विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
बिहार की राजधानी पटना की जिन इमारतों से पहचान है उनमे गोलघर भी एक है। गाँधी मैदान के पास स्थित गोलघर 33 मीटर यानी 96 फीट ऊँचा है। चढ़ने और उतरने के लिए अलग-अलग सीढ़ियाँ हैं। कुल 146 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। आपको ज्यादा सीढ़ियाँ चढ़ने का इल्म नहीं है तो कुछ मुश्किल आ सकती है। क्योंकि रास्ते में कहीं ठहराव नहीं है।
मुंडेर से सुंदर नजारा
गोलघर की मुंडेर से पटना शहर का नजारा अदभुत है। एक तरफ लहराती गंगा नदी दिखाई देती है तो दूसरी तरफ नजर घुमाएँ तो पूरा पटना शहर। किसी जमाने में गोलघऱ पटना की सबसे ऊँची इमारत हुआ करती थी। अब गोलघर के ठीक सामने बिस्कोमान टावर उससे भी बड़ी इमारत है।
कैप्टन जॉन ग्रास्टिन थे डिजाइनर
गोलघर का निर्माण की कहानी दिलचस्प है। सन 1770 में पटना के आसपास के इलाके में आये भीषण अकाल के बाद अंग्रेजों ने अनाज रखने के लिए बड़े गोदाम की जरूरत थी। इसी जरूरत को देखते हुए गोलघर का निर्माण करवाया था। हालाँकि आजकल इसमें अनाज नहीं रखा जाता। इसके निर्माण की योजना गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने बनायी थी। ढाई सौ साल बाद भी इमारत अभी भी बुलंद है। कैप्टन जॉन ग्रास्टिन ब्रिटिश भारत में इस्ट इंडिया कंपनी में सिविल इंजीनियर थे। गोलघर के बाद उन्होंने कोलकाता का टाउन हाल भी डिजाइन किया था। ब्रिटिश आर्मी के लिए अकाल के दौर में रसद की कमी न पड़ जाए इसको ध्यान में रखते हुए इस इमारत का निर्माण कराया गया। ग्रास्टिन चाहते थे कि इसमें अनाज ऊपर से भरा जाए। इसके लिए गोलघर के अंदर कई तल बनाना चाहते थे। हालाँकि इसमें अनाज कभी ऊपर से नहीं भरा जा सका। बहरहाल 1999 तक इस्तेमाल अनाज रखने के लिए होता रहा। पर अब खाली रहता है। ग्रास्टिन ऐसे ही कई गोलघर गंगा के मैदानी इलाकों के दूसरे शहरों में भी बनाना चाहते थे पर ये उनका सपना पूरा नहीं हो सका।
बौद्ध स्तूप से प्रेरणा
बिहार में बौद्ध धर्म की महान विरासत को देखते हुए इसका डिजाइन किसी बौद्ध स्तूप की तरह रखा गया। इसका नाम गोलघर है पर यह वास्तव में गोल नहीं है। यह दूर से ऐसा लगता है कि मानो कोई चाय की प्याली उल्टी कर रखी गयी हो।
बदलते समय के साथ गोलघर की दीवारें काली पड़ती जा रही हैं। गोलघर पर आए खतरे लेकर बिहार सरकार चौकन्नी हुई तो इसके रखरखाव पर ध्यान दिया गया। राज्य सरकार ने 2010 के बाद गोलघर का कायाकल्प करने की योजना बनायी। काली पड़ गई इमारत की फिर से रंगाई की गयी।
अब लेजर शो
जनवरी 2013 में गोलघर को नये रंग रूप में संवारने की कोशिश की गयी है। अब यहाँ पर हर शाम को लेजर शो देखा जा सकता है। इसमें गोलघर के साथ पटना इतिहास भी दिखाया जाता है। 20 मिनट के इस शो का टिकट 30 रुपये रखा गया है। बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम की ओर से इस शो का संचालन किया जाता है। इसे एक कोलकाता की कंपनी ने एक करोड़ से ज्यादा की लागात से तैयार किया है।
गोलघर की चढ़ाई
बचपन मे 1979 में एक बार गोलघर पर चढा था मैं कई साल बाद 2011 में एक बार फिर चढ़ा इस बार बेटा भी साथ था। गोलघर के साथ बिहार के लोगों को नास्टेलजिया जुड़ा हुआ है। भोजपुरी फिल्मों का हीरो जब गाँव से पटना आता है तो उसे गोलघर के पास भटकते हुए दिखाया जाता है। गोलघर पर चढ़ना फिर उतरना और उतरकर लॉलीपॉप खाना बच्चों का प्रिय शगल है।
गोलघर की खास बातें
– 1770 में भीषण अकाल पड़ने पर अन्न भंडारण के लिए गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने गोलघर के निर्माण की योजना बनाई
– 1786 में 20 जुलाई कैप्टन जॉन गार्स्टिन के नेतृत्व में गोलघर का निर्माण हुआ।
– 1,40,000 टन अनाज रखा जा सकता है।
– 125 मीटर आधार, 29 मीटर हैं ऊंचाई
– 27 बार प्रतिध्वनि होती है एक बार आवाज लगाने पर
– 1979 में संरक्षित स्मारक घोषित हुआ
(देश मंथन 13 मई 2016)