विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:
चेरापूंजी शहर का प्रमुख पड़ाव है रामकृष्ण मिशन आश्रम। 4500 फीट की ऊंचाई पर स्थित शहर में बने इस आश्रम परिसर वास्तव में बच्चों का एक स्कूल संचालित होता है।
इस स्कूल में खास तौर पर मेघालय के आदिवासी समाज के बच्चे पढ़ते हैं। यहाँ रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद के उन महान उद्देश्यों के तहत की गई जिसमें छात्रों को राष्ट्रीय एकता, देश के प्रति प्रेम, इमानादारी जैसे गुणों से युक्त शिक्षा प्रदान की जाए। मिशन का मुख्य भवन काफी भव्य है।
आप चेरापूंजी के रास्ते पर हैं तो रामकृष्ण मिशन देखने लिए कमसे कम दो घंटे का समय अवश्य रखें। भवन के बाहर पार्किंग और छोटा सा बाजार है। मुख्य भवन में एक पहली मंजिल पर दो विशाल कमरों में सुंदर संग्रहालय है। यहाँ आप न सिर्फ मेघालय बल्कि पूर्वोत्तर की संस्कृति और इतिहास के बारे में काफी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। चेरापूंजी में रामकृष्ण आश्रम की स्थापना 1931में स्वामी प्रभानंद जी ने की। इससे पहले उन्होंने शेला में आश्रम और स्कूल खोला था।
पहले चेरापूंजी छोटे बच्चों का स्कूल खोला गया जो 1939 में हाईस्कूल का रूप ले चुका था। स्कूल खास तौर पर खासी हिल्स और जयंतिया हिल्स के बच्चों के लिए वरदान साबित हुआ। स्वामी प्रभानंद जी ने महज तीन महीने में खासी भाषा सीख कर खासी बच्चों के लिए किताबें उनकी भाषा में तैयार की। आश्रम में खासी संस्कृति के संरक्षण में भी बड़ी भूमिका निभाई है। बाद में 1934 में शिलांग में भी आश्रम ने बच्चों के लिए स्कूल खोला। आजकल चेरापूंजी के इस स्कूल में तकरीबन 1200 छात्र पढ़ते हैं। इन छात्रों के लिए आश्रम में विशाल हास्टल भी बना हुआ है।
स्कूल के अलावा आश्रम अंग्रेजी, होमियोपैथिक और आयुर्वेदिक दवाओं के चैरिटेबल डिस्पेंसरी भी चलाता है। आसपास के गाँवों में चिकित्सा सुविधा के लिए मोबाइल मेडिकल यूनिट का भी संचालन किया जाता है। इसके साथ ही सभी तरह के पैथोलाजिकल जांच, एक्स रे और डेंटल उपचार का भी इंतजाम आश्रम करता है। आश्रम परिसर में छात्रों और शिक्षकों के लिए बेहतरीन लाइब्रेरी भी है। आश्रम खासी, अंगरेजी और हिंदी में पत्र पत्रिकाओं का भी प्रकाशन करता है। आश्रम में स्कूली शिक्षा के अलावा रोजगार परक शिक्षा भी दी जाती है।
(देश मंथन, 21 मार्च 2017)