विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
सिखों के पाँच तख्त हैं देश में। इनमें आनंदपुर साहिब का खास महत्व है। पंजाब के रूपनगर जिले में स्थित आनंदपुर साहिब सिखों में अत्यंत पवित्र शहर माना जाता है। इस शहर की स्थापना 1665 में नौंवे गुरु गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने की थी। यह सिख धर्म में अत्यंत पवित्र शहर इसलिए है, क्योंकि यहीं पर खालसा पंथ की स्थापना हुई थी। साल 1699 में बैशाखी के दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने की। इस दिन उन्होंने पाँच प्यारों को सबसे पहले अमृत छकवा कर सिख बनाया। आमतौर पर तलवार और केश तो सिख पहले से ही रखते थे। अब उनके लिए कड़ा, कंघा और कच्छा भी जरूरी कर दिया गया।
जब गुरु जी ने जब कहा कि मुझे एक शीश चाहिए तो कई लोग चौंके, पर सबसे पहले आगे आये भाई दया सिंह जी। इसके बाद जो पाँच लोग सामने आये। उन्हें गुरु जी ने अमृत छकवा कर अमृतधारी सिख बनाया। तन, मन धन सब कुछ परमेश्वर को सौंप कर सिर्फ सच के प्रचार का संकल्प लिया पंज प्यारों ने।
होला महल्ला
आनंदपुर साहिब पंजाब और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित है। हर साल होली के अगले दिन से यहाँ विशाल मेला लगता है जिसे होला महल्ला कहते हैं। यह उत्सव आनंदपुर साहिब में छह दिनों तक चलता है। इस पर्व की शुरुआत गुरु गोबिंद सिंह जी ने की थी। यह होली का ही बदला हुआ रूप है। यह त्योहार सिख धर्म में पौरुष का प्रतीक है। इस दौरान यहाँ वीरता दिखाने वाले कई तरह के करतब देखने को मिलते हैं।
गुरुद्वारा केशगढ़ साहिब
आनंदपुर साहिब के कई गुरुद्वारों के बीच इसका खास महत्व है। इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे का निर्माण 1699 में हुआ। यह शिवालिक रेंज की पहाड़ियों पर स्थित है। इस गुरुघर का ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि यहाँ गुरु गोबिंद सिंह ने भाई दया सिंह, धरम सिंह, हिम्मत सिंह, मोहकम सिंह और साहिब सिंह को अमृत छका कर सिख बनाया। यहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी की निजी कटार और बंदूक आदि देखी जा सकती है। दसम गुरु गोबिंद सिंह ने पटना साहिब से आने के बाद यहाँ अपने जीवन के 25 साल गुजारे। गुरुद्वारे का आकार बहुत विशाल नहीं है। पर यहाँ सारी सुविधाएँ पहुँचाई गयी हैं। टोकन लेकर आप मंदिर का हलवा प्रसाद ले सकते हैं। गुरुद्वारे से नीचे विशाल लंगर हाल है। मैं जिस दिन पहुँचा, लंगर में दाल, चावल, कड़ी और खीर बनी थी। गुरुद्वार के पास ही सिख धर्म से जुड़ी पुस्तकों की अच्छी दुकाने हैं। यहाँ पर आप गुरमत साहित्य और दूसरे सामान यादगारी में खरीद सकते हैं।
साल 1820 के बाद केशगढ़ साहिब की व्यवस्था में नियमित तौर पर ग्रंथियों की नियुक्ति होने लगी। यहाँ सबसे पहले ग्रंथी भाई करम सिंह जी थे। उसके बाद भाई बुध सिंह, भाई पूरन सिंह, भाई अमर सिंह के नाम आते हैं जिन्होंने अपनी सेवाएँ गुरुघर में दीं। 1920 से 1925 के दौर में गुरुद्वारा सुधार आंदोलन के बाद यहाँ जत्थेदार की नियुक्ति होने लगी। तब ज्ञानी रेशम सिंह, ज्ञानी प्रताप सिंह मालेवाल, जत्थेदार बीर सिंह, मास्टर अजीत सिंह अंबालवी, ज्ञानी फौजा सिंह, ज्ञानी बचितर सिंह, जत्थेदार गुरुदयाल सिंह अजनोहा, जत्थेदार हरचरण सिंह महलोवाल, भाई सविंदर सिंह, भाई बलबीर सिंह, भाई प्रो.मनजीत सिंह ने अपनी सेवाएँ दीं।
350 साला जश्न
साल 2015 में आनंदपुर साहिब की स्थापना के 350 साल पूरे होने पर विशाल उत्सव मनाया गया। इस दौरान यहाँ दुनिया भर से लोग पहुंचे। रूपनगर मुख्यालय से केशगढ़ साहिब की दूरी 40 किलोमीटर है। यहाँ चंडीगढ़, अंबाला, लुधियाना जैसे शहरों से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
(देश मंथन 12 फरवरी 2016)