संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जितनी बार मेरी मुलाकात राजीव खंडेलवाल से होती है, मुझे लगता है कि आदमी को कभी न कभी ‘सच का सामना’ करना ही चाहिए। राजीव की पहचान टीवी शो ‘सच का सामना’ से बनी थी, और फिर उनकी एक दो फिल्में भी आयीं।
कुछ चलीं, कुछ नहीं चलीं। लेकिन ‘सच का सामना’ एक ऐसा शो था जिसे देखते हुए मुझे हमेशा लगता कि झूठ अब पकड़ा गया कि तब पकड़ा गया।
राजीव खंडेलवाल बहुत ही संयत अंदाज में एक-एक कर सवाल पूछते और जवाब देने वाला झूठ पकड़ने की मशीन पर सच कबूलता चला जाता। बेशक पैसों के लिए ही सही, लेकिन जब कोई सच बोलता तो उसके चेहरे की चमक बयाँ करती कि उसे सच बोल कर कितनी राहत मिली है। जिन लोगों ने वहाँ अपने जीवन के झूठ को छिपाया या कबूल किया उनमें से ज्यादातर झूठ और सच मानवीय रिश्तों के बारे में बोले गये थे।
अगर आप लोगों ने ये शो देखा हो, और आपको याद हो तो आपने नोट किया होगा कि ज्यादातर झूठ अनैतिक संबंधों के मामलों के थे। चोरी, ठगी गबन के झूठ भी सामने आये लेकिन वे ऐसे झूठ नहीं थे कि ऐसा लगे कि झूठ बोलने वाला सचमुच बहुत शर्मिंदा है। इस तरह के ज्यादातर झूठ में कानून का खौफ भले हावी रहा हो, लेकिन जहाँ-जहाँ रिश्तों के झूठ निकले वहाँ-वहाँ इसे कबूलने वालों के चेहरे शर्मसार दिखे।
आदमी कई परिस्थितियों में झूठ बोलता है। यह सच है कि झूठ बोलते हुए उसके शरीर में सचमुच कोई रासायनिक परिवर्तन होता है, और उसी परिवर्तन के आधार पर उसका झूठ पकड़ा जाता है। आदमी के झूठ बोलने की शुरुआत बाल काल से ही हो जाती है। मसलन कृष्ण घर में ही दूध-दही-मक्खन चोरी कर खा लेते थे, और पकड़े जाने पर माँ के डर से झूठ बोल देते थे। हम में से कई लोगों ने इस तरह के झूठ शायद बोले होंगे, और फिर उसे स्वीकार भी कर लिया होगा।
लेकिन बहुत से झूठ आदमी कभी स्वीकार नहीं कर पाता या नहीं करना चाहता। और इस तरह के झूठ में ही शामिल है रिश्तों का झूठ।
रिश्तों के ये झूठ कई तरह के हो सकते हैं। मसलन पिता-पुत्र के बीच का झूठ, पति-पत्नी के बीच का झूठ, भाई-भाई का झूठ और दोस्तों के साथ बोला गया झूठ। पति-पत्नी के बीच का झूठ ज्यादातर अनैतिक संबंधों पर आधारित होता है। पिता-पुत्र के बीच अहंकार का झूठ होता है। भाई-भाई के बीच ईर्ष्या का झूठ होता है, और दोस्तों के बीच प्रतिस्पर्धा का झूठ होता है। हर आदमी किसी न किसी परिस्थिति में कोई-न-कोई झूठ बोल ही लेता है।
बहुत पुरानी कहावत है कि जिस झूठ से किसी का बुरा न हो, वह झूठ झूठ नहीं होता। ठीक वैसे ही संस्कृत में श्लोक है कि सत्य बोलना चाहिए, लेकिन प्रिय सत्य ही बोलना चाहिए।
इस बार राजीव खंडेलवाल हमारे पास आये थे अपनी फिल्म सम्राट ऐंड कंपनी के प्रमोशन के लिए। राजीव से मैंने फिल्म के बारे में कम, जिंदगी के फलसफे के बारे में ज्यादा बातें कीं। उनके शो ‘सच का सामना’ के बारे में की।
बचपन से मेरे मन में एक बात बैठी है कि हम जिनके-जिनके संपर्क में अब तक आये हैं, और आयेंगे उन सबके साथ हमने जो कुछ भी किया है, या उन्होंने हमारे साथ किया है, उसकी भगवान के यहाँ रिकॉर्डिंग होती है और जब हम मर जायेंगे तो भगवान हमें सबकी वीडियो रिकॉर्डिंग दिखायेंगे कि देखो तुमने ये किया, उसने ये किया। मैं ऐसा भी सोचता हूँ कि कई बार उस रिकॉर्डिंग को देख कर इतना अफसोस होता होगा कि अगर पुनर्जन्म होता भी होगा, तो शर्म के मारे आदमी भगवान से गुजारिश करता होगा कि प्रभु दुबारा हमें उनके बीच मत भेजना। यह सच है या कल्पना मैं नहीं जानता। लेकिन दादी-नानी के मुँह से सुनता आया हूँ कि ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जो भगवान को मुँह दिखाने के काबिल न रहें।
सब कुछ जानते हुए भी आदमी ऐसी गलतियाँ करता है कि पकड़े जाने पर उसे शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। हो सकता है ऐसी कई गलतियाँ मैंने भी की हों। लेकिन अब मैं चाहता हूँ कि जीवन में एक बार सच का सामना करूँ। देखूँ कि जीवन के किन-किन सवालों में अपने झूठ से शर्मिंदा होना पड़ेगा। एक बार जीवन के सवालों का सामना कर लिया तो फिर उस वीडियो रिकॉर्डिंग का डर भी मिट जायेगा जो भगवान उन सबको दिखाने वाले हैं, जिनसे मेरा वास्ता रहा है।
राजीव खंडेलवाल का कहना था कि दुनिया में कोई भी आदमी संपूर्ण सच का सामना नहीं कर सकता। क्या सचमुच ऐसा है कि कोई भी आदमी संपूर्ण सच का सामना नहीं कर सकता? क्या राजीव सचमुच सही कह रहे थे? आपकी क्या राय है? आप में से कौन है जो सचमुच उन सवालों का सामना कर सकता है, और कह सकता है कि वह सच्चा है। अगर कोई है तो बताइये… चंद सवाल तो मैं यहीं पूछ लूँगा, बाकी उसका नाम आगे आने वाले ‘सच का सामना’ शो के लिए भी भेज दूँगा।
जो सचमुच इस परीक्षा का सामना जीवन में एक बार भी ईमानदारी कर लेंगे, वे किसी से भी डरना बंद कर देंगे। यहाँ तक कि ईश्वर से भी। तो क्या आप तैयार हैं, सच का सामना करने को? ध्यान रहे, कई बार आप अपने सच को बेशक कबूल भी लें, लेकिन आप सामने वाले के सच को नहीं स्वीकार कर पायेंगे। जिनमें इतना दम हो कि अपने सच के अलावा अपनी ज़िंदगी से जु़ड़े उन लोगों के सच को भी सुन और सह पायें, वही असल में सच का सामना कर सकते हैं। यकीन ना हो तो एक कोशिश करके देख लीजिए, उनसे उन सवालों को पूछ लीजिए, जिन्हें आपने ना उनसे पूछा है और ना उन्होंने बताया है…साथ ही ना उन्होंने आपसे पूछा है, और ना ही आपने उन्हें बताया है… कोशिश कीजिए फिर बताइये।
(देश मंथन, 22 मई 2014)