अहंकार मिटाता है

0
416

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

कल मेरे दफ्तर में अनिल कपूर और जॉन अब्राहम आये थे। दोनों अलग-अलग गाड़ियों में थे। जॉन गाड़ी से पहले उतर गए, अनिल किसी से फोन पर बात कर रहे थे। मैं जॉन को लेकर गेस्ट रूम में चला गया और वहाँ उन्हें बिठा दिया। मैं उनसे चाय-कॉफी पूछ ही रहा था कि अपनी बात खत्म कर अनिल कपूर भी कमरे में चले आये। 

जैसे ही अनिल कमरे में आए, जॉन खड़े हो गये। उन्होंने अनिल से बैठने का इशारा किया और जब तक अनिल कपूर कुर्सी पर बैठ नहीं गये, जॉन खड़े ही रहे। 

मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। 

दोनों फिल्मी कलाकार हैं। दोनों साथ में काम करते हैं। फिर जॉन अनिल के लिए खड़े क्यों हो गये?

***

जब मैं छोटा था, एकदिन हमारे घर मेरे स्कूल के उपेंद्र मास्टर पिताजी से मिलने घर आये थे। मास्टर साहब बाहर बरामदे में बैठे थे। मैं अपने कमरे से निकल कर खेलने जा रहा था। मास्टर साहब पर मेरी निगाह पड़ी और मैं वहीं से जोर से चिल्लाया, प्रणाम मास्टर जी। और निकल पड़ा बाहर। 

माँ ने उपेंद्र मास्टर को मेरा प्रणाम करना देख लिया था। जैसे ही मैं बाहर निकला, माँ ने मुझे आवाज़ दी। 

“संजू इधर आओ।”

मैं हाथ में क्रिकेट का बल्ला लिए माँ के सामने था। 

उन्होंने उपेंद्र मास्टर की ओर इशारा किया और कहा कि मास्टर साहब के पाँव छू कर उन्हें प्रणाम करो। 

मैं जल्दी में था, मैंने फटाफट पाँव छुए और चलता बना। 

***

शाम को जब मैं खेल कर घर आया तो माँ ने मुझे पास बिठा कर एक कहानी सुनायी। 

***

“एक राजा था। वो बचपन में पढ़ नहीं पाया था। राजा बनने के बाद उसने अपने मंत्रियों से एक ऐसे गुरु को तलाशने को कहा, जो उसे कुछ पढ़ा सकें। 

मंत्रियों ने राजा के लिए एक ऐसे गुरु की तलाश कर ली। 

गुरु रोज राजा के पास आते, उसे पढ़ाते। पर राजा की समझ में कुछ नहीं आता। उसने बहुत कोशिश की, बहुत मेहनत की पर उसे गुरु की बातें समझ में आतीं भी तो याद नहीं रहतीं। 

एकदिन राजा ने मंत्रियों से इस समस्या पर चर्चा की। मंत्रियों ने गुरु को बुला कर पूछा कि आप बाकी जिन लोगों को पढ़ाते हैं, वो सब तो ज्ञानी बन गये हैं, पर राजा को आपकी विद्या क्यों समझ में नहीं आ रही?

गुरु ने बहुत धीरे से कहा कि राजन अगर सिंहासन छोड़ कर मेरे सामने जमीन पर बैठ कर पढ़ाई करें तो उन्हें जल्दी लाभ मिलेगा।

बहुत बड़ी समस्या थी। राजा जमीन पर बैठे और गुरुजी उनके सामने कुर्सी पर!

बात राजा तक पहुँची। राजा आग बबूला हो गया। फौरन गुरु को उसके सामने पेश किया गया। 

“गुरु, तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम ऊपर बैठोगे और मैं नीचे बैठ कर ज्ञान प्राप्त करूँगा?”

“हाँ राजन! शिक्षा का पहला पाठ ही यही है-अहंकार का त्याग। माना कि आप राजा हैं, मैं एक मामूली शिक्षक। लेकिन जबतक आप अपने अहंकार का त्याग नहीं करेंगे, मेरी सिखायी हुई विद्या आपके भीतर नहीं समाहित होगी। मैंने और आपने, दोनों ने यह कोशिश करके देख ली है। 

अब मेरा कहा मानिए, आप कुछ दिनों के लिए मन से यह भाव निकलाने की कोशिश करें कि आप राजा हैं।”

राजा ने बहुत सोचा और गुरु की बात मान ली। 

अगले दिन से सचमुच राजा को सारी बातें समझ में आने लगीं। और धीरे-धीरे उसने सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया।”

***

माँ कहती थी कि तुम्हारा कोई बड़ा सामने हो तो, तुम्हें उसकी इज्जत करनी चाहिए। मास्टर सामने हों तो पाँव छू कर ही प्रणाम करना चाहिए। ऐसे भागते हुए प्रणाम कहना न सिर्फ उद्दंडता है, बल्कि तुम्हारी शिक्षा में बाधक भी है। गुरु के आशीर्वाद के बिना ज्ञान प्राप्त हो ही नहीं सकता। अपने से बड़ों के आगे झुकना कमजोरी नहीं विनम्रता की निशानी है। और विनम्र होना आदमी के संस्कारी होने की निशानी है। 

***

कल जब मैंने जॉन अब्राहम को अनिल कपूर के सामने खड़ा देखा तो माँ की वो कहानी खूब याद आयी। सिनेमा में और चाहे जो हो, पर यह सच है कि वहाँ सीनियर और जूनियर के बीच एक अनकहा रिश्ता खूब निभता है। जो इन रिश्तों को निभाते हैं, वहीं टिकते हैं। वर्ना जिन लोगों ने अहंकार दिखाने की कोशिश की है, उन्हें मिटते हुए भी मैंने देखा है। 

***

“विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है, पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है।”

(देश मंथन 03 सितंबर 2015)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें