विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:
दिल्ली से सहारनपुर जाने के लिए देहरादून वाली बस में बैठता हूँ। कंडक्टर महोदय ने कहा कि बस मुजफ्फरनगर बाईपास से होकर जायेगी। आप रामपुर तिराहे पर उतर जाना।
सुबह-सुबह रामपुर तिराहे पर उतर जाता हूँ। दूसरी बस के इंतजार में अचानक नजर शहीद स्मारक पर पड़ती है। कदम उस बढ़ जाते हैं। उत्तराखंड आंदोलन के शहीदों की याद में यह स्मारक बना है। सड़क के किनारे 800 गज में बने विशाल स्मारक में नये राज्य की माँग को लेकर जान गंवाने वालों के नाम सम्मान से लिखे गये हैं। साथ ही यह भी याद किया गया है कि आपकी कुरबानी कभी भुलाई नहीं जा सकेगी। इस स्मारक का विकास संस्कृति विभाग उत्तराखंड की ओर से किया गया है। स्मारक का हरित परिसर मन मोह लेता है।
रामपुर तिराहा गोली काण्ड पुलिस द्वारा उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के आन्दोलनकारियों पर उत्तर प्रदेश के रामपुर क्रासिंग, मुजफ्फरनगर जिले में की गयी गोलीबारी की घटना को कहते हैं। घटना के समय मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री थे। अलग राज्य की माँग कर रहे आंदोलनकारी 1 अक्टूबर, 1994 को दिल्ली में धरना-प्रदर्शन के लिए जा रहे थे, उस दौरान यूपी पुलिस ने मुजफ्फरनगर जिले के रामपुर तिराहे के पास आंदोलनकारियों पर गोली चला दी। इसमें कई आंदोलनकारियों की मौत हो गयी। साथ ही, पुलिस पर कुछ महिलाओं के साथ छेड़खानी और बलात्कार के आरोप भी लगे। पीएसी और पुलिस की गरजती गोलियों और पटकती लाठियों से लहूलुहान निहत्थे आंदोलनकारी कराह रहे थे।
‘आज दो, अभी दो, उत्तराखंड राज्य दो’ जैसे गगनभेदी नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे सभी आंदोलनकारियों को पुलिस ने मुजफ्फरनगर के नारसन रामपुर तिराहे पर रोक दिया। आंदोलनकारियों को बसों से बाहर निकालकर उन पर अंधाधुंध लाठियाँ बरसाईं। मुजफ्फरनगर में हुए उस दिल दहला देने वाले कांड को उत्तराखंड के लोग कभी नहीं भूला पाएंगे।
1994 के इस आंदोलन से अलग राज्य की माँग को और हवा मिली। आंदोलन ने जनान्दोलन का रूप ले लिया और अन्ततः साल 2000 में उत्तराखंड देश का सत्ताइसवाँ राज्य बना। हर साल इस गोलीकांड की बरसी पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री समेत तमाम नेतागण शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि के पुष्प चढ़ाने आते हैं।
गोलीकांड की जाँच
12 जनवरी 1995 में दायर याचिका के आधार पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रामपुर तिराहा गोलीकांड की सीबीआई से जाँच कराने के आदेश दिए थे और जाँच के बाद सीबीआई ने आरोपपत्र दाखिल किया था। हालांकि इस शर्मनाक कांड के दो दशक से ज्यादा गुजर चुके हैं पर, रामपुर तिराहा गोलीकांड के दोषियों को अभी तक सजा नहीं मिल सकी है।
(देश मंथन, 04 अप्रैल 2017)