संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
“राम जी अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे। बहुत बहादुर थे। सभी लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे।”
“पापा, राम जी वही न, दादी जिसकी पूजा करती हैं।”
“हाँ बेटा, वही। उन्हें चौदह साल जंगल में जाने की सजा मिल गयी।”
“चौदह? चौदह क्या होता है पापा?”
“चौदह यानी फोर्टीन… तुम समझ रहे हो न, बेटा! जैसे तुम वन, टू, थ्री, फोर पढ़ते हो, वैसे ही हिंदी में इसे एक, दो, तीन, चार कहते हैं। तो जिसे तुम फोर्टीन कहते हो, उसे ही हिंदी में चौदह कहते हैं।”
पापा अपने छोटे से बेटे को रोज रात में सोने से पहले रामायण की कहानी सुनाते और बेटा रोज राम की कहानी सुनते हुआ सोता। पर उस दिन बेटा ‘चौदह’ पर अटक गया। चौदह और फोर्टीन के बीच के अंतर को गुनता हुआ बच्चा सो गया, पर पापा जाग गये।
पापा मन ही मन सोचने लगे कि यह बच्चा चौदह का मतलब ही नहीं जानता। इसका मतलब इसकी कक्षा में पढ़ने वाला कोई बच्चा चौदह का मतलब नहीं समझता होगा। इसका मतलब कि आने वाली पीढ़ी यह जान ही नहीं पाएगी कि राम जी को कितने साल के लिए वनवास जाना पड़ा था। इसका मतलब कि ये पीढ़ी धीरे-धीरे राम की कहानी में दिलचस्पी लेना छोड़ देगी। ये पीढ़ी ‘हैरी पॉटर’ की कहानी पढ़ेगी, पर अपने भगवान की कहानी नहीं जानेगी।
बेटा पिता की बाँहों में लिपटा सो रहा था। पिता की नींद उड़ चुकी थी।
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अब आपके मन में यह सवाल उठने लगा होगा कि मैं किस पिता और किस बेटे की बात कर रहा हूँ।
तो जनाब, तैयार हो जाइए आज के तुलसीदास की कहानी सुनने के लिए। संजय सिन्हा जब कहानी सुनाएँगे, तो आप दाँतों तले उंगलियाँ दबा लेंगे कि क्या सचमुच ऐसा भी होता है, क्या सचमुच ऐसा भी हुआ है?
जी, हुआ है। मेरी आँखों के सामने हुआ है।
मैं जबलपुर गया था। मुझे सुबह-सुबह जाना था साध्वी ज्ञानेश्वरी के आश्रम में। पर सुबह मेरी तबियत थोड़ी ठीक नहीं लग रही थी। मैं अनमना सा होटल में लेटा था। साध्वी ज्ञानेश्वरी के साथ आश्रम जाने के लिए निकले डॉक्टर Akhilesh Gumashta को किसी ने बताया कि मेरी तबियत ठीक नहीं। सुनते ही डॉक्टर साहब ने दीदी ज्ञानेश्वरी से कहा कि आप आश्रम चले जाइए, मैं संजय सिन्हा को देख आता हूँ। वो बीच में ही गाड़ी से उतर गये और मुझसे मिलने होटल चले आये।
डॉक्टर साहब की ये बहुत बड़ी खासियत है। अगर कोई कहीं फँसा है, तो वो पहले उससे उसे निकालते हैं। मैं होटल में फँसा था, मुझे देखने चले आये। उस दिन इन्हीं डॉक्टर साहब का बेटा ‘चौदह’ और ‘फोर्टीन’ के चक्कर में फँस गया था और डॉक्टर साहब पूरी रात नहीं सोये।
नयी पीढ़ी का क्या होगा? हमारे धार्मिक ग्रंथों का क्या होगा?
तुलसीदास संस्कृत के विद्वान थे। उन्होंने वाल्मिकी रचित रामायण को पढ़ा। पर जिन दिनों देश में भक्तिकाल का दौर था, तुलसीदास ने महसूस किया कि लोग रामायण को उतना महत्व नहीं दे रहे, जितनी इस ग्रंथ को जरूरत है।
वजह?
वजह थी संस्कृत भाषा का सिमटना। उन दिनों तुलसीदास जिस इलाके में रहते थे, वहाँ अवधी भाषा प्रचलन में थी। तुलसीदास अवधी बोल लेते थे, पर उनकी मूल भाषा संस्कृत थी। वे ठीक से अवधी भाषा को आत्मसात करने की कोशिश करने लगे और उन्होंने रामायण की कहानी को रामचरित मानस के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दिया। अगर इस सच को स्वीकार किया जाए कि राम की कहानी को तुलसीदास ने ही घर-घर तक पहुँचाया, तो ये अतिश्योक्ति नहीं होगी। राम की कहानी को उन्होंने बहुत सरल भाषा में छंद और चौपाइयों के जरिए न सिर्फ लिखा, बल्कि वे उसे गा-गा कर लोगों को सुनाया भी करते थे। इस तरह तुलसीदास ने राम को जन-जन का नायक बनाया। मर्यादा का मतलब समझाया। बुराई पर अच्छाई हर बार जीतती है, इसे उदाहरण दे कर समझाया।
उस रात डॉक्टर अखिलेश गुमाश्ता के छोटे से बेटे ने पिता से पूछ लिया कि ‘चौदह’ मतलब क्या, तो डॉक्टर साहब ने तय कर लिया कि इस पीढ़ी के लिए रामायण को वो अंग्रेजी में लेकर आएंगे।
डॉक्टर साहब ने स्कूल-कॉलेज में केमेस्ट्री और बॉयोलॉजी की पढ़ायी की थी। आदमी के दिल, दिमाग और गुर्दे की पढ़ाई की थी। पर भाषा तो बहुत पीछे छूट चुकी थी। हिंदी और अंग्रेजी सिर्फ मरीजों के लिए दवा लिखने भर को रह गयी थी। पर उस दिन फोर्टीन और चौदह के अंतर ने उन्हें नए सिरे से कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया।
एक पिता रात में उठा। सारी रात कमरे में टहलता रहा।
फिर उसने शुरूआत की शेक्सपीयर, वर्ड्सवर्थ, कीट्स और ढेरों अंग्रेजी साहित्यकारों को पढ़ने की। रामायण की कहानी तो रोम-रोम में बसी थी, पर उसने अपनी अंग्रेजी माँजनी शुरू कर दी। और जब उसकी अंग्रेजी मंज गयी, तो उसने 830 पन्नों में रामायण की पूरी कहानी रच दी, अंग्रेजी में।
अपने बच्चे के लिए, मेरे बच्चे के लिए, आपके बच्चे के लिए। बच्चों के बच्चों के लिए, आने वाली पूरी पीढ़ी के लिए।
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जबलपुर से दिल्ली लौटे हुए कई दिन बीत गये हैं, पर वहाँ की खुमारी उतर ही नहीं रही। मेरे पास कई सौ कहानियाँ हैं।
सब सुनाऊँगा, पर अभी तो मैं झुक कर प्रणाम करता हूँ आज के तुलसी को।
मेरी भविष्यवाणी है कि आज जिसकी कहानी मैंने आपको सुनाई है, उसकी कहानी एक दिन दुनिया सुनाएगी और बच्चा-बच्चा सुनेगा। पर यह मेरी सौभाग्य है कि सबसे पहले इस कहानी को मैं ही आप तक पहुँचा पाया।
(देश मंथन, 12 अप्रैल 2016)