सत्यमेव पिटते की कहानी

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आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार

सुपर-डुपर हिट पब्लिक स्कूल के पुराने छात्रों का गेट-टुगेटर चल रहा था। अचानक से एक बंदा खड़ा हुआ और चीखने लगा- मैं स्कूल पर मुकदमा करुँगा। मैं स्कूल के प्रबंधकों पर इस बात का मुकदमा चलाऊँगा कि मुझे सब गलत-सलत पढ़ाया, सिखाया गया। मैं स्कूल के खिलाफ कंजूमर फोरम जाऊँगा। 

हल्ला हो लिया। 

सबने पूछा- क्या हुआ।

वह हल्लाकारक बंदा खड़ा हुआ और बोला- यहाँ की दीवारों पर खुदा है-सत्यमेव जयते। सत्य की ही जीत होती है। यह बात मेरे दिमाग में विकट मजबूती से घुसा दी गयी। इसकी वजह से पहले मैंने अपने बाप की पिटाई खायी। फिर बड़े होकर बास की डाँट खायी। अब बीबी-बच्चे मुझे हिकारत की निगाह से देखते हैं।

उस हल्लाकारक बंदे ने बताया कि सत्य की राह पर चलते हुए वह बचपन में पिताजी से उधार वापस माँगने आने वालों को बता देता था कि पिताजी घर पर ही हैं, जबकि पिताजी की ताकीद होती थी कि सिर्फ उधार वापस करने के लिए आने वालों की ही बताया जाना चाहिए कि पिताजी घर पर हैं।

सत्य के फंडे पर चल कर कई साल तक माँ की पिटाई खायी। माँ कई बरसों तक अपनी सहेलियों को अपनी उम्र बताती थी- यही होगी कोई छब्बीस-सत्ताईस साल। मैं अगर मौका-ए-जवाब पर मौजूद होता था, तो बता देता था कि माँ पिछले सात सालों से यही बता रही हैं। मेरे ऐसे सत्य-वचनों पर माँ मेरी विकट पिटाई करती थीं।

फिर नौकरियों में मेरे बास मुझसे पूछते थे- सच बताओ एकदम ईमानदारी से सच्ची-सच्ची कि मेरे बारे में तुम्हारी क्या राय है। ऐसे में सत्य की राह पर चौथे गीयर में गाड़ी चलाते हुए मैं आराम से बताता था कि आप निहायत चापलूस-पसन्द, बेवकूफ, लुच्चे, छिछोरे हैं। सत्य के मार्ग पर दौड़ती गाड़ी एकदम दुर्घटनाग्रस्त हो जाती थी, मुझे बास की कैबिन से ठोंक-पीटकर बाहर निकाल दिया जाता था।

मैंने बरसों के अनुभव के बाद समझा कि सत्यमेव जयते का फंडा गलत है, एकदम गलत। सही यह है कि सत्यमेव पिटते। मुझे इस स्कूल में सही फंडे क्यों नहीं पढ़ाये गये। इस बात का हरजाना मैं इस स्कूल से वसूलूँगा।

स्कूल के प्रबंधक, प्रिंसिपल डर गये। उस हल्लाकारक बंदे की बात तो सही ही थी। सत्य ने उसकी सतत पिटाई करवायी और सत्य का फंडा उसे स्कूल में ही सिखाया गया था। गलत फंडे सिखाने के आरोप में उस स्कूल को कहीं करोड़ों का हरजाना ना देना पड़ जाये, ऐसी चिन्ता में उस स्कूल के प्रबंधक और प्रिंसिपल डूब गये। तब ही एक दिव्य, भव्य आवाज सुनायी दी- यह आवाज एक मन्त्री की थी, जो आयोजन में मुख्य अतिथि के तौर पर आया था। उसकी जेबों में पाँच प्रकार के मोबाइल शोभायमान थे और दसों उंगलियों में दस रत्नों की अंगूठियाँ सजी हुई थीं।

मन्त्रीनुमा पर्सनल्टी ने कहा- हे व्यर्थ के हल्लाकारक तुझे पता नहीं, सत्य ही जीतता है। हे मूर्ख, तुझे नहीं पता कि हर सूक्ति की व्याख्या देश, काल के हिसाब से की जाती है। सत्य की ही विजय होती है, मैं तो इसी फंडे पर चल कर यहाँ तक पहुँचा हूँ। सत्यमेव जयते में किंचित भी झूठ नहीं है। 

मन्त्रीनुमा पर्सनल्टी के ऐसे वचन सुनकर स्कूल के प्रबंधक और प्रिंसिपल अहो, अहो, साधु, साधु जैसे अभिनंदनकारी शब्द बोलने लगे।

उस मन्त्री ने बताया कि हमेशा सत्य ही जीतता है। सत्य के फंडे पर चला मैं और यहाँ तक पहुँच गया। अपने शहर के सफल नेता और तीस सालों से एमपी रहे सत्यदेव बार-बार क्यों जीतते रहे हैं। एक स्कालर के नाते शोध करने पर यह पता चला कि सत्यदेव हर चुनावों में दारु, लाठी, बंदूक, सुन्दरी-नृत्यांगनाओं के चकाचक इंतजाम के अलावा बहुत सारे झूठ भी पेश करते हैं। सत्यदेव की लगातार जीत के मूल में उसके झूठे वादे थे। तीस वर्ष पूर्व नगर की जनता को पाइप लाइन के जरिये पानी पहुँचाने का उसका वादा आज तक वादा है। हर बार इसी वादे पर वह जीतते गये। सत्यदेव की तरह के झूठ बोलने में अगर कोई निष्णात हो जाये, तो उसकी विजय सुनिश्चित है। सो हे, मूर्ख हल्लाकारी, तेरा कथन झूठ है कि सत्य नहीं जीतता। सत्य ही जीतता रहा है और सत्य की तरह आचरण करनेवाला जीतता है, इसका नमूना मैं हूँ।

स्कूल के प्रबंधकों ने तत्काल प्रभाव से उस मन्त्रीनुमा पर्सनल्टी को स्कूल का आजीवन चेयरमैन घोषित कर दिया और उस हल्लाकारक को चौकीदारों ने दन्ड, मुष्टि और पादुका प्रहारों द्वारा स्कूल से बाहर निकाल फेंका। स्कूल के बाहर ठुंकित अवस्था में पड़े हल्लाकारक ने कहा कि इस कहानी से मुझे ये शिक्षाएँ मिली हैं-

1-सत्यमेव जयते का फंडा गलत है, सत्यमेव पिटते का फंडा ही सही है। 

2-सत्यदेव को जीतने के लिए झूठे वादे करते पड़ते हैं। 

3-हर फंडे को नवीनतम स्थिति के हिसाब से विश्लेषित करते रहना चाहिए। 

4-अपने स्कूलों पर दावा ठोंकने से पहले तमान पुराने फंडों का पुनरीक्षण कर लेना चाहिए।

(देश मंथन, 27 जुलाई 2015) 

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