इज्जत दो, इज्जत बढ़ेगी

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

ड्राइवर गाड़ी चला रहा था, मैं अपनी पत्नी के साथ पीछे बैठा था। 

कल बहुत दिनों के बाद पत्नी के बार-बार कहने पर मैं नया मकान देखने जा रहा था। मैंने पहले भी आपको बताया है कि पत्नी का कहना है कि मुझे बड़े घर में शिफ्ट होना चाहिए। एक ऐसे घर में जहाँ मेरे सोने के लिए अलग कमरा हो, पढ़ने के लिए अलग। जहाँ चार मेहमान अगर आ जाएँ, तो हम ठीक से उनकी मेहमानवाजी कर पाएँ। 

उसका ऐसा सोचना लाजिमी भी है। हम पिछले दस साल से एक ही फ्लैट में रह रहे हैं और जिस फ्लैट में रह रहे हैं, उसमें लिफ्ट भी नहीं है। ऐसे में एक बार मैं अमिताभ बच्चन जी को अपने घर बुलाना चाहता था, तो पत्नी कहने लगी कि यहाँ कैसे लाओगे। बात ठीक भी है। 

तो बहुत दिनों से उठ रही बड़े घर की माँग को ध्यान में रखते हुए कल हम दोनों निकल पड़े थे एक नये फ्लैट को देखने। 

***

गाड़ी अपनी रफ्तार से चली जा रही थी, अचानक ड्राइवर ने जोर का ब्रेक मारा। गाड़ी रुकी फिर ड्राइवर ने गाड़ी का शीशा खोला और सामने खड़े रिक्शा वाले को डाँटने लगा। हम बड़े घर में जाने की तैयारी की बातचीत में इस कदर मशगूल थे कि हमारा ध्यान ही इस बात पर नहीं गया कि क्या हुआ। हम समझ नहीं पाए कि ड्राइवर ने अचानक एक रिक्शे वाले को क्यों डाँटना शुरू कर दिया। पर गाड़ी इतनी तेजी से रुकी थी कि हमारा ध्यान उधर चला गया। 

ड्राइवर गुस्से में लाल था। रिक्शे वाले को कह रहा था, “अंधा है क्या? अभी गाड़ी तुम्हारे ऊपर चढ़ जाती तो पता चलता।”

रिक्शा वाला समझ नहीं पा रहा था कि वो क्या कहे। गलती किसकी थी, पता नहीं चल रहा था। पर वो चुप था और मेरा ड्राइवर उसे लगातार डाँटे जा रहा था। 

थोड़ी देर गुस्सा करने के बाद ड्राइवर फिर चल पड़ा, पर वो बहुत देर तक रिक्शे वाले पर बुदबुदाता रहा।

***

कभी-कभी हम ड्राइवर को भी ऐसे ही डाँटते हैं। उसकी गलती पर उसे बुरी तरह झाड़ देते हैं। मैंने महसूस किया है कि ड्राइवर मेरी डाँट का प्रतिवाद नहीं करता। वो चुप होकर मेरी डाँट को वैसे ही सुनता है, जैसे रिक्शा वाला उसकी डाँट को सुन रहा था। 

***

मैंने पत्नी से पूछा कि आखिर हुआ क्या था? ड्राइवर इतना गुस्सा तो नहीं करता। फिर वो रिक्शा वाले पर इस कदर क्यों भड़क गया था?

पत्नी मेरी ओर देख कर मुस्कुराई। उसने धीरे से कहा कि कोई बात नहीं थी। रिक्शा वाला अचानक सामने आ गया था। 

“पर इतनी सी बात के लिए रिक्शा वाले को उसने एकदम धो दिया। और सच बात तो यह है कि गाड़ी रिक्शे से लगी भी नहीं। फिर ड्राइवर को इतना गुस्सा क्यों आया?”

पत्नी ने बताया कि ड्राइवर को गुस्सा इसलिए आया क्योंकि वो रिक्शा वाले की इज्जत नहीं करता। 

“तुम भी अजीब हो। अब इसमें रिक्शा वाले की इज्जत की बात कहाँ से आ गयी?”

“जब आदमी किसी की इज्जत नहीं करता तो उस पर अपना गुस्सा ऐसे ही निकालता है। अब तुम बताओ, आदमी इज्जत किसकी नहीं करता?”

“आदमी उसकी इज्जत नहीं करता, जिसे वो पसंद नहीं करता।”

“नहीं संजय, आदमी उसकी इज्जत नहीं करता, जिसे वो अपने से छोटा मानता है। वो उसे चाहे जिस रूप में छोटा लगे, उसकी वो इज्जत नहीं करता। यह बड़ाई-छोटाई उम्र, परिस्थिति, नौकरी, पैसा किसी भी चीज पर निर्भर कर सकती है। तुम ड्राइवर को कई बार डाँट देते हो, तो यही सोच कर कि वो छोटा है। वो तुमसे उम्र में छोटा है, पैसों में छोटा है। इसलिए तुम ड्राइवर को जब चाहते हो, फटकार देते हो। ड्राइवर की निगाह में वो रिक्शा वाला हैसियत में उससे छोटा है। उसने उस पर अपना गुस्सा निकाल लिया। दरअसल ड्राइवर का कोई गुस्सा था ही नहीं। वो तुम्हारा गुस्सा था, जो ड्राइवर के गुस्से के रूप में उस रिक्शे वाले पर निकल रहा था। और बहुत मुमकिन है कि वो रिक्शा वाला घर जा कर अपने बच्चे या अपनी पत्नी पर उसी गुस्से को निकाले।”

“इसका मतलब ये हुआ कि वो रिक्शा वाला, जो शायद अपनी पत्नी को डाँटेगा, दरअसल वो नहीं डाँटेगा, मैं डाँटूंगा।”

“हाँ, ऐसा ही है। और तुम भी भला कहाँ से इस गुस्से को लेकर आते हो? तुम अपने किसी बड़े से लेकर आते हो। मुमकिन है कोई तुम पर तुम्हारी गलती पर इसी तरह नाराजगी को निकालता होगा, तभी तो तुम कभी-कभी अपने से छोटे को डाँटते हो।”

मैं सोच में पड़ गया। 

क्या यह सच है? 

***

पत्नी कहे जा रही थी। तुम अपने से छोटों को न सिर्फ प्यार दो, बल्कि उन्हें इज्जत देकर देखो। वो आगे उसे वैसे ही ट्रांसफर करने लगेंगे। यह पूरा सिद्धांत आदमी के कर्म सिद्धांत की वापसी जैसा ही है। पर तुम इसे कॉलेज की रैगिंग सिद्धांत से भी जोड़ सकते हो। जूनियर बच्चों की रैगिंग पहले सीनियर करते थे। वो जिस तरह का व्यवहार अपने जूनियर से करते थे, ठीक वही व्यवहार वो जूनियर सीनियर बनने के बाद अपने जूनियर से करते थे। 

जब हम उसके शिकार होते थे, तब हम अफसोस करते थे। पर जब हम शिकार करते थे, तब खुश होते थे। हम वही देते थे, जो हम पाते थे। या फिर ऐसे समझ लोकि हम जो पाते थे, वही देते थे।

“फिर इससे मुक्ति का उपाय?”

“उस कड़ी को तोड़ दो। तुम्हारी रैगिंग हुई, तुम मत करो। तुम नहीं करोगे, तो तुम्हारे जूनियर आगे नहीं करेंगे। उस कड़ी को तोड़ दोगे तो आगे की कड़ियाँ सुधर जाएंगी। तुम अपने से छोटों की इज्जत करने लगो, तुमसे छोटे अपने से छोटों से इज्जत करने लगेंगे। समाज का निर्माण ऐसे ही होता है। सड़कों पर बढ़ रहा असंतोष भी इस बात से खत्म हो सकता है कि हम छोटी-मोटी भूल या गलती को माफ करना सीखें। कार वाले स्कूटर वाले को इज्जत दें। स्कूटर वाले पैदल वाले को। फिर देखना, तुम्हारा ड्राइवर बीच सड़क पर गाड़ी रोक कर उस रिक्शा वाले पर रौब नहीं गांठेगा। 

***

मेरी पत्नी कभी-कभी एक बौद्ध सभा में जाती है। मुझे लगता है कि वहीं से वो यह सब सीख कर आती है। क्योंकि यह सच है कि एकाध दफा वो मुझ पर भले अपना रौब झाड़ ले, पर मैंने उसे कभी कामवालियों, ड्राइवर, प्रेसवाले पर रौब झाड़ते नहीं देखा है। उसका कहना है कि इन्हें इज्जत देनी चाहिए। इसलिए इज्जत देनी चाहिए, ताकि वो उस इज्जत को आगे बढ़ा सकें। ताकि यह संसार सभी को आदर भाव से देखने लगे। आज भले अंतर पता न चले, पर जब तुम्हारी संतान बड़ी हो जाएगी, तो ये लौट कर तुम्हारे पास ही आएगा।”

मकान बड़ा मिलेगा कि नहीं, अभी फाइनल नहीं हुआ है। पर कल ज्ञान बड़ा मिल गया।  

(देश मंथन, 22 मार्च 2016)

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