संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज एक सुनी सुनाई कहानी सुनाता हूँ।
वैसे भी कई लोगों ने मुझे फेसबुक वाला बाबा बुलाना शुरू कर दिया है। बाबा क्यों, ये मुझे नहीं पता। मेरे तो बाल भी अभी सफेद नहीं हुए पर कुछ लोगों को लगता है कि ज्ञान देने वाला बाबा ही होता है। मुमकिन है टीवी पर तमाम बाबाओं को ऐसी बातें करते देख उनके मन में ये भाव आया हो कि ज्ञान तो बाबा ही देते हैं।
असल में हमें पता ही नहीं चलता कि कब और कैसे बाहरी शक्तियाँ हमारे मन पर अपना अतिक्रमण जमा लेती हैं। वर्ना एक बच्चे को जिन्दगी में पहला ज्ञान लोरी के रूप में माँ से मिलता है। उसके बाद तमाम पौराणिक कहानियां दादी और नानी सुनाती हैं। फिर हम स्कूल जाते हैं, तो वहाँ टीचर हमसे ज्ञान की बातें करते हैं। उसके बाद यार, दोस्त भी कई बार ज्ञान की बातें कर लेते हैं।
मुझे लगता है कि इन सबके साथ चलते हुए ‘समय’ भी आदमी को बहुत कुछ सिखाता है। मतलब समय भी ज्ञान देता है।
पर मुझे किसी ने माँ, दादी, नानी, टीचर और समय की उपाधि से नहीं नवाजा। मुझे मेरे चाहने वाले कुछ लोग हंसी मजाक या तंज में फेसबुक वाले बाबा कह देते हैं।
ये होता है मन पर चुपके से पड़ने वाला असर।
मन के तंतु पर कैसे कोई बात चुपके से असर कर जाती है इस बारे में फिर कभी आपको बताऊंगा। पर आज तो एक सुनी सुनाई कहानी ही सुनाता हूँ। कहानी ज्ञान की। वैसे भी ज्ञान चाहे जहाँ मिले, ले लेना चाहिए।
एक बार एक आदमी व्यापार के सिलसिले में अपनी गर्भवती पत्नी को छोड़ कर विदेश चला गया। कई वर्षों तक उसने वहाँ व्यापार किया। उसने काफी धन कमा लिया।
बहुत वर्षों के बाद उसे लगा कि अब घर चलना चाहिए। उसने अपने सारे पैसे इकट्ठा किए और निकल पड़ा अपने वतन की ओर।
रास्ते में उसे एक आदमी मिला और उनकी आपस में बातचीत शुरू हो गयी।
व्यापारी ने दूसरे आदमी से पूछा कि तुम यहाँ क्या करने आये थे और कहाँ जा रहे हो?
आदमी ने कहा कि वो इस देश में ज्ञान देने आया था। पर यहाँ उसके ज्ञान का कोई कद्रदान मिला ही नहीं। अब वो वापस अपने देश लौट रहा है।
व्यापारी ने पूछा कि तुम किस तरह का ज्ञान देते हो। आदमी ने कहा कि मैं जीवन उपयोगी ज्ञान देता हूँ।
व्यापारी ने कहा कि तुम मुझे कोई ज्ञान दो, मैं तुम्हें बदले में धन दूँगा। ज्ञानी उसकी बात मान गया। उसने कहा कि मैं तुम्हें सिर्फ एक ज्ञान देता हूँ, तुम्हारे काम आएगा।
व्यापारी ने उसे धन दिया, बदले में ज्ञानी व्यक्ति ने उसे ज्ञान दिया कि तुम जिन्दगी में कभी भी फैसला जल्दी में मत लेना। चाहे कुछ भी हो जाए, अगर कोई फैसला लेना हो तो दो मिनट जरूर सोचना।
व्यापारी को लगा कि ये भी भला कोई ज्ञान की बात हुई? पर उसने उससे वो एक ज्ञान ले लिया और चल पड़ा घर की ओर।
घर पहुँच कर उसे लगा कि आज अपनी पत्नी को चौंका देता हूँ। मैं बिना कुंडी खटखटाए, चुपके से उसके पास जा कर उसे सरप्राइज देता हूँ।
वो चुपके से छत पर चढ़ कर अपनी पत्नी के कमरे तक पहुँचा।
ये क्या? उसने कमरे तक पहुँच कर देखा कि उसकी पत्नी के कमरे में एक और पुरुष सो रहा है। व्यापारी को बहुत क्रोध आया। ओह! जिस परिवार की खातिर वो इतनी दूर से अपनी जिन्दगी भर की कमाई साथ लेकर आया कि वो हँसी-खुशी बाकी के जीवन गुजारेगा, उसके साथ इतना बड़ा छल? उसकी पत्नी किसी और मर्द के साथ…?
व्यापारी ने अपनी पिस्तौल निकाल ली। वो आज पत्नी को जीवित ही नहीं रहने देना चाह रहा था। जैसे ही उसने पत्नी की ओर पिस्तौल तानी, उसे ध्यान आया कि रास्ते में उस ज्ञानी ने उससे कहा था कि कोई भी फैसला लेने से पहले दो मिनट सोचना।
पिस्तौल तान कर वो मिनट भर को सोचता हुआ थोड़ा पीछे हटा। इतने में उसका पाँव किसी चीज से टकराया और आवाज हुई। आवाज सुन कर पत्नी की आँखें खुल गईं। सामने उसने पति को देखा। वो हैरान रह गयी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतने वर्षों बाद उसका पति अचानक लौट आया है।
पल भर को उसने पति की ओर देखा और साथ सो रहे व्यक्ति को उसने जगाना शुरू किया। उठ बेटा, उठ। तू पूछता था न कि तेरे पिता कौन हैं? उठ बेटा देख, तेरे पिता आज तेरे सामने खड़े हैं।
आदमी के हाथ से पिस्तौल गिर गयी। “बेटा? क्या ये मेरा बेटा है?”
“हाँ, स्वामी। आपको तो याद होगा, जब आप अचानक चले गये थे, तब मैं गर्भवती थी। आज इतने वर्षों बाद आप लौटे हैं। ये आपका बेटा देखिए कितना बड़ा हो गया है।”
व्यापारी समझ गया कि उस ज्ञानी का दिया ज्ञान ही आज उसे और उसके परिवार को बचा गया।
ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता। चाहे संजय सिन्हा फेसबुक पर दें, या कोई ज्ञानी बाबा टीवी पर। चाहे माँ ज्ञान दे, या मास्टर साहब। ज्ञान चाहे जहाँ मिले, चाहे दुबारा मिले उसे ले लेना चाहिए। कभी न कभी काम ही आता है।
(देश मंथन 13 सितंबर 2016)