चेत जाइये नहीं तो कुछ भी नहीं होगा

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज चौथा दिन है जब बुखार ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा है। बुखार क्यों हुआ, नहीं पता। मैंने खाने-पीने में ऐसी कोई बदपरहेजी नहीं की। पर बुखार हो गया। एक दिन का बुखार होता है तो पत्नी की सेवा से ठीक हो जाता हूँ। दो दिन का बुखार होता है तो बिस्तर पर लेटे-लेटे ऊटपटांग सपने देखने लगता हूँ। तीसरे दिन तो डॉक्टर को दिखला ही लेना चाहिए। क्रोसिन और कालपोल से तीसरे दिन काम नहीं चलाना चाहिए। तो कल मैं डॉक्टर को दिखला आया।

आजकल मेरा फैमिली फिजिशियन छुट्टी पर है, इसलिए मैं कल चला गया एक और डॉक्टर के पास। मेरे मित्र ने उनका नाम सुझाया था।
डॉक्टर साहब एमबीबीएस, एमडी हैं और कई साल पहले दिल्ली के सरकारी अस्पताल में सीनियर डॉक्टर थे। फिर जब प्राइवेट अस्पतालों का बूम आया तो उन्होंने भी सरकारी नौकरी को गुडबाय कह कर प्राइवेट अस्पताल में डॉक्टरी पकड़ ली।
और फिर शुरू हो गया नोट गिनने का सिलसिला।
पत्नी महिला रोग विशेषज्ञ और खुद फिजिशियन। नोटों से बोरियाँ भरने लगीं। मगर तभी एक हादसा हुआ।
हादसा कहना शायद ठीक नहीं, पर डॉक्टर की नजर में ये हादसा ही था। उनकी इकलौती बेटी, जो नौवीं कक्षा में पढ़ती थी, जो पढ़ने में मेधावी थी, वो अचानक फाइनल परीक्षा में फेल हो गयी।
पूरे घर में शोक की लहर दौड़ गयी। पूरा घर मतलब क्या? शहरों में पूरे घर का मतलब होता है, तीन या चार कमरे, खुद पति-पत्नी और उनके एक या दो बच्चे। यहाँ तो दो भी नहीं थे, एक ही बिटिया थी। वो भी पढ़ाई में फिसड्डी हो गयी।
दोनों पति-पत्नी ने बेटी को खूब फटकारा। बेटी खूब रोई। स्कूल में टीचर से बात की गयी। सारे टीचर भी हैरान थे। आखिर हुआ क्या?
दुनिया भर का इलाज करने वाले डॉक्टर दंपति के पास अपनी समस्या का कोई इलाज़ नहीं था। इतनी मेहनत से इतना पढ़ लिख कर खुद का करियर बनाने का क्या फायदा, जो इकलौती बेटी ही पढ़ाई न कर पाये।
डॉक्टर साहब ने बहुत सोचा।
और अचानक उन्होंने एक फैसला ले लिया। उन्होंने तय कर लिया कि वो अब नौकरी नहीं करेंगे। वो अब सुबह और शाम दो-दो घंटा पास किसी क्लिनिक में बैठेंगे और जो भी मरीज आएगा, उसका इलाज करेंगे। वो उतना ही पैसा लेंगे, जितना वो दे पाने में सक्षम होगा। बस चार घंटे की प्रैक्टिस और बाकी समय उन्होंने तय कर लिया कि घर पर बेटी को देंगे।
वो अब उसके साथ रहेंगे।
बहुत मुश्किल था, एकदम चलते हुए धंधे से मुँह मोड़ लेना। पर डॉक्टर साहब ने ऐसा ही किया। उन्होंने प्राइवेट अस्पताल में सीनियर डॉक्टर का पद छोड़ दिया और अपने घर के पास ही एक छोटा सा कमरा किराए पर लिया और गले में स्टेथस्कोप लटका कर बैठ गये।
मरीज आया तो बहुत अच्छा, नहीं आया तो और भी अच्छा।
उसी डॉक्टर से मैं कल मिला था।
***
डॉक्टर से मेरा मित्र कैसे मिला?
दरअसल मेरे मित्र की पत्नी को अचानक कमर और पीठ दर्द की शिकायत हुई थी। मेरे मित्र अपनी पत्नी को दिखाने डॉक्टर साहब की पत्नी के पास पहुँचे, जो महिला रोग विशेषज्ञ हैं। डॉक्टर साहिबा ने कोई चार टेस्ट बताए और पाँच दवाएँ लिखीं। सारी दवाएँ बहुत महँगी थीं।
मेरे मित्र को पता नहीं क्या सूझी कि वो चलते हुए डॉक्टर साहब से भी मिल लिए। यूँ हीं बिना जान-पहचान के।
डॉक्टर साहब ने अपनी पत्नी की लिखी पर्ची देखी और धीरे से सभी दवाएँ काट दीं। कहा आप ज़्यादा चक्करों में मत पड़िए। इन्हें किसी टेस्ट की ज़रूरत नहीं। बस ये वाली दो गोलियाँ खिला दीजिएगा।
हजारों की जगह पचास रुपये की गोलियाँ खिला कर काम चल गया। तीन साल बीत गए, मेरे मित्र की पत्नी एकदम फिट हैं।
बस, तब से मेरे मित्र का उस डॉक्टर पर विश्वास जम गया है। और इसी भरोसे में वो कल मुझे साथ ले गये।
मुझे पूरी उम्मीद थी कि तीन दिन बुखार को हो गये, रक्त की जाँच तो बनती ही है। पर डॉक्टर साहब ने कहा मुँह खोल कर दिखाओ। मैंने आSSSS किया, तो उन्होंने मुँह के भीतर टॉर्च की रोशनी फेंकी और कहा कि एसी-गर्मी-एसी की वज़ह से गले में इनफेक्शन हो गया है।
और फिर ब्लड प्रेशर वाली मशीन से ब्लड का प्रेशर नापा और कहा कि एकदम परफेक्ट है। और आखिर में अपना आला लगा कर छाती पर घर्र-घर्र की आवाज भी सुन ली और कहा कि ठीक तो आप दो दिन में हो जाएँगे, पर जो दवाएँ मैं दे रहा हूँ, उसे पाँच दिनों तक खाइएगा।
***
डॉक्टर साहब के साथ लंबी बातचीत होने लगी और इसी बीच उनकी ये कहानी सामने आई।
मैं जानता हूँ कि अब आप मचल रहे होंगे यह जानने के लिए डॉक्टर साहब ने सब छोड़ कर डॉक्टरी को सेवा भाव से ले लिया, तो बिटिया का क्या हुआ?
जी जनाब, बीटिया ने अगले साल क्लास में टॉप किया। फिर दसवीं में भी बहुत अच्छे मार्क्स आए। और तीन दिन पहले ही बारहवीं के नतीजे आए हैं, उसमें उसने 96% अंक पाये हैं।
डॉक्टर साहब ने बताया कि बहुत मुश्किल होता है यह समझ पाना कि कब हम पैसा कमाने की अंधी दौड़ में शामिल हो गये, और कब हमसे हमारे रिश्ते छूट गये।
भाग्यशाली होते हैं वो लोग, जिन्हें बीमारी का पता पहली डिग्री पर ही लग जाता है। जो समय रहते चेत जाते हैं, उनके तो बच्चे बन जाते हैं, जो नहीं चेतते उनके पास एक दिन सबकुछ होता है, पर कुछ भी नहीं होता।
***
आप में से कुछ लोग डॉक्टर का नाम और पता जानना चाहेंगे। क्योंकि मैंने उनसे उनकी कहानी लिखने की अनुमति नहीं ली है, इसलिए नाम नहीं लिख रहा। पर उनसे पूछ कर आपको ज़रूर बताऊँगा।
(देश मंथन, 24 मई 2016)

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