संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
शायद पच्चीस साल पुरानी बात है, हमारे अखबार के संपादक प्रभाष जोशी क्रिकेट का मैच देखने न्यूजीलैंड गये हुए थे। वहाँ से मैच का आँखों देखा हाल वो रोज जनसत्ता में छाप रहे थे। तब मैं जनसत्ता में उप संपादक के पद पर काम करने लगा था।
प्रभाष जोशी हमारे नायक हुआ करते थे। हमें लगता था कि संसार में प्रभाष जोशी से बड़ा कोई आदमी नहीं हो सकता है। उन्होंने अखबार में अगर कुछ लिख दिया, तो मुझे लगता था कि अब इसके आगे कुछ और नहीं लिखा जा सकता है। जैसे छोटा बच्चा अपने पिता को संसार का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति मानता है, उसी तरह मैं तब प्रभाष जोशी को संसार का सबसे बड़ा पत्रकार मानता था।
एक दिन प्रभाष जोशी ने पता नहीं किस मैच के संदर्भ में लिखा कि एक दुबला पतला छोटे कद का बच्चा जिसका नाम सचिन तेंदुलकर है, आज भले दुनिया उसे नहीं पहचान रही, पर एक दिन वो क्रिकेट के आसमान में धूमकेतु बन कर चमकेगा।
मैं स्कूल-कॉलेज में क्रिकेट भले खेलता रहा होऊँ, लेकिन धीरे-धीरे क्रिकेट से मेरा मोहभंग हो गया। मैं क्रिकेट मैच को फॉलो नहीं करता, कभी इक्का-दुक्का मैच मैंने टीवी पर देख लिया तो और बात है, वर्ना मेरे लिए क्रिकेट में हार-जीत खबर से अधिक कुछ भी नहीं। मैं कोई मैच आँख गड़ा कर नहीं देखता, न ही उसके बारे में किसी से कोई चर्चा करता हूँ। मेरे पास न जाने कितने मैच के पास आए, जिन्हें मैंने कभी अपने दोस्तों को दे दिया, या ड्राइवर को। कुल मिला कर मैं इतना कबूल करना चाहता हूँ कि क्रिकेट मेरी दिलचस्पी का विषय नहीं।
पर प्रभाष जोशी ने जिस दुबले-पतले, छोटे कद के बच्चे के विषय में भविष्यवाणी की थी, उससे मिलने का मेरा बहुत मन था।
प्रभाष जोशी ने अपनी उसी रिपोर्टिंग में मेरे दिल में न्यूजीलैंड के प्रति भी दिलचस्पी पैदा कर दी थी। उन्होंने न्यूजीलैंड और वहाँ क्राइस्टचर्च के मैदान की इतनी तारीफ अपने लेखों में की थी कि मेरे मन में इच्छा बैठ गयी थी कि मैं कभी न कभी क्राइस्टचर्च शहर जरूर जाऊँगा।
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मैं न्यूजीलैंड गया। मैं क्राइस्टचर्च शहर भी गया। मैं उस मैदान में भी गया, जिसकी प्रभाष जोशी ने कभी तारीफ की थी। कीवियों के देश की प्रभाष जोशी ने जितनी तारीफ की थी, मैंने उसे वैसा ही पाया। इससे मेरा यकीन इस बात में और बढ़ गया कि प्रभाष जोशी ने सचिन के लिए जो लिखा है, वो भी एक दिन सच होकर रहेगा।
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अब आज सचिन तेंदुलकर के विषय में मैं जो भी लिखूँगा, आप मुझसे कहीं बहुत अधिक उसके विषय में जानते होंगे। मैं तो सिर्फ इतना ही लिख रहा हूँ कि प्रभाष जोशी की कलम से निकली उस भविष्यवाणी के सच को दुनिया ने साकार होते हुए देखा है। उन्होंने इतना ही लिखा था कि यह क्रिकेट के आसमान में धूमकेतु बन कर चमकेगा। मैंने क्या, दुनिया ने इसे सच होते हुए देखा। बस, मेरे मन में बैठ गया था कि मुझे सचिन से मिलना है।
किसी अखबार वाले या टीवी वाले के लिए सचिन से मिलना कौन सी बड़ी बात है! किसी मैच में चले जाइए, इंटरव्यू लेने के बहाने मिल लीजिए। पर नहीं, मुझे इंटरव्यू लेते हुए नहीं, ऐसे ही मिलना था।
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टीवी का संसार अजीब होता है। यहाँ जो जीता, वही सिकंदर होता है। जी न्यूज में रिपोर्टिंग के दौरान एक बार मुझे अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ बांग्लादेश जाने का मौका मिला था। मुझे बांग्लादेश जाने का वीजा मिला और मैं क्लिंटन के साथ ढाका चला गया। वहाँ से वापसी के बाद ढाका में ही क्रिकेट का कोई एशिया कप मैच होने वाला था, और क्योंकि मेरे पास ढाका जाने का वीजा था, इसलिए मुझ जैसे क्रिकेट अप्रेमी को ढाका भेज दिया गया कि वहाँ जाकर मैच कवर करो।
सोचिए, पूरी दुनिया में उन दिनों मैच फिक्सिंग को लेकर बवाल मचा हुआ था, और मुझे भेज दिया गया क्रिकेट कवर करने के लिए।
मैं ढाका पहुँचा। वहाँ मुझे क्रिकेट मैच देखने के लिए जो पास मिला, वो पवेलियन का था। सभी क्रिकेट खिलाड़ी वहीं बैठ कर मैच देखा करते थे। मैंने पहली बार सचिन को वहीं देखा। बिल्कुल साथ में बैठ कर मैच देखते हुए। मैं पहली बार वहीं सुनील गावस्कर से मिला। मियादाद से मिला। अब तो याद भी नहीं कि किन-किन खिलाड़ियों से मिला। पर उन दिनों मैच फिक्सिंग का इतना खौफ था कि कोई क्रिकेट खिलाड़ी पत्रकारों से बात करने को तैयार नहीं होता था।
खैर, तेंदुलकर से मिल तो चुका था, पर मुलाकात नहीं हुई थी।
मैं धीरे-धीरे तेंदुलकर के विषय में काफी कुछ पढ़ चुका था। पर जिस दिन मैंने अखबारों में यह पढ़ा था कि सचिन तेंदुलकर के पिता का निधन हो चुका था और वो मैच छोड़ कर पिता की अंतयेष्टि में शामिल होने मुंबई आये थे और अंत्येष्टि के तुरंत बाद वो मैच खेलने लौट गये थे, तो मैं भौचक्क रह गया था।
मैं हैरान था मन ही मन। पर फिर मैंने पढ़ा कि उसी मैच में तेंदुलकर ने सौ रन बनाये थे और मैदान में ही अपने दोनों हाथ आसमान की ओर लहरा कर उन्होंने अपने पिता को आदर अर्पित किया था। उस मैच के बाद का उनका इंटरव्यू पढ़ने के बाद मेरे मन में विश्वास हो गया कि सचिन सिर्फ बेहतरीन खिलाड़ी ही नहीं, एक बेहतरीन इंसान भी हैं।
मेरी इस चाहत को आने वाले दिनों में और बल मिला जब मुझसे उनके किसी जानने वाले ने कहा कि सचिन शायद इकलौते ऐसे खिलाड़ी हैं, जो अपने लिए क्रिकेट नहीं खेलते, वो देश के लिए खेलते हैं।
अब तो मुझे सचिन से मिलना ही था। क्रिकेट के ग्राउंड पर नहीं, यूँ ही कहीं।
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मुझे लगता है कि तीन लोग आज ऐसे हैं, जिनसे मिलने की इच्छा सभी को होनी चाहिए।
लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन और सचिन तेंदुलकर।
अभी दो दिन पहले गुड फ्राइडे की छुट्टी थी। पर सचिन हमारे दफ्तर आ रहे थे। मैं सचिन से मिलने दफ्तर गया। वहाँ शो के लिए उन्हें तैयार होना था, मैं पहली बार अपने दफ्तर के ग्रीन रूम में किसी से मिला। ग्रीन रूम में इसलिए क्योंकि इससे ज्यादा व्यक्तिगत मुलाकात और भला कहाँ हो सकती है। सचिन मेकअप के लिए कुर्सी पर बैठ चुके थे और मैं सामने खड़ा था।
मुझे उनसे मिलना था, क्रिकेट के ग्राउंड में नहीं, ऐसे ही। और वो वैसे ही मेरे सामने थे।
देश का खिलाड़ी, पिता की संतान, और एक बेहतरीन इंसान। सचिन मुझसे उम्र में काफी छोटे हैं, पर उनके पास इतनी सकारात्मक उर्जा है कि कोई भी उनके संपर्क में उस जादू को महसूस कर सकता है, जिसे पच्चीस साल पहले प्रभाष जोशी ने महसूस किया था।
मैं कभी न कभी इस बात की चर्चा करूंगा कि लता मंगेशकर होने का अर्थ क्या होता है। मैं इस बात की चर्चा भी जरूर करूँगा कि कोई कैसे अमिताभ बच्चन बन जाता है, कोई कैसे सचिन तेंदुलकर बन जाता है।
(देश मंथन, 28 मार्च 2016)