संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जब मैं छोटा था, माँ मेरे लिए पैंट और कमीज हाथ वाली सिलाई मशीन से घर पर खुद सिला करती थी। वो हाथ और उँगलियों से ये नाप लिया करती थी कि मेरे लिए कितने कपड़ों की जरूरत है और उसकी सिलाई एकदम शानदार हुआ करती थी।
कुछ दिन पहले मेरे बेटे ने अपने लिए रेडीमेड पैंट खरीदी। उस पैंट की लंबाई थोड़ी ज्यादा थी, इसलिए उसे नीचे से कटवाने की जरूरत थी। दर्जी ने फीता लेकर पैंट को नापा, दस मिनट फीता ऊपर नीचे करता रहा कि ये साइज ठीक है, वो साइज ठीक है। और आखिर में उसने पैंट को नीचे से काट कर जब ठीक किया तो वो दो इंच छोटी हो गई।
आप सोच रहे होंगे कि मैं सुबह-सुबह कपड़ों की सिलाई, कटाई की कहानी क्यों सुनाने बैठ गया हूँ।
दरअसल कल किसी ने मुझे मेसेज में दो-तीन तस्वीरें भेजीं, जिसने वो तस्वीरें मुझे भेजी थीं, उनका मकसद तो मुझे हँसाना था, लेकिन उन तस्वीरों को देख कर मैं रो पड़ा। मुझे आज की शिक्षा व्यवस्था पर अफसोस होने लगा। मेरे पास जो तस्वीरें भेजी गयी हैं, वो किसी स्कूली बच्चे के होमवर्क की हैं, जिसमें टीचर ने बच्चे से कुछ सवाल पूछे हैं, और बच्चे ने उसके जवाब दिये हैं।
पहला सवाल है कि देश की आजादी में बापू का कितना बड़ा हाथ था?
बच्चे ने एक हथेली की तस्वीर बना दी है और लिख दिया कि इतना बड़ा हाथ था।
इसी तरह टीचर ने पूछा कि गोबर गैस क्या है? इस पर प्रकाश डालें।
बच्चे ने एक भैंस की तस्वीर बनायी, उसे गोबर करते हुए दिखाया, साथ में पीछे से एक टार्च की तस्वीर बना कर उस पर प्रकाश डाल दिया और जवाब में जो लिखा उसे आप खुद पढ़ लें, फिर तय करें कि इस तस्वीर को देख कर रोना है कि हंसना है।
ये है हमारी शिक्षा का हाल।
हमारे दफ्तर में अभी इनक्रिमेंट की घोषणा हुई। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ज्यादातर नये बच्चे ये नहीं बता पाये कि उनकी सैलरी में कितने प्रतिशत का इजाफा हुआ है। वो गणित के मामलें में इतने कच्चे होंगे, इसका तो मुझे भी अंदाजा नहीं था।
मुझे नहीं पता कि हमें कौन सी कोर्स की किताब में ये सिखाया गया था, लेकिन हमारी पीढ़ी के ज्यादातर लोग मीटर, सेंटीमीटर, मिलीमीटर का फर्क समझते हैं। कमरे का साइज़ देख कर बता सकते हैं कि इसका आकार इतना बड़ा है, छोटा है। लेकिन आज के छात्रों के लिए सहज रूप से कुछ भी अंदाज लगा पाना मुश्किल है। वो मीटर, फीता, पैमाना के बिना अपनी आँखों से न कुछ तौल सकते हैं, न नाप सकते हैं। उनकी जानकारी मशीनी रह गयी है। कल मैं ऐसी ही मशीनी जानकारी पर एक पोस्ट लिखूँगा, अगर सुबह-सुबह याद आ गया तो। पर अभी आपको सम्राट पृथ्वीराज चौहान की उस कहानी को सुना देता हूँ, जिसे आपने कई दफा पढ़ा होगा, सुना होगा। इस कहानी को सुनाने का मकसद सिर्फ इतना है कि व्यवाहरिक ज्ञान की अहमियत कितनी है, हम समझ पाएँ।
इतना तो आप जानते होंगे कि जय चन्द नामक राजा ने मोहम्मद गौरी के साथ मिल कर छल से पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में पराजित करा दिया और फिर पृथ्वीराज चौहान और उसके एक साथी चंदरबरदाई को युद्ध बन्दी बना लिया गया।
युद्ध बन्दी के रूप में उसे गौरी के सामने लाया तो गौरी ने पृथ्वीराज से आँखें नीची करने के लिए कहा। तब पृथ्वीराज ने कहा कि राजपूतों की आँखें केवल मृत्यु के समय नीची होती हैं। इससे अपमानित होकर गौरी ने लोहे की गरम सलाखों से पृथ्वीराज चौहान की आँखें फोड़ने का आदेश दिया। आँखें फोड़ने के बाद गौरी ने उसे और उसके साथी चंदरबरदाई को कैदखाने में डाल दिया। इस बीच गौरी ने एक बार तीरंदाजी का खेल अपने यहाँ आयोजित करवाया, तब पृथ्वीराज ने कहा कि वह भी उसमें हिस्सा लेगा और निशाना शब्दों के जरिये भेदेगा। गौरी ने उसे अनुमति दे दी।
निशाने का खेल शुरू हुआ। पृथ्वीराज चौहान तो अन्धा था। पर जैसे ही उसने धनुष पर बाण चढ़ाया उसके साथी चंदबरदाई ने अपनी कविता के माध्यम से पृथ्वीराज को इशारा किया और कहा-
“चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान।”
इसी शब्द भेदी बाण से पृथ्वीराज ने आकलन करके गौरी पर बाण चला दिया।
इस ऐतिहासिक कहानी को सुनाने के पीछे मकसद सिर्फ इतना है कि कैसे चंदरबरदाई ने सिर्फ देख कर नाप लिया कि पृथ्वीराज चौहान का दुश्मन कितनी दूरी पर बैठा है, और फिर उस नाप के आधार पर चौहान ने बाण से गौरी का सीना भेद दिया।
आज के लिए इतना ही, क्योंकि मैं खुद व्यग्र हूँ आप तक उन तस्वीरों को पहुँचाने के लिए, जिसे देख कर आपको तय करना है कि आप सचमुच हँसेंगे या रोएँगे।
(देश मंथन 14 जुलाई 2015)