीं करनी, जब तक की शुरुआत मेरी तरफ से न हो जाए। 

आम तौर पर ऐसी घड़ी में पत्नी कुछ बोलती नहीं। पर कल छाती पर कुरआन मजीद देख कर वो सन्नाटे में रह गयी। 

“क्या तुम इस्लाम धर्म कबूल करने की योजना बना रहे हो?”

“इस्लाम धर्म? अब यह मुद्दा कहाँ से उठ गया।”

“फिर छाती पर कुरआन लेकर क्यों बैठे हो?”

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मैं समझ गया कि मामला कहाँ जाकर अटका है।

तो कहीं मेरी पत्नी के मन में यह खटका तो नहीं जागा कि संजय सिन्हा अब कुरआन हाथ में लेकर इस्लाम धर्म कबूल कर लेंगे और… चार शादियाँ कर गुजरेंगे।

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हे राम! कभी-कभी ज्यादा ज्ञान भी जी का जंजाल बन जाता है। 

मैं तो कुरआन पढ़ कर यह समझने की कोशिश कर रहा था कि इसमें आखिर लिखा क्या है। अपनी कोशिश में जितने पन्ने मैं पढ़ सका, मुझे तो यही लगा कि या तो मैं गीता पढ़ रहा हूँ, या बायबिल की कहानी। शुरू के जितने पन्ने मैंने पढ़े मुझे उसके एक-एक शब्द गुरुवाणी की लग रहे थे। मेरे मन में कल ही यह बात आ गयी थी कि मैं यह जरूर लिखूँगा कि जिस तरह लोग बिना मेडिकल की पढ़ाई किए और उसकी परीक्षा पास किये हुए डॉक्टरी नहीं कर सकते, जिस तरह बिना इंजीनियरिंग पढ़े हुए आप इंजीनियर नहीं हो सकते, उसी तरह बिना धर्म की पूरी किताब पढ़े, बिना उसकी विधिवत परीक्षा दिये किसी को धर्म पर लिखने और बोलने की छूट नहीं मिलनी चाहिए। ये ‘बापू’, ‘माँ’, ‘बाबा’ जो भी हैं, इनकी बातें सुन कर मुझे हैरानी होती है कि कैसे ये धर्म की किताब को बिना पढ़े, बिना समझे लोगों को गुमराह करते चले आ रहे हैं, सदियों से। 

कभी न कभी इस पर जरूर लिखूँगा। लिखूँगा कि आप लोगों को भी कम से कम एक बार अपनी आँखों से श्रीमद् भगवत गीता जरूर पढ़नी चाहिए। कम से कम एक बार हिन्दी में अनुदित ही सही पर कुरआन को संक्षिप्त टीका सहित जरूर पढ़ें। आप हैरान रह जाएँगे कि जो इसमें लिखा है और जो आपके मन में डाला गया है, दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। धर्म के ठेकेदारों ने इसे अपने फायदे के लिए बाँट दिया है, जबकि दोनों का मूल एक है। 

जिस धर्म ग्रंथ की शुरुआत ही इस सच्चाई से हो, कि ‘यह संदेश उसकी तरफ से है, जिसने संसार का निर्माण किया है’, उसके बारे में यह कहा जाए कि यह मुसलमानों का है, यह हिन्दुओं का, तो सचमुच यह सोचने वाली बात है।

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मैं जानता हूँ कि आपका मन यह जानने को कुलबुला रहा होगा कि इतनी बड़ी-बड़ी बातें लिख कर संजय सिन्हा आखिर मूल बात क्यों गोल कर रहे हैं कि फाइनली हुआ क्या? पँखा, एसी और गाड़ी पर मिसेज सिन्हा का फुला मुँह पिचका या नहीं। 

पर यहाँ तो मेरे हाथों में कुरआन देख कर नया ही मसला खड़ा हो गया था। कहीं मैं धर्म परिवर्तन तो नहीं करने की सोच रहा?

अब मामला पँखा, एसी से बहुत आगे चला गया था। 

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जिन लोगों ने बाहुबली फिल्म देख ली है, उनके मन में यह सवाल तो है ही कि आखिर कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा था। पर फिल्म में यह अनाउंस कर दिया गया था कि आपको इसका जवाब मिलेगा, 2016 में। 

पर मैं आपको अपनी राम कहानी सुनाने के लिए इतना इंतजार नहीं करा सकता। 

वैसे पूरी कहानी सुन कर आप क्या करेंगे। आपको एक चुटकुला सुना देता हूँ जिससे आप कई अर्थ खुद ही निकाल लेंगे। 

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एक व्यक्ति मर कर भगवान के पास पहुँचा। वहाँ स्वर्ग-नर्क में जाने की लंबी लाइन लगी थी। 

भगवान ने एक व्यक्ति से पूछा, “क्या तुम्हारी शादी हो चुकी है?” 

व्यक्ति ने कहा, “जी प्रभु!”

“तो तुम सीधे स्वर्ग जाओ। तुमने अपने हिस्से का नर्क पृथ्वी पर भुगत लिया है।”

इतना सुनना था कि उसके पीछे खड़ा दूसरा आदमी वहीं खड़े-खड़े डांस करने लगा। ‘बल्ले-बल्ले…बल्ले-बल्ले…।’

भगवान ने उससे पूछा, “तुम इतना क्यों उछल रहे हो?”

उस व्यक्ति ने कहा कि प्रभु, मैंने तो दो-दो शादियाँ की थीं, मुझे तो डबल स्वर्ग मिलेगा।”

भगवान ने गंभीरता से कहा, “स्वर्ग में मूर्खों के लिए कोई जगह नहीं, तुम नर्क जाओ।”

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पत्नी को ये वाला चुटकुला रात में ही सुना दिया और फिर गीता और कुरआन दोनों एक हो गये। आखिर दोनों ही ईशवाणी हैं।

(देश मंथन, 06 अगस्त 2015)

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