विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
हिमाचल के धौलाधार पर्वत मालाओं के बीच कई नाग मंदिर हैं। इनमें खजियार का खजिनाग मंदिर प्रमुख है। खजिनाग मंदिर बारहवीं सदी का बना हुआ है। आठ सौ साल पुराना ये मंदिर अपने ऐतिहासिकता और पुरातात्विक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार चंबा के राजा पृथ्वी सिंह की दाई बाटुल ने करवाया था। मंदिर के गर्भ गृह में खज्जी नाग की प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के प्रांगण में पंच पाँडवों की काष्ठ प्रतिमाएँ स्थापित की गयी हैं।
पाँडवों की पाँच प्रतिमाएं 16वीं सदी में चंबा के राजा बलभद्र वर्मा ने स्थापित कराईं। काठ की बनी होने के बावजूद ये काठ की प्रतिमाएँ काफी अच्छी हालत में हैं। राजा पृथ्वी सिंह के कार्यकाल में 1641 से 1644 के बीच उनकी धर्मपरायण दाई ने मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कराई। जिला प्रशासन की ओर से मंदिर को मूल प्रारूप में ही संरक्षित किया गया है। मंदिर के मुख्य भवन के निर्माण में भी काठ का प्रयोग ज्यादा किया गया है।
खजिनाग मंदिर में स्थानीय लोगों की अगाध आस्था है। मंदिर की पूजा पद्धति में अन्य मंदिरों से काफी अलग है। हर रोज सुबह और शाम नाग देवता की एक घंटे तक पूजा होती है। पूजा के दौरान मंदिर का घंटा लगातार बजाया जाता है। इसके साथ ही कई ग्रामीण पंरपरागत वाद्ययंत्रों को बजाते हैं।
मंदिर की कहानी
सदियों पुरानी बात है। चंबा जिले में राणे हुआ करते थे। एक बार उनकी नजर लिली नामक गांव में पहाड़ के ऊपर जलती रोशनी पर पड़ी। खजाना समझ कर उन्होंने उसे खोदा तो वहाँ से चार नाग प्रकट हुए। चारों को सम्मानपूर्वक एक पालकी में डालकर वहाँ से लाया गया। इस दौरान नाग देवताओं ने कहाँ जहाँ से हमारी पालकी भारी हो जाएगी वहीं हम चारों अलग-अलग हो जाएंगे। सुकरेही नामक स्थान पर पालकी भारी हो गयी। वहीं से चारों नाग अलग-अलग हो गये। चार नाग भाई क्रमशः चघुंई, जमुहार , खजियार और चुवाड़ी में बस गये।
खज्जियार में पहले से ही सिद्ध बाबा का वास था। खज्जिनाग ने उन्हें अपने बड़े भाई की मदद से खरपास (एक प्रकार के खेल) में पराजित किया। इस तरह खजिनाग ने यह जगह जीत ली। सिद्ध बाबा ने अपनी हार के बाद कहा- अब तू यहीं खा और यहीं जी। इस तरह नाग देवता का नाम पड़ा खजि नाग। इस जगह का नाम इस तरह खजियार पड़ गया। खज्जिनाग का पौराणिक नाम पंपूरनाग भी था। स्थानीय लोग कोई शुभ कार्य करने से पहले खजिनाग मंदिर में हाजिरी जरूर लगाते हैं।
झील का है पौराणिक महत्व
खज्जिनाग मंदिर के सामने स्थित झील का भी पौराणिक महत्व है। कहा जाता है कि यह झील अंतहीन है और उसमें शेषनाग के अवतारी खज्जिनाग स्वयँ वास करते हैं। कई बार उन्होंने स्थानीय लोगों को दर्शन भी दिये हैं। इस झील में मणिमहेश यात्रा के दौरान लोग पवित्र स्नान भी करते हैं। एक लोककथा के अनुसार एक बार एक गड़ेरिया प्यास लगने पर इस झील का पानी पीने लगा। उस दौरान उसके कानों की बालियाँ झील में गिर गईं। चलते-चलते जब गड़रिया चंबा शहर के पास सुल्तानपुर पहुँचा तो वहाँ बने एक पनिहार पर पानी पीने लगा इसी दौरान उसकी दोनों बालियाँ वापस उसके हाथ में आकर गिर गईं। इसलिए लोग इस झील को चमत्कारी मानते हैं।
24 मई की सुबह खजिनाग मंदिर में पूजा के दौरान खास भीड़ दिखाई देती है। करीब जाकर देखता हूँ तो पूजा के दौरान मंदिर का घंटा हिमाचल प्रदेश सरकार के मंत्री बजा रहे हैं। पूरी पूजा के दौरान वे लगभग एक घंटे लगातार घंटा बजाते रहे। वे हिमाचल सरकार के वन मंत्री ठाकुर सिंह भारमौरी थे। यानी खजिनाग देवता में हर तबके की आस्था है।
कैसे पहुँचे
हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में स्थित खजियार की पठानकोट से दूरी 105 किलोमीटर है। पठानकोट से बस या टैक्सी से खजियार बनीखेत डलहौजी होते हुए पहुँचा जा सकता है।
(देश मंथन 06 जुलाई 2016)