संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी मुलाकात बहुत से ऐसे लोगों से होती है, जिन्होंने जो चाहा पाया। बहुत से ऐसे लोगों से भी होती है, जो कुछ पाना चाहते तो थे, लेकिन नहीं पा सके।
जो लोग कुछ नहीं पा सके, उनमें से कई लोगों ने मुझसे समय-समय पर शिकायत की है कि किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। मतलब ये कि उन्हें जो नहीं मिला, उसके लिए किस्मत दोषी है।
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कल रात मैंने अपने घर दफ्तर के कुछ लोगों को खाने पर बुलाया। ये वो लोग थे, जिनसे मैं चाह कर भी रोज दफ्तर में नहीं मिल पाता, बातें नहीं कर पाता। ये सभी मेरी टीम के सदस्य हैं। मैंने इन लोगों को घर बुलाया, हमने मिल कर खाना बनाया और साथ बैठ कर खाया।
फिर मैंने कहा कि तुम सभी लोग एक दूसरे को अपना परिचय दो। अपने दिल की बातें साझा करो।
धीरे-धीरे लोग खुले। सबने अपने विषय में हमें बताया।
एक लड़के ने कहा कि उसे हमारे न्यूज चैनल में नौकरी के लिए कई बार कोशिश करनी पड़ी। वो हर बार आता, हमारे यहाँ टेस्ट देता और उसका चयन नहीं होता। पर उसने हार नहीं मानी। वो लगा रहा और चौथी बार में उसे कामयाबी मिली। उसे यहाँ नौकरी मिल गयी।
मैं ध्यान से सभी की बातें सुनता रहा।
मेरी टीम में अलग-अलग जगहों से आये लोग हैं। सभी के पास अपने-अपने अनुभवों का खजाना है। मैं आश्चर्यचकित था कि लोगों के पास कितनी कहानियाँ हैं, पर वो रोटी-दाल की चाहत में खो जाती है। मैंने सभी की कहानियाँ सुनीं, पर इस कहानी पर मैं रुक गया था कि किसी ने चार बार कोशिश की हमारे चैनल में नौकरी पाने के लिए।
मैंने उससे पूछा, “जब तुम पहली बार फेल हो गये, तो तुम्हें ऐसा नहीं लगा कि अब तुम्हें यहाँ नौकरी नहीं मिलेगी?”
उसने कहा, “सर, यहाँ नौकरी पाना मेरा सपना था। मैंने चाह लिया था कि मैं यहाँ नौकरी करूँगा। मुझे तो चौथी बार की कोशिश में कामयाबी मिल गयी। अगर नहीं मिलती तो मैं दस बार कोशिश करता।”
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एक बार एक आदमी एक संन्यासी के पास गया और उससे अनुरोध किया कि वो उसे ईश्वर से मिला दे।
संन्यासी ने कहा, तुम ईश्वर से नहीं मिल सकते। व्यक्ति ने कहा कि क्या ईश्वर होते ही नहीं है?
संन्यासी ने कहा कि होते तो हैं, लेकिन तुम नहीं मिल सकते।
अब आदमी बिगड़ गया। कहने लगा कि इसका क्या मतलब हुआ कि होते हैं, पर मुझे नहीं मिलेंगे। तुम में ऐसे कौन से सुरखाब के पँख लगे हैं कि वो तुम उनसे मिल लिए, पर मुझे नहीं मिलेंगे।
संन्यासी ने आदमी से पूछा कि क्या तुम तैरना जानते हो?
आदमी ने कहा, “नहीं।”
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मैं जानता हूँ कि अब आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि संजय सिन्हा, तुमने तो बात शुरू की आदमी के सपने पूरे होने से, फिर कहानी सुनाने लगे अपने घर आए अपने टीम के सदस्यों की और अब ले आए भगवान तलाशने वाले आदमी को। तुम सीधे-सीधे कहानी क्यों नहीं सुनाते?
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अच्छा, सुनिए कहानी आगे लिए चलता हूँ।
तो संन्यासी ने आदमी से पूछा कि क्या तुम तैरना जानते हो?
आदमी ने कहा, नहीं।
संन्यासी ने कहा, अच्छी बात है। वो उसे अपने साथ पास ही बह रही नदी के किनारे ले गया। वहाँ उससे वो बातें करता रहा। संन्यासी ने अचानक उस आदमी को नदी में धक्का दे दिया।
आदमी नदी में डूबने लगा। वो चिल्ला रहा था, बचाओ, बचाओ।
पर उसकी आवाज कोई नहीं सुन पा रहा था। आदमी समझ गया कि अब वो डूब जाएगा।
तभी संन्यासी नदी में कूदा और उसने उसे बचा लिया। आदमी बाहर आया, वो बेहद घबराया हुआ था। संन्यासी ने उससे पूछा कि जब तुम डूब रहे थे, तो तुम्हें क्या लग रहा था?
आदमी ने कहा मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। बस मैं साँस नहीं ले पा रहा था।
संन्यासी ने पूछा तुम्हें वहाँ किस चीज की सबसे अधिक जरूरत महसूस हो रही थी?
आदमी ने कहा, बस हवा की। मैं हर कोशिश कर रहा था कि किसी तरह साँस ले पाऊँ।
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संन्यासी ने कहा कि जिस तरह तुम नदी में डूबने से बचने के लिए तड़प रहे थे, एक-एक साँस के लिए तड़प रहे थे, उसी तरह अगर तुम ईश्वर को पाने की कोशिश करोगे, तो तुम्हें वो मिल जाएँगे।
असली बात होती है चाहत की। चाहत में शिद्दत हो, तो आदमी कुछ भी पा सकता है, कुछ भी।
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आप सबको आने वाले नए साल की ढेर सारी शुभकामनाएँ। आप आज खुद से वादा कीजिए कि आप जो पाना चाहते हैं, उसे पा कर रहेंगे। ठीक वैसे ही जैसे वो आदमी नदी में साँस पाना चाह रहा था, जैसे मेरे दफ्तर का वो लड़का नौकरी पाना चाहता था। आप अपनी शिद्दत में दम लाइए और पा लीजिए वो सबकुछ, जो आप पाना चाहते हैं।
याद रखिए किसी में भी सुरखाब के पर नहीं लगे होते। पर कुछ पाता वही है, जिसकी चाहतों में सुरखाब के पर लगे होते हैं।
(देश मंथन, 31 दिसंबर 2015)