विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
मेघालय की राजधानी शिलांग भ्रमण के दौरान वायु सेना म्युजियम देखना न भूलें। वास्तव में शिलांग में वायु सेना के ईस्टर्न कमांड (पूर्वी कमांड) का मुख्यालय है। पूरे देश में वायु सेना के पाँच कमांड हैं। इसकी स्थापना 1958 में हुई थी। इस कमांड का युद्ध और शांति दोनों की काल में बहुत बड़ा योगदान रहता है। युद्ध के समय आर्मी को हर तरीके से मदद करना तो शांति काल में फंसे हुए लोगों की मदद करने में वायु सेना की बड़ी भूमिका रहती है।
असम में बाढ़ के दौरान फँसे लोगों को भोजन पहुँचाना हो या उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना हो या ओडिशा में सुपर साइक्लोन का समय वे पूर्वी कमान ने कमाल का काम किया है। पूर्वी कमान के पास मिग 21 और मिग 27 का बड़ा बेड़ा है। इसके अलावा एएन 32 और एन 26 और सुखोई विमान भी इस कमान के अधीन हैं। साल 1962 के चीन से हुए युद्ध और 1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध में इस कमान ने बड़ी भूमिका निभाई थी।
वायु सेना के पूर्वी कमांड के मुख्यालय के अंदर एयरफोर्स म्युजियम है, जिसे देख कर वायु सेना के बारे में ज्ञान बढ़ाया जा सकता है। यहाँ वायुयानों के मिनिएचर माडल से लेकर असली विमान और वायुसेना द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े और अन्य वस्तुएँ देखी जा सकती हैं। यहाँ भारत चीन युद्ध और भारत पाकिस्तान युद्ध की यादगार तस्वीरें भी देखी जा सकती हैं। यहाँ पर आप कई तरह के मिसाइल भी देख सकते हैं। जेट विमानों के अंदर का नजारा क्या हो सकता है इसको यहाँ आप महसूस कर सकते हैं।
मेघालय का सबसे बड़ा कैथोलिक चर्च
शिलांग शहर में वैसे तो कई चर्च हैं पर इन सबके बीच सबसे बड़ा और खूबसूरत चर्च है कैथोलिक चर्च। कैथेड्रल ऑफ मेरी हेल्प ऑफ क्रिसचियन्स लाइतुमखारा ( LAITUMKHARAH) में स्थित है। चर्च सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। 1913 में इस चर्च का निर्माण कैथोलिक जर्मन मिशनरीज की ओर से किया गया। पर 1936 में यह चर्च आग में तबाह हो गया। उसी पुराने चर्च के अवशेषों पर नए चर्च का निर्माण 15 नवंबर 1947 को पूरा हुआ। इसके निर्माण में शिलांग के दूसरे बिशॉप स्टीफेन फेरांडो की बड़ा योगदान रहा। चर्च के दूसरी तरफ सड़क के उस पार प्रभू यीशू का बलिदान स्थल ( CALVARY) बना है। इसकी भव्यता भी देखते ही बनती है। दोनों की ईमारतों का रंग आसमानी है। नीले रंग का यह चर्च अति विशाल है।
आसमान के नीले रंग के साथ जोड़ कर देखने पर यह प्रकृति की कोई शानदार चित्रकारी सा नजर आता है। मेघालय के खासी समाज के उत्थान में चर्च की बड़ी भूमिका रही है। भले ही चर्च ने खासी समाज को ईसाई बनाया हो पर उनके बीच शिक्षा के प्रसार में भी चर्च की बड़ी भूमिका रही है। चर्च परिसर में फोरोटो हेफेनमूलर एसडीएस की प्रतिमा लगी है, जिसके नीचे उनका वाक्य लिखा है- ईफ वी कैन नाट बिल्ड अप ए कम्युनिटी आफ खासी वी आर यूजलेस हियर…
चर्च परिसर में कैथोलिक इन्फारमेशन सेंटर और काउंसलिंग सेंटर की विशाल बिल्डिंग बनी है। परिसर में प्रभू यीशू के जीवन से जुडी कई झांकियाँ भी हैं। वहीं परिसर में विशाल बियांची मेमोरियल हाल भी बना है। सभी इमारतें मिलकर चर्च परिसर को काफी भव्यता प्रदान करती हैं। कैथेड्रल ऑफ मेरी हेल्प ऑफ क्रिसचियन्स देश के चंद सबसे खूबसूरत चर्च में से है।
दूर-दूर से आए सैलानी इस चर्च को देखने के लिए बड़ी संख्या में आते हैं। पूरे चर्च की नक्काशी को देखने के लिए आप एक घंटे का समय जरूर अपने पास रखें। कैथोलिक चर्च गोरोटो चापेल चर्च में रविवार को सुबह 7 बजे अंगरेजी में और सुबह 10 बजे हिंदी में प्रार्थना होती है।
(देश मंथन, 25 मार्च 2016)