संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पिताजी के साथ बड़ौदा में आखिरी फिल्म मैंने ‘रंगीला’ देखी थी।
पता नहीं क्यों पिताजी को फिल्म बहुत पसंद आयी थी। जब हम फिल्म देख कर लौट रहे थे, तो पिताजी ने कहा कि इस फिल्म में उर्मिला मातोंडकर ने बहुत अच्छी एक्टिंग की है।
मुझे तो उर्मिला का डांस याद था, आमिर खान का मुन्ना बनना अच्छा लगा था और जैकी श्रॉफ की एक्टिंग भी बहुत भायी थी। फिल्म फुल मनोरंजन वाली कैटेगरी में थी, लेकिन पिताजी उसकी तारीफ करते नहीं थक रहे थे।
करत-करत अभ्यास, जड़मति होत सुजान…
वापसी में मुझे उन्होंने एक कहानी सुनाई। उन्होंने सुनाया कि एक आदमी किसी रेडियो स्टेशन में सफाई का काम किया करता था। था तो वो सफाई कर्मचारी, लेकिन उसे रेडियो अनाउंसर बनने का बहुत शौक था। अब कहाँ सफाई कर्मचारी और कहाँ रेडियो अनाउंसर?
एक दिन अचानक बहुत बड़ा तूफान आ गया। सुबह का अनाउंसर वहाँ पहुँच नहीं पाया। कार्यक्रम शुरू होने वाला था। सिर्फ वो सफाई कर्मचारी उस वक्त वहाँ था। उसने देखा कि अनाउंसर नहीं आया है तो और दो मिनट बचे हैं कार्यक्रम शुरू होने में, तो उसने स्टेशन हेड को फोन किया और बताया कि कोई कर्मचारी वहाँ नहीं पहुँच पाया है।
हेड के तो हाथ-पाँव फूल गये।
सफाई कर्मचारी ने कहा कि क्योंकि वो रात में यहीं रुका था, इसलिए वो है, अन्यथा इतने तूफान में तो कोई नहीं पहुँच पायेगा।
स्टेशन हेड सोच में पड़ गया कि अब क्या होगा।
तभी सफाई कर्मचारी ने कहा, “अगर आप कहें तो मैं कोशिश करता हूँ। आज के लिए मैं रेडियो जॉकी का काम कर सकता हूँ।”
“तुम और रेडियो जॉकी का काम करोगे?”
“हाँ, कर सकता हूँ। इतने वर्षों से मैं लगातार देख रहा हूँ। मैं घर जाकर आइने के सामने रोज बोलने की प्रैक्टिस करता हूँ। मैंने यहाँ की सारी मशीनें चलानी सीख ली हैं।”
स्टेशन मास्टर के पास और कोई चारा नहीं था। उसने बहुत बुझे हुये मन से सफाई कर्मचारी को हाँ कह दी।
उस दिन उस सफाई कर्मचारी ने रेडियो जॉकी का काम बखूबी संभाल लिया। जो स्टेशन उस सुबह नहीं खुलने के कगार पर था, वो नया शो कर रहा था और बताने की जरूरत नहीं कि लोगों ने उस सफाई कर्मचारी के शो को बहुत पसंद भी किया और वो सफाई कर्मचारी एक दिन बहुत बड़ा रेडियो जॉकी बना।
कहानी अच्छी थी। पर रंगीला से उसका क्या मतलब?
पिताजी ने कहा कि रंगीला में उर्मिला मातोंडकर हीरोइन के पीछे भीड़ में नाचने का काम करती है। भीड़ में पीछे नृत्य करने वाली बाकी लड़कियाँ जहाँ खाली समय में बैठ कर समय खर्च करती नजर आती हैं, वहाँ उर्मिला लगातार प्रैक्टिस करती है और एक मौके पर कहती भी है कि वो एक दिन बहुत बड़ी डांसर बनना चाहती है। बाकी लड़कियाँ उसका मजाक उड़ाती हैं और कहती हैं कि पर्दे पर भीड़ में नाचने वालों का कोई करियर नहीं होता।
एक दिन हीरोइन के नखरों से तंग आकर निर्माता उसे फिल्म से ही निकाल देता है और तलाश शुरू होती है एक नयी हीरोइन को। ऐसी ही एक सुबह जैकी श्रॉफ उर्मिला को डांस की प्रैक्टिस करते देखता है और उसके पैशन को सलाम करता है और यहीं से कहानी मुड़ती है, एक ऐसी लड़की जो फिल्म में दस सेकेंड के रोल में सिर्फ पर्दे पर भीड़ का एक हिस्सा होती है, उसे मौका मिलता है हीरोइन बनने का। कहानी कुछ भी हो, उसमें जीवन का संदेश जरूर होना चाहिए।
ओह! तो पिताजी ने इस फिल्म से ये संदेश निकाल लिया है।
मैं चुपचाप चल रहा था। पिताजी कह रहे थे कि आदमी को सिर्फ बड़ा बनने के सपने नहीं देखने चाहिये, उन सपनों को सच करने के लिए अभ्यास भी करना चाहिए। जो अभ्यास करते हैं, उन्हीं के सपने साकार होते हैं, चाहे वो फिल्म में उर्मिला के सपने रहे हों या फिर रेडियो जॉकी बनने वाले सफाई कर्मचारी के।
जो कुछ पाने के लिए नियमित अभ्यास करते हैं, वही अर्जुन बनते हैं।
एक महान चलताऊ फिल्म से पिताजी ने जो ज्ञान निकाल कर मुझे दिया वो मेरे लिए गुरू मंत्र बना। पिताजी कहते थे कि भाग्य को दोष देने वालों को एक बार खुद में झांक कर जरूर देखना चाहिए कि कहीं उनके प्रयास में कमी तो नहीं रह गयी थी। जो किसी चीज को पाने का अथक प्रयास करते हैं, उन्हें वो चीज जरूर हासिल होती है। जो नहीं करते, उन्हें जब वो चीज नहीं हासिल होती तो भाग्य का दोष मान लेते हैं।
पिताजी के साथ ये मेरी आखिरी फिल्म थी। इसके बाद पिताजी बड़ौदा में छोटे भाई के पास रुक गये थे, मैं दिल्ली चला आया था। हफ्ते भर बाद फाल्सीफेरम मलेरिया से उनकी मृत्यु हो गयी। पिताजी की मौत पर मैंने लिखा है कि कैसे डॉक्टर से बीमारी पहचानने में देर हुयी।
सुबह-सुबह जब मैं आपके लिये कुछ लिखता हूँ, तो मेरे जेहन में सिर्फ कहानी होती है, वो तो आप हैं जो उसमें से कुछ न कुछ संदेश भी निकाल लेते हैं, एकदम मेरे पिताजी की तरह।
(देश मंथन, 25 मार्च 2015)