विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
जब भी नवंबर महीना आता है देश के किसी भी कोने में रहूँ, सोनपुर मेला जरूर याद आता है। कार्तिक गंगा स्नान के साथ ही सोनपुर मेले के तंबू गड़ जाते हैं। गंगा स्नान के लिए नारायणी (गंडक) और गंगा के संगम पर लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती है। पश्चिम की तरफ सोनपुर और पूरब की तरफ हाजीपुर में नदी तट पर कई किलोमीटर तक श्रद्धालुओं की स्नान का पुण्यलाभ पाने के लिए भीड़ उमड़ती है।
इधर कई सालों से वैशाली और सारण जिला प्रशासन की ओर से स्नानार्थियों के लिए बेहतर इंतजाम भी किये जा रहे हैं। गंगा स्नान के साथ ही सोनपुर मेला शुरू हो जाता है जो अब एक महीने तक चलता है। पहले आधिकारिक तौर पर मेला सिर्फ 15 दिनों का होता था, लेकिन यह आगे भी 20 से 30 दिनों तक चलता रहता था।
सोनपुर मेला उसी पौराणिक जगह पर लगता है, जहाँ कभी गज और ग्राह में भयंकर युद्ध हुआ था। गज (हाथी) विष्णु का भक्त था, ऐसी मान्यता है कि उसे बचाने के लिए विष्णु स्वयँ यहाँ आये थे। इसलिए ये हरिहर क्षेत्र है। इलाके में लोग उसे हरिहर क्षेत्र का मेला कहते हैं। तो वज्जिका के अपभ्रंश में गाँव-गाँव के लोग छतर मेला कहते हैं।
वह साल 1978 था, जब मैं दूसरी कक्षा का छात्र था। पिता जी के साथ पहली बार सोनपुर मेले में गया था। वहाँ से मेरे लिए एक स्वेटर खरीदा गया था। 40 रुपये में। इसी मेले में पहली बार मैंने मसाला डोसा खाया था। पूर्वोत्तर रेलवे महिला समिति के स्टाल पर।
हाथी बाजार
तो जनाब सोनपुर मेले में जब हाजीपुर की ओर से पुराने लोहे पुल से गुजरते हैं तो सबसे पहले आता है हाथी बाजार। मेले में बिकने आये हाथियों को महावत गंडक नदी में नहलाने के बाद उन्हें रंग-रोगन से सजाते हैं। उनकी पीठ पर रंगीन चंदोबे लगाये जाते हैं। हर साल ये खबर बनती है कि अमुक हाथी इतना महँगा बिका। हालाँकि अब हाथी पालने शौक कम होता जा रहा है पर मेले में अभी हर साल सैकड़ों हाथी बिकने आते हैं। हाथी ही क्यों बैल, गाय भैंस, ऊँट सब कुछ बिकता है। चिड़ियों के लिए तो अलग से चिड़िया बाजार है यहाँ। भले मेला खत्म हो जाए चिड़िया बाजार सालों भर चिड़िया बाजार ही कहलाता है।
मीना बाजार
मेले का खास आकर्षण मीना बाजार होता है। इसमें कास्मेटिक के सामान बिकते हैं। लखनऊ का मीना बाजार, मुंबई का मीना बाजार तो दिल्ली का मीना बाजार घूमते जाइए। बिहार में एक शहर है लखीसराय। यह शहर सुहाग की निशानी सिंदूर बनाने के लिए जाना जाता है।
सोनपुर मेले में कई सिंदूर कंपनियों को स्टाल आते हैं। इन स्टालों में पर अक्सर सिंदूर का पैकेट खरीदने पर कैलेंडर मुफ्त में मिलता था। मेले में आने वाले लोग ठाकुर प्रसाद वाराणसी के स्टाल से भी पांचांग कैलेंडर ले जाना नहीं भूलते। मेले का प्रमुख आकर्षण होता है कश्मीर से आने वाली कश्मीरी शॉल की दुकानें। कश्मीरी शाल के कद्रदान यहाँ जरूर पहुँचते हैं। इसके साथ ही अलग-अलग जिलों के खादी भंडार से स्टाल मेले में आते हैं।
थियेटर और कैबरे
एक समय तक सोनपुर मेले में थियेटर और कैबरे खास आकर्षण होते थे। कानपुर का गुलाब थियेटर, शोभा थियेटयर की खूब धूम रहती थी। पर बाद में अश्लीलता का आरोप लगने पर इनकी आवक बंद हो गयी। बिहार सरकार का सूचना एवं जनसंपर्क विभाग और पर्यटन विभाग मेले के लिए खास इंतजाम करता है। सूचना जनसंपर्क विभाग के स्थायी पंडाल में रोज सांस्कृतिक आयोजन होते हैं। इसमें लोकगीतों की खूशबु महसूस की जा सकती है। अब मेला सरकारी तौर पर एक महीने का होता है। तो आप रोज मेले में संगीत का आनंद ले सकते हैं। पर मेला इतना ही नहीं है। यहाँ लकड़ी के फर्नीचरों का भी बाजार होता है। मेला खत्म होने तक फर्नीचर सस्ते होने लगते हैं। कई लोग इंतजार करते हैं सस्ती खरीदारी का। पुरानी पीढ़ी के लोग बताते हैं कि कभी मेले में सब कुछ बिकता था। यहाँ तक की गुलाम भी बिकते थे। बदलते वक्त के साथ मेला बदल रहा है। मेले में आने वाले तमाम उत्पाद अब बाजार में भी मिलने लगे हैं। पर सोनपुर मेले का आकर्षण कम नहीं हुआ है।
1978 के बाद अनगिनत साल मेले में लगातार जाने का मुझे मौका मिला और मेले की बदलती फिजाँ को महसूस भी किया। पर इन बदलाव के बीच मेले का का आकर्षण कम नहीं हुआ। सोनपुर से बहुत दूर रहता हूँ। पर दिल के किसी कोने में तो सोनपुर मेले की खुशबू रची बसी रहती है।
(देश मंथन, 31 दिसंबर 2015)