वक्त के साथ बदलता सिलवासा

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

मुख्य द्वार से प्रवेश करने के बाद सिलवासा की ओर जाती हुई सड़क का सौंदर्य मनमोह लेता है। दोनों तरफ हरियाली और आगे बढ़ते रास्ते। टाउन हाल से लगा हुआ चौराहा सिलवासा शहर की धड़कन है। इसी चौराहे के आसपास राजधानी सिलवासा के तमाम दफ्तर हैं।

रहने के लिए कई होटल और मुख्य बाजार है। चौराहे के पास ही बस स्टैंड भी है। जहाँ से कहीं भी जाने के लिए बसें मिल जाती हैं। पास में एक केंद्रीय विद्यालय भी है। चौक चौराहों पर दमन पुलिस चौकस होकर ड्यूटी करती हुई नजर आती है। भले ही बसें कम चलती हैं पर जगह-जगह दिल्ली की तरह सड़कों के किनारे यात्री प्रतीक्षालय बने हैं, जिनपर स्वच्छ सिलवासा हरित सिलवासा का नारा लिखा नजर आता है।

बस स्टैंड से थोड़ा आगे बढ़ने पर टोकरखाड़ा बाजार नजर आता है। यहाँ बाईं तरफ मुड़ने वाली सड़क पर एक होटल नजर आता है- शुभम होटल, शुद्ध शाकाहारी। मैं पहुँचता हूँ। नास्ते में बहुत सारे विकल्प मौजूद हैं। बीस रुपये की पूरी भाजी। सात पूरियाँ और सब्जी। बहुत अच्छा। दोपहर के खाने की शाकाहारी थाली 60 रुपये की है। यानी खाना पीना आपकी जेब के अनुकुल है। बाजार में ज्यादातर दुकानदार यूपी बिहार के नजर आते हैं। ऑटो चलाने वाले लोगों मे भी बड़ी संख्या में लोग यूपी के हैं। मैं फुटपाथ पर एक दुकान से मोजा खरीदता हूँ। 

थोड़ी बातचीत में महेंद्र यादव बताते हैं कि वे नवादा के रहने वाले हैं। यहाँ 20 साल हो गए। मेरी तीन दुकाने हैं। यहीं घर भी बना लिया है। सिलवासा में यूपी बिहार के लोग इतनी बड़ी संख्या में हैं कि यहाँ पार्षद का चुनाव भी यूपी-बिहार के लोग जीत गए हैं। सरजू यादव पार्षद बन चुके हैं। कई मजदूर बनकर आए लोग उद्योगपति बन चुके हैं। सब्जी बाजार, रेहड़ी पटरी के बाजारों में बिहार यूपी के लोगों की बहुलता है। सड़कों पर घूमते हुए काफी अपनापन लगता है।

अगर हम आजादी से पहले के दौर को याद करें तो दादरा नगर हवेली के गाँवों में बिजली नहीं थी। इस क्षेत्र में केवल एक डीजल जनरेटर सेट था जो कि सिलवासा कस्बे के अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए बने सर्किट हाउस में बिजली उपलब्ध कराने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। पर अब हर क्षेत्र में बिजली पहुँच चुकी है। राज्य में छोटे-बड़े कई हजार उद्योग चल रहे हैं। टैक्स फ्री जोन होने के कारण उद्योग लगाने के लिए आदर्श जगह है। अब उद्योग है तो बड़ी संख्या में मजदूर भी होंगे। तो यहाँ बड़ी संख्या में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग आकर बस चुके हैं। सिलवासा नगर की वेबसाइट पर जाएं – http://smcdnh.nic.in/

दादरा नगर हवेली एक ऐसा नन्हा सा राज्य है जहाँ सभी धर्मों के त्योहार मनाए जाते हैं। हिंदू, मुस्लिम और ईसाई के त्योहार मनाए जाते हैं। आदिवासी लोग अपने त्योहार मनाते हैं। यहाँ की प्रमुख ढोडिया और वर्ली जनजातियाँ ‘दिवसो’ त्योहार मनाती हैं। ढोडिया ऐसी जनजाति है रक्षाबंधन का त्योहार भी मनाती है।

दादरा नगर हवेली में रहने वाली वर्ली,  कोकना और कोली जनजातियाँ भावडा त्योहार मनाती हैं। यहाँ कि सभी जातियों के लोग फसल काटने से पहले ग्राम देवी की पूजा करते हैं तथा फसल काटने के बाद ‘काली पूजा’ का त्योहार मनाते हैं। सिलवासा की सड़कों पर चलते हुए मुझे अपने आनलाइन दोस्त डाक्टर पारितोष त्रिवेदी की याद नहीं आई। इसलिए उनसे मिलने की तमन्ना रह गई। डाक्टर पारितोष सिलवासा में अपना हास्पीटल चलाते हैं और लोगों को सेहत संबंधी जानकारी देने के लिए उनकी वेबसाइट भी है निरोगी काया।

(देश मंथन, 09 मार्च 2015)

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