सम्राट अशोक ने बनवाया था साँची का स्तूप

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

दिसंबर 1994 की सर्दियों का समय था जब किसी काम से भोपाल जाना हुआ। पहले दिन को साउथ तांत्या टोपे नगर (टीटी नगर) में यूथ होस्टल में ठहरा। अगले दिन एनवाईपी के भाई प्रिय अभिषेक अज्ञानी आकर अपने घर ले गये। उनके घर हफ्ते भर रहा। इस दौरान वह रोज मुझे मार्ग समझा देते और मैं अपनी मर्जी से अकेले भोपाल और आसपास घूमता रहता। एक दिन साँची जाने को तय किया। सो सुबह सुबह ट्रेन पकड़ी पहुँच गया साँची। साँची में विशाल बौद्ध स्तूप तो है ही। साँची मध्य प्रदेश के दूध का ब्रांड भी है। ठीक वैसे ही जैसे बिहार का सुधा, यूपी का पराग, हरियाणा का वीटा, पंजाब का वेरका, कर्नानटक का नंदिनी

वास्तव में स्तूप पाली भाषा का शब्द है। स्तूप का मतलब कोई टीला या ढेर होता है। यहाँ माना जाता है कि बौद्ध अवशेष रखे जाते हैं। यहाँ बौद्ध प्रार्थना स्थल भी होता है। सन 1818 में जॉन टायलर के पता लगाने से पहले साँची का स्तूप अनजाना ही था। सन 1912 में पुरातत्वत विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल की अगुवाई में इस स्थ8ल पर खुदाई का कार्य हुआ।

साँची का यह स्तूप 300 फीट ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। कहा जाता है कि बड़े स्तूप में स्वंय भगवान बुद्ध और छोटे स्तूपों में बुद्ध के शिष्यों की उपयोग की हुई वस्तुएँ रखी हैं। सबसे बड़े स्तूप को महास्तूप कहते हैं। इसे तीसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व में सम्राट अशोक ने बनवाया था। बाद में शुंग वंश के शासकों ने इसे विस्तारित किया था। इस स्तूप का व्यास लगभग 40 मीटर और ऊँचाई 16.5 मीटर है। इसके निर्माण में पक्की ईंटों का इस्तेमाल हुआ है जो शुंग कालीन है। आकार में यह सारनाथ में अशोक द्वारा बनवाए गये धमेक स्तूप से बड़ा है। कहा जाता है कि साँची में पहले कई बौद्ध विहार भी थे। यहाँ एक सरोवर भी है, जिसकी सीढ़ियाँ बौद्ध कालीन मानी जाती हैं। साँची के पास सोनारी और भोजपुर में भी कई बौद्ध स्तूप हैं। साँची के सभी तीन स्तूप विश्व विरासत स्थल (वर्ल्ड हेरिटेज साईट) के तहत यूनेस्को द्वारा संरक्षित स्मारकों की सूची में आते हैं। साँची को अतीत में काकानाया, काकानावा, काकानाडाबोटा तथा बोटा श्री पर्वत के नाम से भी जाना जाता था।

चार सुन्दर तोरण द्वार 

साँची के स्तूाप अपने चार नक्काशीदार प्रवेश द्वार के लिए जाना जाता है। प्रत्येक द्वार में बुद्ध के जीवन से ली गई घटनाओं और उनके पिछले जन्म  की बातों का चित्रण है। इन द्वारों पर पत्थर बौद्ध कथाएँ सुनाते हैं। 

माना जाता है कि ये प्रवेश द्वार 11वीं सदी के बने हैं। इस स्तूप के पूर्वी तथा पश्चिमी द्वारों पर युवा गौतम बुद्ध की आध्यात्मिक यात्रा की कई कहानियाँ देखी जा सकती हैं।

कैसे पहुँचे 

ट्रेन से भोपाल से साँची की दूरी 45 किलोमीटर है। अमूमन ट्रेन से 45 मिनट में पहुँचा जा सकता है। साँची भोपाल से विदिशा-दमोह-कटनी वाले रेल मार्ग पर है। साँची का स्तूप रेलवे स्टेशन से पैदल चलकर पहुँचा जा सकता है। भोपाल से साँची के बीच दिन भर में सात ट्रेनें उपलब्ध हैं। 

भोपाल से साँची के लिए नियमित बस सेवा भी है। वैसे साँची रायसेन जिले में पड़ता है। पर यह ऐतिहासिक नगरी विदिशा से 10 किलोमीटर की दूरी पर है। सुबह आठ बजे से लेकर शाम पाँच बजे तक साँची का स्तूप खुला रहता है। प्रवेश के लिए टिकट लेना पड़ता है।

(देश मंथन, 08 अक्तूबर 2015)

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