संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
एक पिता ने मुझसे गुहार लगायी है कि मैं उनके बेटे को समझाऊँ। बेटा पिता की बात नहीं सुनता। वो पिता के साथ अभद्र व्यवहार करता है। मैंने सोच लिया था कि मैं चौथी कक्षा में पढ़ी वो कहानी उसे जरूर सुनाऊँगा, जिसे पढ़ते हुए मैं बहुत गहरी सोच में डूब जाया करता था।
पर अचानक मुझे उस आदमी की कहानी याद आ गयी, जिसने चार शादियाँ की थीं।
“चार शादियाँ?”
“हाँ, चार शादियाँ। दरअसल हम सभी अपनी जिन्दगी में चार शादियाँ करते हैं।”
“पहेलियाँ न बुझाओ, संजय सिन्हा। साफ-साफ बताओ कि हमने भला चार शादियाँ कब कीं? हमने चार शादियाँ क्यों कीं? हमने चार शादियाँ कैसे कीं?”
“ओह! एक साथ इतने सवाल? तब तो वो कहानी सुनानी ही पड़ेगी, जिसे मुझे मेरी टीचर ने मुझे सुनायी थी।”
“देर न करो। तुमने इतनी बड़ी बात कह दी है, तो अब कहानी सुनाओ।”
“और पिता की गुहार वाली कहानी?”
“वो कल सुनाना। आज तो चार शादियों का राज खोलो।”
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एक राजा था। उसकी चार पत्नियाँ थीं।
वो चौथी पत्नी से बहुत प्यार करता था। वो उसका बहुत ध्यान रखता था। उसकी सारी जरूरतें वो पूरी करता था। उसके दिल और दिमाग में वो बसी हुई थी। वो उसकी सुख-सुविधा के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था।
वैसे राजा को अपनी तीसरी पत्नी से भी बहुत प्यार था। वो इतनी खूबसूरत थी कि उसके मन में हमेशा यह भय रहता था कि कहीं वो उसे छोड़ कर किसी और के पास न चली जाए।
अब बात आती है राजा की दूसरी पत्नी की। तो, सच यही है कि राजा अपनी दूसरी पत्नी को भी बहुत चाहता था। वो उसकी विश्वासपात्र थी। वो उसके राजकाज को चलाने में भी उसकी मदद करती थी। कभी-कभी किसी मुश्किल घड़ी में वो उसके लिए बेहतरीन सलाहकार का काम भी करती थी।
अब बची पहली पत्नी। तो सच्चाई ये है कि पहली पत्नी राजा से बहुत प्रेम करती थी।
हालाँकि राजा को अपनी पहली पत्नी पसंद नहीं थी। वो उसकी ओर से उदासीन ही था। पर पहली पत्नी अपने पति से बहुत प्यार करती थी।
***
एक दिन राजा बहुत बीमार पड़ गया। उसे लगने लगा कि अब उसका अंतिम समय नजदीक आ गया है। उसे अकेलेपन का भय सताने लगा कि वो अकेला कैसे मरेगा। उसके मन में आया कि कोई उसके साथ मर जाए तो वो अकेला नहीं रहेगा।
उसने अपनी चौथी पत्नी को, जिसे वो सबसे अधिक प्यार करता था, अपने पास बुलाया और कहा, “मैंने तुम्हें जीवन भर बहुत प्यार किया है। दरअसल मैंने तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार किया है। तुमने जो चाहा, मैंने तुम्हें दिया। क्या तुम मेरे साथ मरोगी? मैं तुम्हारे बिना मर कर बहुत उदास रहूँगा।”
पत्नी राजा की बात सुन कर घबरा गयी। उसने कहा, आप कैसी बातें कर रहे हैं? मैंने संसार को ठीक से देखा तक नहीं। मैं नहीं मर सकती आपके साथ।
राजा को बहुत अफसोस हुआ। फिर उसने तीसरी पत्नी को अपने पास बुलवाया।
उसने उससे भी यही कहा कि वो मरने वाला है और वो नहीं चाहता कि अकेला मरे। उसने उससे गुजारिश की कि वो भी उसके साथ मर जाए।
पर तीसरी पत्नी ने भी उससे यही कहा कि ऐसा भला कैसे हो सकता है। “अभी तो मैं जवान हूँ। खूबसूरत हूँ। उसने कहा कि आपके मर जाने के बाद मैं दूसरी शादी करके नयी जिन्दगी जीना चाहूँगी। अभी मरने की नहीं सोच सकती।”
राजा को बहुत दुख हुआ। उसे अपनी इस पत्नी से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी।
अब राजा को दूसरी पत्नी की याद आयी।
दूसरी पत्नी से भी राजा ने यही कहा कि तुमने हमेशा मेरा साथ दिया है। क्या तुम मेरे साथ मरना पसंद करोगी।
दूसरी पत्नी ने भी मना कर दिया। “नहीं, मैं आपके साथ नहीं मर सकती। कोई किसी के साथ नहीं मरता।”
राजा बिल्कुल टूट गया।
तभी उसकी पहली पत्नी उसके पास आयी और उसने राजा से कहा कि मैं आपके साथ चलूँगी। मैं आपके साथ मरना चाहूँगी। मैंने हमेशा आपसे बहुत प्यार किया है।
राजा ने अपनी पहली पत्नी की ओर देखा। वो बहुत बीमार नजर आ रही थी। राजा ने बहुत दिनों से उसकी ओर देखा तक नहीं था।
अपनी पहली पत्नी की आवाज सुन कर राजा बिलख पड़ा। उसने बिलखते हुए कहा कि मैंने तुम्हारा कभी ध्यान नहीं रखा, जबकि मुझे सबसे अधिक तुम्हारा ही ध्यान रखना चाहिए था।
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“संजय सिन्हा, ये तो राजा और उसकी चार रानियों की कहानी हुई, जिसमें तीन ने उसके साथ मरने से मना कर दिया। पर इससे ये कैसे साबित हुआ कि हम सबने चार शादियाँ की हैं?”
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दरअसल हम सबकी चार पत्नियाँ होती हैं।
चौथी पत्नी हमारी देह है। हम चाहे इसका जितना भी ध्यान रखें, ये हमारा साथ छोड़ ही देती है।
संपत्ति हमारी तीसरी पत्नी है। हमारे मर जाने के बाद वो किसी और के पास चली जाती है।
हमारा परिवार हमारी दूसरी पत्नी है। परिवार वाले जीवित रहते तो हमारे करीब रहते हैं, लेकिन हमारे चले जाने के बाद भुला देते हैं।
पहली पत्नी हमारी आत्मा है। हम सारी जिन्दगी धन-दौलत, लोभ, मोह, परिवार के पीछे उसे भुलाए रहते हैं। पर साथ वही जाती है।
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एक रिश्ता अपनी आत्मा के साथ भी बना कर देखिए। अच्छा लगेगा।
(देश मंथन, 23 दिसंबर 2015)