विद्युत प्रकाश मौर्य :
सतपुड़ा की हरी-भरी वादियों के बीच नैरोगेज की पटरियों पर चलने वाली कई ट्रेनों के बीच सतपुड़ा एक्सप्रेस इस क्षेत्र की सबसे लोकप्रिय ट्रेन है। ये एक्सप्रेस ट्रेन सात घंटे में आपको जबलपुर से बालाघाट पहुंचाती है। 10002 जबलपुर-बालाघाट सुबह 5.30 बजे चलने वाली ट्रेन दोपहर 12 बजे बालाघाट पहुँच जाती है।
वहाँ से वही रैक वापसी में चलती है जबलपुर के लिए 10001 बनकर। बालाघाट से जबलपुर के बीच 187 किलोमीटर का सफर तय करती है सतपुड़ा एक्सप्रेस। आजकल सतपुड़ा एक्सप्रेस में जेडीएम सीरीज का लोको (इंजन) लगा हुआ है।
अतीत में सतपुड़ा एक्सप्रेस जबलपुर से गोंदिया के बीच जेडई सीरीज के स्टीम लोको से संचालित होती थी। पर अब बालाघाट से गोंदिया के बीच ब्राडगेज लाइन बिछाए जाने के बाद जबलपुर से बालाघाट के बीच ही चलती है।
इस नैरोगेज की एक्सप्रेस ट्रेन में कुल 10 कोच होते हैं, इसमें बीच में एक प्रथम श्रेणी का भी कोच लगा होता है। वास्तव में जिस कोच को फर्स्ट क्लास का डिब्बा बनाया गया है यह अतीत में अधिकारियों का इंस्पेक्सन कोच हुआ करता था, इसमें एक हिस्सा अधिकारियों का विश्रामालय था तो दूसरा हिस्सा रसोई घर। रसोई घर और विश्रामालय जाने के लिए अलग-अलग दरवाजे होते थे। अब इनमें मामूली बदलाव कर यात्रियों के बैठने के लिए बना दिया गया है, लेकिन रसोई यान वाले हिस्से और मुख्य हिस्से के बीच अंदर से कोई संपर्क नहीं है। सातपुड़ा एक्सप्रेस में प्रथम श्रेणी का किराया 400 रुपये है। इसके प्रथम श्रेणी में बैठकर आपको ऐसा एहसास होता है मानो आप किसी घर के ड्राइंग रूम में बैठकर सफर कर रहे हों। इस श्रेणी में सफर के लिए रेलवे की वेबसाइट पर अग्रिम आरक्षण कराया जा सकता है। वहीं द्वितीय श्रेणी में सतपुड़ा एक्सप्रेस मं बालाघाट से जबलपुर का किराया 70 रुपये है। बालाघाट से जबलपुर के बीच कुल 24 मध्यवर्ती स्टेशन हैं पर सतपुड़ा एक्सप्रेस सिर्फ 9 स्टेशनों पर रुकती है। पर पहाड़ों की ये रानी ट्रेन आपको 27 से 30 किलोमीटर प्रतिघंटे की औसत रफ्तार में जबलपुर पहुँचाती है। अगर आप सातपुड़ा के घने जंगलों को देखने की तमन्ना रखते हैं तो सतपुड़ा एक्सप्रेस में बैठकर सफर करने से बेहतरीन तरीका और कुछ नहीं हो सकता है।
सतपुड़ा एक्सप्रेस जबलपुर से निकलने के बाद ग्वारीघाट में नर्मदा नदी पर बने पुल से गुजरती है। ये लोहे का पुल 100 साल से ज्यादा पुराना है जो आज भी पूरी तरह से बेहतर हालत में है।
बालाघाट मध्य प्रदेश का ऐसा जिला है जो महाराष्ट्र की सीमा से लगा हुआ है। शहर बिल्कुल शांत नजर आता है। रेलवे स्टेशन कभी शहर के बाहर हुआ करता था। पर अब स्टेशन के बाहर वाली सड़क पर चाय-नास्ते की दुकानें और ठहरने के लिए लाँज आदि उपलब्ध है। हालाँकि ये छोटी लाइन और बड़ी लाइन का स्टेशन है पर स्टेशन पर भीड़भाड़ नजर नहीं आती। बालाघाट स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर कैंटीन है, जिसे साफ-सफाई और सज्जा के लिए रेलवे महाप्रबंधक की ओर से सम्मान पत्र मिल चुका है। इस कैंटीन में नास्ते के लिए 10 रुपये में पोहा और 5 रुपये प्रति पीस समोसे उपलब्ध हैं।
बालाघाट जंक्शन – बालाघाट जंक्शन का प्लेटफार्म नंबर एक नैरोगेज ट्रेन के लिए है, जबकि दो नंबर पर ब्राडगेज वाली ट्रेनें आती हैं। यहाँ से नैरोगेज पैसेंजर और एक्सप्रेस ट्रेनें आमतौर पर हर रोज समय पर खुलती हैं। स्टेशन पर रेलवे स्टाफ पूरे अनुशासन में दिखाई देते हैं।
समनपुर – सातपुड़ा एक्सप्रेस बालाघाट जंक्शन को छोड़ती है उसके बाद ही सातपुड़ा की हरी-भरी वादियाँ मन मोहने लगती हैं। नदी, पहाड़, जंगल, खेत सब कुछ नजर आते हैं। कहीं-कहीं रेलवे लाइन के साथ साथ सड़क भी कदमताल मिलाती नजर आती है। 17वें किलोमीटर पर समनपुर रेलवे स्टेशन आता है जो सातपुड़ा एक्सप्रेस का पहला ठहराव है।
चारेगांव – 30वें किलोमीटर पर चारेगाँव रेलवे स्टेशन आता है। स्टेशन पर इन बीच के स्टेशनों पर बहुत बड़ी भीड़ चढती उतरती हुई नहीं दिखाई देती है।
लामता – 40वें किलोमीटर पर लामता रेलवे स्टेशन है। ये बालाघाट जिले का आखिरी बड़ा रेलवे स्टेशन है। बरसात के दिनों में अगर आप सातपुड़ा एक्सप्रेस के सफर पर हैं तो बारिश और हरियाली के बीच आनंद और भी बढ़ जाता है।
नगरवारा – 357 मीटर की ऊँचाई पर स्थित नगरवारा रेलवे स्टेशन से मंडला जिले की शुरुआत हो जाती है। आप बालाघाट से 50 किलोमीटर की दूरी तय कर चुके हैं।
नैनपुर जंक्शन – बालाघाट से 77वें किलोमीटर पर नैनपुर जंक्शन आता है। यहाँ सतपुड़ा एक्सप्रेस 20 मिनट रुकती है। इस दौरान इसका लोको इंजन यहाँ कई बार बदला जाता है।
पिंडरई – समुद्र तल से 455 मीटर की ऊँचाई पर पिंडरई बालाघाट से 89वें किलोमीटर पर स्थित है। दूरी के लिहाज से ये बालाघाट और जबलपुर के बीच का स्टेशन हो सकता है।
घनसौर – 565 मीटर की ऊँचाई पर बना ये नैरोगेज नेटवर्क के सबसे ऊँचे रेलवे स्टेशनों में से है सतपुड़ा एक्सप्रेस के मार्ग पर। घनसौर सिवनी जिले में पड़ता है।
शिकारा – सतपुड़ा एक्सप्रेस शाम को 5.40 के आसपास शिकारा पहुँचती है। ये जबलपुर से 45 किलोमीटर की दूरी पर और बालाघाट की तरफ से 133 किलोमीटर की दूरी है। कहा जाता है कि यहाँ घने जंगलों में कभी जबलपुर से लोग शिकार करने आते थे। इसलिए इस जगह का नाम शिकारा पड़ गया। आजकल भी यह जबलपुर के निकट का पिकनिक स्पाट है। शिकारा रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर नारियल के सुस्वादु लड्डू बिकते हुए नजर आए। नास्ते के लिए समोसे और जलेबी भी यहाँ मिल जाती है।
बरगी – बालाघाट से 159 किलोमीटर की दूरी पर बरगी जबलपुर जिले का रेलवे स्टेशन है। यहाँ पास में नर्मदा नदी पर बांध बनाया गया है। बरगी के बाद ग्वारीघाट में नर्मदा नदी पर ऐतिहासिक पुल आता है। यहाँ नदी के तट पर गुरुद्वारा और आश्रम बने हैं। बड़ी संख्या में लोग यहां नर्मदा में स्नान के लिए आते हैं।
हाउबाग जबलपुर – ग्वारीघाट के बाद ट्रेन जबलपुर शहर में प्रवेश कर जाती है। हाउबाग जबलपुर वास्तव में जबलपुर शहर में नैरोगेज का बड़ा स्टेशन है। यहाँ मालगोदाम और ट्रेन के रखरखाव आदि की सुविधा उपलब्ध है। वास्तव में हाउबाग नैरोगेज नेटवर्क का बड़ा डिपो है। जबलपुर शहर जाने वाले यात्री बड़ी संख्या में हाउबाग में ही उतर जाते हैं। यहाँ से बस स्टैंड और अन्य इलाके में जाने की सुविधा भी उपलब्ध है।
जबलपुर – सतपुड़ा एक्सप्रेस बड़ी ही शान से जबलपुर मुख्य रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर पहुँचती है। यहाँ वह रात भर आराम फरमाती है क्योंकि सुबह फिर उसी पुराने सफर पर जो निकल जाना है।
सतपुड़ा एक्सप्रेस के द्वितीय श्रेणी के कोच में बैठने के लिए कुल 44 सीटें हैं। सीटें आरामदायक हैं। हर कोच में टायलेट भी है। एक बैठने की सीट बिल्कुल टायलेट और कोच के प्रवेश द्वार के बीच बनाई गई है। कोच में लगेज रखने के लिए सीट के ऊपर प्रयाप्त जगह प्रदान की गई है।
ये जलपिहरी क्या है – शिकारा रेलवे स्टेशन पर सतपुड़ा एक्सप्रेस के प्लेटफार्म पर ट्रेन के पहुँचते ही ढेर सारे बच्चों का हुजुम हर कोच के पास पहुँच गया। ये बच्चे चिल्ला-चिल्ला कर जलपिहरी बेच रहे थे। मैंने कौतुहल वश जानना चाहा कि ये जल पिहरी क्या है.. बच्चों ने बताया नदी से ढूँढकर निकालते हैं। एक किस्म की जडी बूटी है। इसकी तासीर गर्म है। तवे पर भून कर पानी या शहर के साथ खा लें। सर्दी जुकाम खत्म हो जाएगा। मैंने भी जलपिहरी खरीद ली। पाँच रुपये में दो पुडिया। बाद में दूसरे बच्चे आए वे पाँच में तीन देने की बात कहने लगे। तो हमारे सहयात्री ने तीन जलपिहरी खरीद ली।
(देश मंथन, 18 फरवरी 2015)