जीवन का मंदिर

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

दुनिया भर के धर्म प्रचारकों, अपने दुश्मनों को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए व्याकुल वीर पुरुषों, अपने-अपने मजहब के लिए दूसरों के सिर कलम कर देने का दम दिखाने वालों, चंद रुपयों के लिए किसी के दिल पर नश्तर चला देने वाले महान मनुष्यों, आओ, मेरे साथ तुम जिन्दगी के उस सत्य को देखो, जिसे देख कर हजारों साल पहले सिद्धार्थ नामक एक राजकुमार सबकुछ छोड़ कर संन्यासी बन गया था।

नफरत के पुजारियों, अगर तुम मेरी पोस्ट आज पढ़ रहे हो, तो उठो और अपनी आँखें खोल कर देखो जिन्दगी के उस सबसे बड़े सत्य को, जिसे मैं तुम्हें दिखलाने जा रहा हूँ। तुम आओ, मेरे साथ आओ और जिन्दगी के मकसद को समझो। 

तुमने बचपन में अपनी माँ से उस बालक और शिकारी की कहानी सुनी होगी, जिस कहानी के अंत में तुम्हारी माँ ने तुम्हें बताया होगा कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। 

तुमने सुना होगा कि एक शिकारी ने एक पक्षी को अपने तीर से मार गिराया था और एक युवक ने उस पक्षी को उठा लिया था। वो उसे पानी पिला रहा था तभी शिकारी वहाँ पहुँच कर उससे कहने लगा था कि ये पक्षी उसे लौटा दो, उसका है। 

बचाने वाले युवक ने कहा था कि नहीं, यह पक्षी तुम्हारा नहीं, तुमने तो इसे मार गिराया था। और यहीं माँ ने कहानी को रोक कर तुमसे कहा था कि बेटा, मारने वाले से बचाने वाले का हक बड़ा होता है। 

***

जो लोग संसार को बदल देने के लिए आसमान में क्रांति लिख देने का दम दिखाते हैं, मैं उन सभी लोगों से अनुरोध करता हूँ आप एक बार जबलपुर आइए। आप यहाँ ‘विराट हॉस्पिस’ में आकर राजेश और राजेश जैसे ढेरों मरीजों से मिलिए। 

राजेश एक किशोर का नाम है। कुछ ही साल हुए हैं उसे इस संसार में आये हुए। 

अफसोस राजेश एक दिन बीमार हो गया। डॉक्टरों ने कहा कि उसे कैंसर हो गया है। अफसोस की बात ये थी कि वो डॉक्टरों तक बहुत देर से पहुँचा। इतनी देर से कि उसे अस्पताल की जरूरत ही नहीं रह गयी थी। 

अब वो कहाँ जाये? 

ऐसे में उसे किसी ने साध्वी ज्ञानेश्वरी दीदी के पास पहुँचा दिया। 

कैंसर के बाण से छलनी यह युवक फिलहाल दीदी के पास विराट हॉस्पिस में है। मैं उससे मिला। मैं जानता हूं कि राजेश कुछ सालों का नहीं, कुछ महीनों का नहीं, बस कुछ दिनों का मेहमान है। इस संसार से कौन कब कैसे जाएगा, नहीं पता। पर राजेश को पता है कि वो चंद दिनों में इस संसार से चला जाएगा। 

जब डॉक्टरों ने मुझे बताया कि सचमुच राजेश कुछ दिनों बाद नहीं रहेगा, तो मैंने राजेश की आँखों में बहुत भीतर तक झाँका। वो मेरे सामने बैठ कर जिन्दगी का जश्न मना रहा था, वो मृत्यु से पूर्व के इस मोक्ष स्थल में बैठ कर चॉकलेट केक काट रहा था, वो बची हुई जिन्दगी का उत्सव मना रहा था। वो कह रहा था कि नफरत तो पूरी दुनिया में फैली है, संजय भैया, जिन्दगी का एक पल भी अगर बचा हो, तो उसे प्रेम से गुजरना चाहिए। जिसने पक्षी को अपने बाण से मार गिराया, उसका नाम किसे पता है, पर जिसने उसे जमीन से उठा कर उसके जख्मों पर अपने स्नेह की उँगलियाँ फेरीं, संसार को उसी का नाम याद है। 

याद है न आपको उस आदमी का नाम गौतम था, जिसने उस आखेटक से कहा था कि बचाने वाले का हक मारने वाले से अधिक होता है। 

राजेश कह रहा था कि भैया, मौत तो सबको आनी है, फिर ये लोग जो समाज को सुधारने के लिए मौत के सौदागर बने बैठे हैं, हम उनकी बात क्या करें? भैया, जिन्दगी चार पलों की होती है। किसी-किसी के हिस्से में एक या दो ही होते हैं। 

पर भैया, ये पल जितने भी हों, स्नेह की गोद में होने चाहिए, नफरत के कंधों पर नहीं।

***

संसार में धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले तमाम साधु-संतों को यहाँ आना चाहिए और देखना चाहिए कि संत का असली धर्म क्या होता है।

जो मंदिर और मस्जिद के लिए लड़ रहे हैं, उन्हें भी यहाँ आना चाहिए और देखना चाहिए कि जीवन का मंदिर कैसा होता है। 

(देश मंथन, 07 अप्रैल 2016)

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